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करुणावती: चरित्रहीन से प्रेम विनाश की ओर ले जाता है

2 फरवरी 2022

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चौबीसवीं पुतली - करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है-
राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्याओं की जानकारी उन्हें रहे, इसलिए वे भेष बदलकर रात में पूरे राज्य में, आज किसी हिस्से में, कल किसी और में घूमा करते थे। उनकी इस आदत का पता चोर-डाकुओं को भी था, इसलिए अपराध की घटनाएँ छिट-पुट ही हुआ करती थीं। विक्रम चाहते थे कि अपराध बिल्कुल मिट जाए ताकि लोग निर्भय होकर एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करें तथा चैन की नींद सो सकें। ऐसे ही विक्रम एक रात भेष बदलकर राज्य के एक हिस्से में घूम रहे थे कि उन्हें एक बड़े भवन से लटकता एक कमन्द नज़र आया। इस कमन्द के सहारे ज़रुर कोई चोर ही ऊपर की मंज़िल तक गया होगा, यह सोचकर वे कमन्द के सहारे ऊपर पहुँचे।
उन्होंने अपनी तलवार हाथों में ले ली ताकि सामना होने पर चोर को मौत के घाट उतार सकें। तभी उनके कानों में स्त्री की धीमी आवाज़ पड़ी "तो चोर कोई स्त्री है, यह सोचकर वे उस कमरे की दीवार से सटकर खड़े हो गए जहाँ से आवाज़ आ रही थी। कोई स्त्री किसी से बगल वाले कमरे में जाकर किसी का वध करने को कह रही थी। उसका कहना था कि बिना उस आदमी का वध किए हुए किसी अन्य के साथ उसका सम्बन्ध रखना असम्भव है। तभी एक पुरुष स्वर बोला कि वह लुटेरा अवश्य है, मगर किसी निरपराध व्यक्ति की जान लेना उसके लिए सम्भव नही है। वह स्त्री को अपने साथ किसी सुदूर स्थान जाने के लिए कह रहा था और उसके विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा था कि उसके पास इतना अधिक धन है कि बाकी बची ज़िन्दगी वे दोनों आराम से बसर कर लेंगे। वह स्त्री अन्त में उससे दूसरे दिन आने के लिए बोली, क्योंकि उसे धन बटोरने में कम से कम चौबीस घंटे लग जाते।
राजा समझ गए कि पुरुष उस स्त्री का प्रेमी है तथा स्त्री उस सेठ की पत्नी है जिसका यह भवन है। सेठ बगल वाले कमरे में सो रहा है और सेठानी उसके वध के लिए अपने प्रेमी को उकसा रही थी। राजा कमन्द पकडकर नीचे आ गए और उस प्रेमी का इन्तज़ार करने लगे। थोड़ी देर बाद सेठानी का प्रेमी कमन्द से नीचे आया तो राजा ने अपनी तलवार उसकी गर्दन पर रख दी तथा उसे बता दिया कि उसके सामने विक्रम खड़े हैं। वह आदमी डर से थर-थर काँपने लगा और प्राण दण्ड के भय से उसकी घिघ्घी बँध गई। जब राजा ने उसे सच बताने पर मृत्यु दण्ड न देने का वायदा किया तो उसने अपनी कहानी इस प्रकार बताई-
"मैं बचपन से ही उससे प्रेम करता था तथा उसके साथ विवाह के सपने संजोए हुए था। मेरे पास भी बहुत सारा धन था क्योंकि मेरे पिता एक बहुत ही बड़े व्यापारी थे। लेकिन मेरे सुखी भविष्य के सारे सपने धरे-के-धरे रह गए। एक दिन मेरे पिताजी का धन से भरा जहाज समुद्री डाकुओं ने लूट लिया। लूट की खबर पाते ही मेरे पिताजी के दिल को ऐसा धक्का लगा कि उनके प्राण निकल गए। हम लोग कंगाल हो गाए। मैं अपनी तबाही का कारण उन समुद्री डाकुओं को मानकर उनसे बदला लेने निकल पड़ा। कई वर्षों तक ठोकर खाने के बाद मुझे उनका पता चल ही गया। मैंने बहुत मुश्किल से उनका विश्वास जीता तथा उनके दल में शामिल हो गया। अवसर पाते ही मैं किसी एक का वध कर देता। एक-एक करके मैंने पूरे दल का सफाया कर दिया और लूट से जो धन उन्होंने एकत्र किया था वह लेकर अपने घर वापस चला आया।
घर आकर मुझे पता चला कि एक धनी सेठ से मेरी प्रेमिका का विवाह हो गया और वह अपने पति के साथ चली गई। मेरे सारे सपने बिखर गए। एक दिन उसके मायके आने की खबर मुझे मिली तो मैं खुश हो गया। वह आकर मुझसे मिलने लगी और मैंने सारा वृतान्त उसे बता दिया। एक दिन वह मुझसे मिली तो उसने कहा कि उसे मेरे पास बहुत सारा धन होने की बात पर तभी विश्वास होगा जब मैं नौलखा हार उसके गले में डाल दूँ। मैं नौलखा हार लेकर गया। तब तक वह पति के पास चली गई थी। मैंने नौलखा हार लाकर उसे पति के घर में पहना दिया तो उसने अपने पति की हत्या करने को मुझे उकसाया। मैंने उसका कहने नहीं माना क्योंकि किसी निरपराध की हत्या अपने हाथों से करना मैं भयानक पाप समझता हूँ।
राजा विक्रमादित्य ने सच बोलने के लिए उसकी तारीफ की और समुद्री डाकुओं का सफाया करने के लिए उसका कंधा थपथपाया। उन्होंने उसे त्रिया चरित्र नहीं समझ पाने कि लिए डाँटा। उन्होंने कहा कि सच्ची प्रेमिकाएँ प्रेमी से प्रेम करती हैं उसके धन से नहीं। उसकी प्रेमिका ने उसकी प्रतीक्षा नहीं की और सम्पन्न व्यक्ति से शादी कर ली। दुबारा उससे भेंट होने पर पति से द्रोह करने से नहीं हिचकिचाई। नौलखा हार प्राप्त कर लेने के बाद भी उसका विश्वास करके उसके साथ चलने को तैयार नहीं हुई। उलटे उसके मना करने पर भी उससे निरपराध पति की हत्या करवाने को तैयार बैठी है। ऐसी निष्ठुर तथा चरित्रहीन स्त्री से प्रेम सिर्फ विनाश की ओर ले जाएगा।
वह आदमी रोता हुआ राजा के चरणों में गिर पड़ा तथा अपना अपराध क्षमा करने के लिए प्रार्थना करने लगा। राजा ने मृत्युदण्ड के बदले उसे वीरता और सत्यवादिता के लिए ढेरों पुरस्कार दिए। उस आदमी की आँखें खुल चुकी थीं।
दूसरे दिन रात को उस प्रेमी का भेष धरकर वे कमन्द के सहारे उसकी प्रेमिका के पास पहुँचे। उनके पहुँचते ही उस स्त्री ने स्वर्णाभूषणों की बड़ी सी थैली उन्हें अपना प्रेमी समझकर पकड़ा दी और बोली कि उसने विष खिलाकर सेठ को मार दिया और सारे स्वर्णाभूषण और हीरे जवाहरात चुनकर इस थैली में भर लिए। जब राजा कुछ नहीं बोले तो उसे शक हुआ और उसने नकली दाढ़ी-मूँछ नोच ली। किसी अन्य पुरुष को पाकर "चोर-चोर चिल्लाने लगी तथा राजा को अपने पति का हत्यारा बताकर विलाप करने लगी। राजा के सिपाही और नगर कोतवाल नीचे छिपे हुए थे। वे दौड़कर आए और राजा के आदेश पर उस हत्यारी चरित्रहीन स्त्री को गिरफ्तार कर लिया गया। उस स्त्री को समझते देर नहीं लगी कि भेष बदलकर आधा हुआ पुरुष खुद विक्रम थे। उसने झट से विष की शीशी निकाली और विषपान कर लिया। 

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रचनाएँ
सिंहासन बत्तीसी
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सिंहासन बत्तीसी/सिंघासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय,जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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परिचय: सिंहासन बत्तीसी

1 फरवरी 2022
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सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वा

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आमुख कथा

1 फरवरी 2022
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बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज आदर्शवादी, सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्

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रत्नमंजरी: जन्म तथा सिंहासन प्राप्ति

1 फरवरी 2022
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पहली पुतली रत्नमंजरी राजा विक्रम के जन्म तथा इस सिंहासन प्राप्ति की कथा बताती है। वह इस प्रकार है: आर्यावर्त में एक राज्य था जिसका नाम था अम्बावती। वहाँ के राजा गंधर्वसेन ने चारों वर्णों की स्त्रीयों

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चित्रलेखा: विक्रम और बेताल

1 फरवरी 2022
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दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उस

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चन्द्रकला: पुरुषार्थ और भाग्य में कौन बड़ा

1 फरवरी 2022
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तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है। एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसक

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कामकंदला: दानवीरता तथा त्याग की भावना

1 फरवरी 2022
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चौथी पुतली कामकंदला की कथा से भी विक्रमादित्य की दानवीरता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्म

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लीलावती: विक्रमादित्य की दानवीरता

1 फरवरी 2022
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पाँचवीं पुतली - लीलावती ने भी राजा भोज को विक्रमादित्य के बारे में जो कुछ सुनाया उससे उनकी दानवीरता ही झलकती थी। कथा इस प्रकार थी- हमेशा की तरह एक दिन विक्रमादित्य अपने दरबार में राजकाज निबटा रहे थे

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रविभामा: विक्रमादित्य की परीक्षा

1 फरवरी 2022
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छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। बरसात का महीना था, इसलिए नदी उफन रही थी और अत्यन्त तेज़ी से

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कौमुदी: विक्रमादित्य और पिशाचिनी

1 फरवरी 2022
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सातवीं पुतली कौमुदी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने शयन-कक्ष में सो रहे थे। अचानक उनकी नींद करुण-क्रन्दन सुनकर टूट गई। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो रोने की आवाज नदी की तर

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पुष्पवती: विक्रमादित्य और काठ का घोड़ा

1 फरवरी 2022
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आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे। उन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था। वे कलाकृतियों का मूल्य आँककर बेचनेवाले को मुँह माँगा दाम देत

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मधुमालती: विक्रमादित्य और प्रजा का हित

1 फरवरी 2022
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नवीं पुतली - मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में प्राणोत्सर्ग करने की भावना झलकती है। कथा इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक

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प्रभावती: विक्रमादित्य और राजकुमारी का विवाह

1 फरवरी 2022
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दसवीं पुतली - प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उ

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त्रिलोचना: देवताओं का आवाहन

1 फरवरी 2022
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ग्यारहवीं पुतली - त्रिलोचना ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने

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पद्मावती: राक्षस से घमासान युद्ध

1 फरवरी 2022
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बारहवी पुतली - पद्मावती उस सिंहासन की बारहवीं पुतली थी उसने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चाँद अपने यौवन पर था त

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कीर्तिमती: विक्रमादित्य और सर्वश्रेष्ठ दानवीर

1 फरवरी 2022
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तेरहवीं पुतली - कीर्तिमती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर च

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सुनयना: हिंसक सिंह का शिकार

1 फरवरी 2022
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चौदहवीं पुतली - सुनयना ने जो कथा की वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा न्यायप्रिय, दानी और त्यागी और कोई न था। इन नृपोचित गुणों के अलावा उनमें एक और गुण था। वे

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सुंदरवती: राजा की हर चीज़ प्रजा के हित के लिए

1 फरवरी 2022
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पन्द्रहवीं पुतली - सुंदरवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन राज्य की समृद्धि आकाश छूने लगी थी। व्यापारियों का व्यापार अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि दूर के देशों तक

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सत्यवती: पाताल लोक की यात्रा

2 फरवरी 2022
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सोलहवीं पुतली - सत्यवती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन नगरी का यश चारों ओर फैला हुआ था। एक से बढ़कर एक विद्वान उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे और उनकी नौ जानकारो

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विद्यावती: विक्रमादित्य की परोपकार तथा त्याग की भावना

2 फरवरी 2022
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सत्रहवीं पुतली - विद्यावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या

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तारामती: विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान

2 फरवरी 2022
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अठारहवीं पुतली - तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान तथा कलाकार

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रूपरेखा: राजा विक्रमादित्य और दो तपस्वी

2 फरवरी 2022
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उन्नीसवी पुतली - रूपरेखा नामक उन्नीसवी पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित हो

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ज्ञानवती: ज्ञानियों की कद्र

2 फरवरी 2022
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बीसवीं पुतली - ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों,

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चन्द्रज्योति: विक्रमादित्य और दुर्लभ ख्वांग बूटी

2 फरवरी 2022
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इक्कीसवीं पुतली - चन्द्रज्योति की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस

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अनुरोधवती: बुद्धि और संस्कार

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बाइसवीं पुतली - अनुरोधवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता क

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धर्मवती: मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से-

2 फरवरी 2022
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तेइसवीं पुतली - धर्मवती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारीयों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा

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करुणावती: चरित्रहीन से प्रेम विनाश की ओर ले जाता है

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चौबीसवीं पुतली - करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्

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त्रिनेत्री: ईश्वर से आस

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पच्चीसवीं पुतली - त्रिनेत्री की कथा इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के सुख दुख का पता लगाने के लिए कभी-कभी वेश बदलकर घूमा करते थे तथा खुद सारी समस्या का पता लगाकर निदान करते थे। उनके राज्

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मृगनयनी: रानी का विश्वासघात

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छब्बीसवीं पुतली - मृगनयनी ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे कि

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मलयवती: विक्रमादित्य और दानवीर राजा बलि

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सताइसवीं पुतली - मलयवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- विक्रमादित्य बड़े यशस्वी और प्रतापी राजा था और राज-काज चलाने में उनका कोई सानी नहीं था। वीरता और विद्वता का अद्भुत संगम थे। उनके शस्त्र ज्ञान औ

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वैदेही: स्वर्ग की यात्रा

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अट्ठाईसवीं पुतली वैदेही ने अपनी कथा इस प्रकार कही- एक बार राजा विक्रमादित्य अपने शयन कक्ष में गहरी निद्रा में लीन थे। उन्होंने एक सपना देखा। एक स्वर्ण महल है जिसमें रत्न, माणिक इत्यादि जड़े हैं। महल म

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मानवती: राजा विक्रम की बहन की शादी

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उन्तीसवीं पुतली - मानवती ने इस प्रकार कथा सुनाई- राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर रात में घूमा करते थे। ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए। चाँदनी रात में नदी का जल चमकता हुआ बड़ा ही प्यारा द

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जयलक्ष्मी: मृग रूप से मुक्ति

2 फरवरी 2022
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तीसवीं पुतली - जयलक्ष्मी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी। उन्होंने अपने तप से जान लिया कि वे अब अधिक से अधिक छ: महीने जी सकते हैं। अपनी मृत्यु को

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कौशल्या: विक्रमादित्य की मृत्यु

2 फरवरी 2022
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इकत्तीसवीं पुतली - कौशल्या ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने

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रानी रूपवती: अंतिम कहानी

2 फरवरी 2022
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बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है। राजा भोज ने कहा कि राजा व

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