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त्रिलोचना: देवताओं का आवाहन

1 फरवरी 2022

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ग्यारहवीं पुतली - त्रिलोचना ने जो कथा कही वह इस प्रकार है-
राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने की ठानी। असंख्य राजा-महाराजाओं, पण्डितों और ॠषियों को आमन्त्रित किया। यहाँ तक कि देवताओं को भी उन्होंने नहीं छोड़ा।
पवन देवता को उन्होंने खुद निमन्त्रण देने का मन बनाया तथा समुद्र देवता को आमन्त्रित करने का काम एक योग्य ब्राह्मण को सौंपा। दोनों अपने काम से विदा हुए। जब विक्रम वन में पहुँचे तो उन्होंने तय करना शुरू किया ताकि पवन देव का पता-ठिकाना ज्ञात हो। योग-साधना से पता चला कि पवन देव आजकल सुमेरु पर्वत पर वास करते हैं। उन्होंने सोचा अगर सुमेरु पर्वत पर पवन देवता का आवाहन किया जाए तो उनके दर्शन हो सकते है। उन्होंने दोनों बेतालों का स्मरण किया तो वे उपस्थित हो गए। उन्होंने उन्हें अपना उद्देश्य बताया। बेतालों ने उन्हें आनन-फानन में सुमेरु पर्वत की चोटी पर पहुँचा दिया। चोटी पर इतना तेज हवा थी कि पाँव जमाना मुश्किल था।
बड़े-बड़े वृक्ष और चट्टान अपनी जगह से उड़कर दूर चले जा रहे थे। मगर विक्रम तनिक भी विचलित नहीं हुए। वे योग-साधना में सिद्धहस्त थे, इसलिए एक जगह अचल होकर बैठ गए। बाहरी दुनिया को भूलकर पवन देव की साधना में रत हो गए। न कुछ खाना, न पीना, सोना और आराम करना भूलकर साधना में लीन रहे। आखिरकार पवन देव ने सुधि ली। हवा का बहना बिल्कुल थम गया। मन्द-मन्द बहती हुई वायु शरीर की सारी थकान मिटाने लगी। आकाशवाणी हुई- "हे राजा विक्रमादित्य, तुम्हारी साधना से हम प्रसन्न हुए। अपनी इच्छा बता।"
विक्रम अगले ही क्षण सामान्य अवस्था में आ गए और हाथ जोड़कर बोले कि वे अपने द्वारा किए जा रहे महायज्ञ में पवन देव की उपस्थिति चाहते हैं। पवन देव के पधारने से उनके यज्ञ की शोभा बढ़ेगी। यह बात विक्रम ने इतना भावुक होकर कहा कि पवन देव हँस पड़े। उन्होंने जवाब दिया कि सशरीर यज्ञ में उनकी उपस्थिति असंभव है। वे अगर सशरीर गए, तो विक्रम के राज्य में भयंकर आँधी-तूफान आ जाएगा। सारे लहलहाते खेत, पेड़-पौधे, महल और झोपड़ियाँ- सब की सब उजड़ जाएँगी। रही उनकी उपस्थिति की बात, तो संसार के हर कोने में उनका वास है, इसलिए वे अप्रत्यक्ष रुप से उस महायज्ञ में भी उपस्थित रहेंगे। विक्रम उनका अभिप्राय समझकर चुप हो गए। पवन देव ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि उनके राज्य में कभी अनावृष्टि नहीं होगी और कभी दुर्भिक्ष का सामना उनकी प्रजा नहीं करेगी। उसके बाद उन्होंने विक्रम को कामधेनु गाय देते हुए कहा कि इसकी कृपा से कभी भी विक्रम के राज्य में दूध की कमी नहीं होगी। जब पवनदेव लुप्त हो गए, तो विक्रमादित्य ने दोनों बेतालों का स्मरण किया और बेताल उन्हें लेकर उनके राज्य की सीमा तक आए।
जिस ब्राह्मण को विक्रम ने समुद्र देवता को आमन्त्रित करने का भार सौंपा था, वह काफी कठिनाइयों को झेलता हुआ सागर तट पर पहुँचा। उसने कमर तक सागर में घुसकर समुद्र देवता का आवाहन किया। उसने बार-बार दोहराया कि महाराजा विक्रमादित्य महायज्ञ कर रहे हैं और वह उनका दूत बनकर उन्हें आमंत्रित करने आया है। अंत में समुद्र देवता असीम गहराई से निकलकर उसके सामने प्रकट हुए। उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि उन्हें उस महायज्ञ के बारे में पवन देवता ने सब कुछ बता दिया है। वे पवन देव की तरह ही विक्रमादित्य के आमन्त्रण का स्वागत तो करते हैं, लेकिन सशरीर वहाँ सम्मिलित नहीं हो सकते हैं। ब्राह्मण ने समुद्र देवता से अपना आशय स्पष्ट करने का सादर निवेदन किया, तो वे बोले कि अगर वे यज्ञ में सम्मिलित होने गए तो उनके साथ अथाह जल भी जाएगा और उसके रास्तें में पड़नेवाली हर चीज़ डूब जाएगी। चारों ओर प्रलय-सी स्थिति पैदा हो जाएगी। सब कुछ नष्ट हो जाएगा।
जब ब्राह्मण ने जानना चाहा कि उसके लिए उनका क्या आदेश हैं, तो समुद्र देवता बोले कि वे विक्रम को सकुशल महायज्ञ सम्पन्न कराने के लिए शुभकामनाएँ देते हैं। अप्रत्यक्ष रुप में यज्ञ में आद्योपति विक्रम उन्हें महसूस करेंगे, क्योंकि जल की एक-एक बून्द में उनका वास है। यज्ञ में जो जल प्रयुक्त होगा उसमें भी वे उपस्थित रहेंगे। उसके बाद उन्होंने ब्राह्मण को पाँच रत्न और एक घोड़ा देते हुए कहा- "मेरी ओर से राजा विक्रमादित्य को ये उपहार दे देना।" ब्राह्मण घोड़ा और रत्न लेकर वापस चल पड़ा। उसको पैदल चलता देख वह घोड़ा मनुष्य की बोली में उससे बोला कि इस लंबे सफ़र के लिए वह उसकी पीठ पर सवार क्यों नहीं हो जाता।
उसके ना-नुकुर करने पर घोड़े ने उसे समझाया कि वह राजा का दूत है, इसलिए उसके उपहार का उपयोग वह कर सकता है। ब्राह्मण जब राज़ी होकर बैठ गया तो वह घोड़ा पवन वेग से उसे विक्रम के दरबार ले आया। घोड़े की सवारी के दौरान उसके मन में इच्छा जगी- "काश! यह घोड़ा मेरा होता!" जब विक्रम को उसने समुद्र देवता से अपनी बातचीत सविस्तार बताई और उन्हें उनके दिए हुए फुहार दिए, तो उन्होंने उसे पाँचों रत्न तथा घोड़ा उसे ही प्राप्त होने चाहिए, चूँकि रास्ते में आनेवाली सारी कठिनाइयाँ उसने राजा की खातिर हँसकर झेलीं। उनकी बात समुद्र देवता तक पहुँचाने के लिए उसने कठिन साधना की। ब्राह्मण रत्न और घोड़ा पाकर फूला नहीं समाया। 

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रचनाएँ
सिंहासन बत्तीसी
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सिंहासन बत्तीसी/सिंघासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय,जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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परिचय: सिंहासन बत्तीसी

1 फरवरी 2022
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सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वा

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आमुख कथा

1 फरवरी 2022
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बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज आदर्शवादी, सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्

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रत्नमंजरी: जन्म तथा सिंहासन प्राप्ति

1 फरवरी 2022
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पहली पुतली रत्नमंजरी राजा विक्रम के जन्म तथा इस सिंहासन प्राप्ति की कथा बताती है। वह इस प्रकार है: आर्यावर्त में एक राज्य था जिसका नाम था अम्बावती। वहाँ के राजा गंधर्वसेन ने चारों वर्णों की स्त्रीयों

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चित्रलेखा: विक्रम और बेताल

1 फरवरी 2022
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दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उस

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चन्द्रकला: पुरुषार्थ और भाग्य में कौन बड़ा

1 फरवरी 2022
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तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है। एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसक

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कामकंदला: दानवीरता तथा त्याग की भावना

1 फरवरी 2022
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चौथी पुतली कामकंदला की कथा से भी विक्रमादित्य की दानवीरता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्म

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लीलावती: विक्रमादित्य की दानवीरता

1 फरवरी 2022
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पाँचवीं पुतली - लीलावती ने भी राजा भोज को विक्रमादित्य के बारे में जो कुछ सुनाया उससे उनकी दानवीरता ही झलकती थी। कथा इस प्रकार थी- हमेशा की तरह एक दिन विक्रमादित्य अपने दरबार में राजकाज निबटा रहे थे

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रविभामा: विक्रमादित्य की परीक्षा

1 फरवरी 2022
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छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। बरसात का महीना था, इसलिए नदी उफन रही थी और अत्यन्त तेज़ी से

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कौमुदी: विक्रमादित्य और पिशाचिनी

1 फरवरी 2022
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सातवीं पुतली कौमुदी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने शयन-कक्ष में सो रहे थे। अचानक उनकी नींद करुण-क्रन्दन सुनकर टूट गई। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो रोने की आवाज नदी की तर

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पुष्पवती: विक्रमादित्य और काठ का घोड़ा

1 फरवरी 2022
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आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे। उन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था। वे कलाकृतियों का मूल्य आँककर बेचनेवाले को मुँह माँगा दाम देत

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मधुमालती: विक्रमादित्य और प्रजा का हित

1 फरवरी 2022
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नवीं पुतली - मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में प्राणोत्सर्ग करने की भावना झलकती है। कथा इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक

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प्रभावती: विक्रमादित्य और राजकुमारी का विवाह

1 फरवरी 2022
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दसवीं पुतली - प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उ

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त्रिलोचना: देवताओं का आवाहन

1 फरवरी 2022
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ग्यारहवीं पुतली - त्रिलोचना ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने

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पद्मावती: राक्षस से घमासान युद्ध

1 फरवरी 2022
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बारहवी पुतली - पद्मावती उस सिंहासन की बारहवीं पुतली थी उसने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य महल की छत पर बैठे थे। मौसम बहुत सुहाना था। पूनम का चाँद अपने यौवन पर था त

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कीर्तिमती: विक्रमादित्य और सर्वश्रेष्ठ दानवीर

1 फरवरी 2022
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तेरहवीं पुतली - कीर्तिमती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर च

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सुनयना: हिंसक सिंह का शिकार

1 फरवरी 2022
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चौदहवीं पुतली - सुनयना ने जो कथा की वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा न्यायप्रिय, दानी और त्यागी और कोई न था। इन नृपोचित गुणों के अलावा उनमें एक और गुण था। वे

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सुंदरवती: राजा की हर चीज़ प्रजा के हित के लिए

1 फरवरी 2022
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पन्द्रहवीं पुतली - सुंदरवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन राज्य की समृद्धि आकाश छूने लगी थी। व्यापारियों का व्यापार अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि दूर के देशों तक

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सत्यवती: पाताल लोक की यात्रा

2 फरवरी 2022
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सोलहवीं पुतली - सत्यवती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य के शासन काल में उज्जैन नगरी का यश चारों ओर फैला हुआ था। एक से बढ़कर एक विद्वान उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे और उनकी नौ जानकारो

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विद्यावती: विक्रमादित्य की परोपकार तथा त्याग की भावना

2 फरवरी 2022
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सत्रहवीं पुतली - विद्यावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या

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तारामती: विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान

2 फरवरी 2022
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अठारहवीं पुतली - तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान तथा कलाकार

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रूपरेखा: राजा विक्रमादित्य और दो तपस्वी

2 फरवरी 2022
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उन्नीसवी पुतली - रूपरेखा नामक उन्नीसवी पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित हो

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ज्ञानवती: ज्ञानियों की कद्र

2 फरवरी 2022
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बीसवीं पुतली - ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों,

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चन्द्रज्योति: विक्रमादित्य और दुर्लभ ख्वांग बूटी

2 फरवरी 2022
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इक्कीसवीं पुतली - चन्द्रज्योति की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस

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अनुरोधवती: बुद्धि और संस्कार

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बाइसवीं पुतली - अनुरोधवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता क

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धर्मवती: मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से-

2 फरवरी 2022
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तेइसवीं पुतली - धर्मवती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारीयों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा

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करुणावती: चरित्रहीन से प्रेम विनाश की ओर ले जाता है

2 फरवरी 2022
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चौबीसवीं पुतली - करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्

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त्रिनेत्री: ईश्वर से आस

2 फरवरी 2022
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पच्चीसवीं पुतली - त्रिनेत्री की कथा इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के सुख दुख का पता लगाने के लिए कभी-कभी वेश बदलकर घूमा करते थे तथा खुद सारी समस्या का पता लगाकर निदान करते थे। उनके राज्

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मृगनयनी: रानी का विश्वासघात

2 फरवरी 2022
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छब्बीसवीं पुतली - मृगनयनी ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे कि

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मलयवती: विक्रमादित्य और दानवीर राजा बलि

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सताइसवीं पुतली - मलयवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- विक्रमादित्य बड़े यशस्वी और प्रतापी राजा था और राज-काज चलाने में उनका कोई सानी नहीं था। वीरता और विद्वता का अद्भुत संगम थे। उनके शस्त्र ज्ञान औ

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वैदेही: स्वर्ग की यात्रा

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अट्ठाईसवीं पुतली वैदेही ने अपनी कथा इस प्रकार कही- एक बार राजा विक्रमादित्य अपने शयन कक्ष में गहरी निद्रा में लीन थे। उन्होंने एक सपना देखा। एक स्वर्ण महल है जिसमें रत्न, माणिक इत्यादि जड़े हैं। महल म

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मानवती: राजा विक्रम की बहन की शादी

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उन्तीसवीं पुतली - मानवती ने इस प्रकार कथा सुनाई- राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर रात में घूमा करते थे। ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए। चाँदनी रात में नदी का जल चमकता हुआ बड़ा ही प्यारा द

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जयलक्ष्मी: मृग रूप से मुक्ति

2 फरवरी 2022
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तीसवीं पुतली - जयलक्ष्मी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी। उन्होंने अपने तप से जान लिया कि वे अब अधिक से अधिक छ: महीने जी सकते हैं। अपनी मृत्यु को

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कौशल्या: विक्रमादित्य की मृत्यु

2 फरवरी 2022
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इकत्तीसवीं पुतली - कौशल्या ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने

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रानी रूपवती: अंतिम कहानी

2 फरवरी 2022
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बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है। राजा भोज ने कहा कि राजा व

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