पतझड़ आने वाला है उसका इंतजार क्यों आने से पहले उसके क्यों न जी लू मैं पतझड़ के बाद तो झड़ जाना है मुझे तो अभी क्यों न खिलखिलाऊँ मैं लहर लहर के क्यों न लहराऊँ मैं पतझड़ आने वाला है तो क्यों न गीत गाऊं मैं भंवरों की तरह क्यों न गुनगुनाऊँ मैं रस पी के कलियों को क्यों न एहसास कराऊँ मैं जीवन है अनमोल क्यों न हस के गुज़ार जाऊं मैं पतझड़ आने वाला है क्यों न जी जाऊं मैं