समंदर की लहरों के साथ वो लड़ आई है
पता है उझको साथ मे तन्हाई है
आंसुओं की गोद मे वो रात गुज़ार आई है
गुज़ारिश है आज सितारों से उसकी
कि आंखों में उसकी नींद नही थपथपाई है
होकर भी लहरों की सखी वो आज सुध न पाई है
मौत का मंजर जो देख आई है
बोलती है जिसकी आंखे पर होंठो पर चुप्पी छाई है
कहते है जिसको पागल आज वो जम के आंसू बहाई है