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पड़ोस का घर..

27 अप्रैल 2022

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रात का अंधेरा इतना भी घना नहीं था चाँद के मद्यम से प्रकाश में मुझे वो इग्लू सा छोटा सा घर दिखाई दिया। आज कितने सालों बाद मै गाव मे वापस आया था। पर पहले जैसे ये कुनबा आदमी, औरत, बच्चे, गाय, बैल, खेत...,ईन सबसे भरा सा रहता। 
आज वो सब यहाँ नहीं है और जो है...! 
खैर..
वही एक इग्लू घर गाव मे बचा है जो मेरे घर के ठीक बाजू मे था। 
कवाड बजाया.. Sss
किसी ने कापते हाथो से दरवाज़ा खोल दिया। वो लामन् काका थे बहोत उम्र गुजर गई थी.. 
आजाओ!, कबसे तुम्हारा इंतजार कर रहा हु
हा काका बहोत भुक् लगी है खाने मे क्या है? 

आज मेरा फेवरेट खाना बना था
मटन! 
आप अकेले ही तो गाव मे बचे हो! 
क्यू रहते हो अकेला? 
शहर मे, मैं बुडा खाऊगा क्या? यहाँ खाना तो मिलता है कमसे कम। 
तो वो शहर मे भी मिल जायेगा बस आपका खेत मेरे दोस्त को बेचना है वो वहाँ इंजेनिरिग् कॉलेज बनाना चाहता है, बहोत बड़ी रक्कम देंगा इतनी बड़ी की आपका बाकी बचा बुढापा ब्याज खाते ही गुजर जायेगा। 
खेत बेचना पाप है! बाकी लोग बेचकर चले गए होंगे लेकिन मै नहीं बेच सकता!! 
और तुमने भी तो अभीतक कहा बेचा है? 
"मैनें बेचा नहीं क्योकि मेरा रोड से लग कर नहीं है ना...!"
खाना कैसे बना है? 
"एकदम धासु वाला बड़िया खाना है,आपने खा लिया क्या"..? 
"नहीं उपवास है, रात के एक बजे उपवास छोडुगा"
"आप अबतक वो पूरे दिन कुछ ना खाकर रात के एक बजे खाने वाला व्रत रखते है"...? 
"हा रखता हु,आदमी को कुछ चीजें छोड़नी नहीं चाहिए"...! 
"हा जैसे की आप खेत नहीं बेच रहे हो, पुरानी प्रथा, परम्परा, रूडी से एकदम चिपक बैठे हो,छोड़ दीजिये ये सब! ये सब मानने वाले लोग अब इतिहास जमा हो गए है"...! 
छोड़िये..., "वो कॉलेज बनते ही मैं उसमे आपको वॉचमन की नौकरी लगवा दूंगा साथ मे पगार भी चालू हो जाएगी"

ऐसा बोलकर मै बिस्तर पर लेट गया। 
सुबह लामन काका के आँखों मे नींद दिख रही थी उन्होंने रातभर जागकर शायद कुछ सोच लिया था। 
तुम ठीक कहते हो! बहोत सोचा मैनें और सोचकर ये फैसला किया है की... 
मै ये जमीन कभी नहीं बेच्युगां!!! 

फिर कभी भी मैं लामन् काका से नहीं मिला, मेरे पड़ोस का घर और उसके अंदर रहने वाले वसूल आज भी जिंदा है! 

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रचनाएँ
अनुभव
5.0
ये पुस्तक मेरी कहानियों का प्रथम संग्रह है, जीवन;...मृत्यु; के बिच जो एक बहती हुई अनंत रेषा होती है इसके बारे मे भी ये कहानियां कुछ बोलती है। ये कोई मत, उपदेश, या किसी भी तरह का तत्वज्ञान नहीं ये सिर्फ बोलना है। कुछ पात्र आती हुई मुश्क़िलों का सामना कर आगे बढ़ जाते है, तो कुछ समस्या को सुलझा ना पाने के कारण उन्हीं आफतो को लेकर इस अनंत रेषा पर चलते है। हर पल एक अनुभव है! आप अनुभव पैदा नही कर सकतें आप को उससे होकर गुजरना होता है..!
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