"मुचकुंद गहरी नींद सो गया"...,एैसा कह के बल्लाव चुप हो गया। चिंता ऊसके सर पे मछरौं की तरहा मंडारा रही थी।
अरे दादाजी ये तो कहानी का अंत हैं शुरवात नहीं! उसके पोते केशव ने कहा।
“अरे अंत भी कहा केशु ये तो मध्य हैं ” सुभाष ने झोपड़ी के अंदर आते आते कहा, वो यू.पी.यस.सी, की तयारी कर रहा था।
"नहीं ये अंत ही हैं हम जैसे साधारण किसानों का, एक तो पानी नहीं बरसता और भाव का हाल तो तुमे पता ही हैं"...,उसकी चिंता को जबान फूटी और अपने बेटे सुभाष से वो बोल पड़ी।
"तो कर्जा लेने के लिए मैंने कहा था आपसे...? अरे मै तो मना ही कर रहा था बोल रहा था की खाते पर जल्दी एंट्री ना होती हैं ॠण माफ़ी की अब लगाते रहो बैंक के चक्कर और ढोते रहो सर पर ये बोझ"....
"अरे बेटा कहा की बात कहा लेकर जा रहा हैं तु, मै तो एैसे ही बोल पड़ा जादा ध्यान मत दे अपनी पढाई पर ही सबकुछ झोक दे। वही हमें इस दलदल से बाहर निकाल सकती हैं बस"...
"एैसा कह दिया तो बस हो गया.. नहीं? जानते हैं आप राज्य शासन ने कर्जा माफ़ी योजना के तहत 63 हजार किसानों को पात्र पाया हैं, अब इसमें आपका नंबर हैं या नहीं ये तो वो पानी बरसाने वाला जाने या दफ्तर मे बैठा वो मानव प्राणी जिसके पास आपका नशीब गिरवी पड़ा हैं"...
"कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाएगा, वो हैं ना जिसने मुचकुंद को गहरी निंद से जगाया था वह नीला सावधान देवता सबकुछ ठीक कर देगा"...
"हा शायद कभी तो आयेगी वो सुबह .., लेकिन अब रात हो रही हैं आप सो जाइए, कल मै बैंक जा कर आता हु"...
"लेकिन केशु को कहानी"..?
"मै सुना दूंगा!, चल केशु"...
आंगन मे काले आसमान के नीचे वो कहानी सुन रहा हैं।
"तो मुचकुंद हम इंसानों का राजा था बड़ा ही शक्तिशाली सबको खाना देता था, कपड़े देता था"
"चाचा हमारे खेतों की तरहा वो भी तो सबको खाना देते है कपड़े देते हैं.. हैं ना..हैं न"..?
"हा कुछ इस तरहा भी तू समज सकता हैं, लेकिन उससे दानव, दैत्य, और बड़े बड़े असुर भी डरते थे..
एक बार बड़ी तगड़ी लढाई हुई, देवताओं और असुरों के बीच, पर देवताओं के पास अपना भाई मुचकुंद था उसकी बजेसे देवता जीत गए
लेकिन वो युद्ध उसे उपर स्वर्ग मे जाकर लड़ना पड़ा था, जब वो अपनी जीत दिखाने नीचे आया तो वो चौक गया पृथ्वी पुरी तरह से बदल चुकी थी न जाने कितने युग बीत गए.. उसकी दुनिया बदल गयी थी अब उसे जानने पहचानने वाला कोई भी जिंदा नहीं था, देवताओं का कर्जा वो इस तरहा से चुका रहा था, फिर वो उपर सफेद बादलों पे सवार होकर देवताओं के पास गया लेकिन देवताओं के बैंक के खाते मे उसकी कोई एंट्री ही नहीं थी कैसे होती कितने युगों पहले वो युद्ध खतम हो चुका था...
फिर भी रहम कर के एक देवता ने उसे वरदान दे दिया की उसको अब गहरी निंद आयेगी, और जब उसे कोई उठायेगा तो वो उठानेवाला वही का वही जल जायेंगा"
"अब मुझे निंद आ रही हैं केशु, तु भी सो जा"
"आगे क्या बताइ ये ना"...!
"आगे आगे..वो एक गुफा मे जाकर सो गया
फिर कालयवन वहाँ आया, उसे वहा कृष्णा लेकर आया था मतलब बहला फुसलाकर, फिर उस कालयवन ने मुचकुंद को उठा दिया..
जल गया जल कर खाक हो गया..
पर असल मे तो भगवान कृष्णा ने उसे उठाया था, अपना पीतांबर उसके उपर डालकर, कालयवन समझा की कृष्ण सो रहा है उसने लाथ मार कर उठाया और वो जल गया"
इतने मे भाभी की जोर से चिल्लाने की आवाज आई.. !!
सुभाष गड़बड़ा कर अंदर दौड़ पडा़, सामने का दृश्य देख वो कपकपा उठा एक थंडक उसके शरीर में दौड़ गई और वो नीचे बैठ गया।
बल्लव जमीन पर पड़ा था उसके मु से सफेद झाग निकल रही थी शायद कीटनाशक वाला जहर खा लिया था..
और बाजू मे उसका भाई केशव का बाप भी उसी हालत मे था।
सुबहा होते होते पोस्टमार्टम हो गया, दोपहर को लाशे मिल गई।
सफेद कपड़े ओढी दो लाशे।
तभी कोई बैंक का आदमी वहा आया उसके हाथ मे कुछ काग़ज थे उनपर सुभाष के साइन लिए गए, और एक प्रमाणपत्र उसके हाथ में थमा दिया गया..
कर्जा माफ़ी का प्रमाणपत्र।
"बधाई हो बधाई हो आप ॠण मुक्त हो गये"....!
केशव के कुछ भी समज मे नहीं आ रहा था, वो कृष्ण के फोटो के पास गया और रो रो कर जोरसे कहने लगा। "आप तो कुछ भी कर.. सक.. ते हैं..!
पिताजी और दादा जी का सफेद कपड़ा उठाईये..
और और उन्हें गहरी निंद से जगाई ना..!
मुचकुंद की तरहा"......।