वो एक गरम दोपहर थी। सामान्य तहा रेल्वे स्टेशन पर इस वक़्त ज्यादा भीड़ नहीं रहती लेकिन उस दिन जरा ज्यादा ही थी.
मेरे साथ सुहास था, वो हमेशा साथ ही रहता है मुझे ज्यादा अकेला नहीं छोड़ता; बहोत पुराने जमाने से नौकर है हमारे. पुस्तेनी नौकर.
आजकल ये तिकीट भी मोबाईल मे कटवानी पड़ती है, ये बात उसे जरा भी पसंद नहीं आती उसे मोबाईल ही पसंद नहीं आता.एक जमाना था जब काम के बचें हुए पैसें वो रख लेता था, यांनी लाइट बिल, शॉपिंग, गैस बुकिंग, वगेरा वगेरा के ख़रचे अपनी बीड़ी काडी के लिए.
हम डब्बा ढुंढ रहे थे. Ac कोच D7, Ac कोच D18. "तो सुहास चाचा ये नंबर है हमारे"! तुम् कहाँ बैठोगे 7 पे या अठरा पे?
" छोटे मालिक हमारा क्या है कहीं पे भी हम टीका लेंगे, हमें तो सारे नंबर एक से ही लगते है. "
"Ok", तो सात पर अपना टिका लो, बैग वगेरा तुम्हारे पास ही रखना. ठीक है.
रेल् बहोत धीरे से चल रही थी. फिर रुक गई. हेडफोन से कान निकालकर मैने उस ब्लू काच की खिड़की से बाहर देखा. वेलू स्टेशन था. कितना समय बीत गया, ये आज भी वैसा है; जैसा उस वक़्त था जब शारुख किंग खान बन रहा था, आमिर को परफेक्शन धीरे धीरे आ रहा था, सलमान खान "भाईजान" नहीं सिर्फ प्रेम थे.
मुझे चणे खाने का बड़ा मन हुवा, यहाँ के चने बहोत फेमस है जैसे आगरा की मिठाई ठिक वैसे ही.
मैं नीचे उतरा. आज भी स्टेशन पुराने जमाने का अग्रेज था, वो इसे बना कर यही भूल गए थे ; उनके जमाने की चार फुट लंबी घड़ी जिसपर 1858 लिखा था वो भी यही थी.
और उसके नीचे हाथ में बॅग लेकर... उपासना!!!
मैं तगडा चौका; बहोत ही तगडा था वो मेरा चौकना.
वो गाड़ी की तरफ बढ रही थी! मेरी धड़कन बहोत तेज बहोत तेज बहोत ही तेज हो गई, जैसे अभी मैं चक्कर खा के नीचे गिरूंगा.
हड़बड़ी से मैं संभल गया. और उसके पिछे चलने लगा ...
ये क्या! वो तो D7 मे घूस गई.. शट.. शट.. शट.. शट..शट.. मैं भी अंदर जाता लेकिन हिंमत ही नहीं हुई.
ये मैं क्या कर रहा हु! नहीं मुझे ये नहीं करना चाहिए. उसके पिछे क्यू जा रहा हु मैं?
क्या अबतक मेरे अंदर के विकारों पर मैं नियंत्रण नहीं पा सका हु? अगर ऐसा है तो मुझे इस सफर के आखरी मुकाम पर सचमुच जाना चाहिए?
नहीं बिलकुल नहीं! मुकाम आणे तक मैं D7 मे नहीं जाउँगा बिलकुल नहीं.
मैं अंदर आके बैठ गया, मोबाईल के अंदर ऑनलाइन प्रवचन मे घुस गया.
दो स्टॉप जाने के बाद मोबाईल की चारजिंग बैंड बज गई, वहाँ आसपास चारजिंग लगाने को कुछ था नहीं.. भारतीय रेल्वे. खैर..
बाबा अडम् के जमाने का एक टाइम पास ; खिड़की से बाहर देखना और देखते ही रहना.. अपना कट्टपा की तरहा धोका देता मन उसके अंदर के आस्तित्व हिन विचार, जिनमें से करोड़ो विचार कभी शरीर भी धारण नहीं करते.
वही विचार रेल के लोह चक्र के साथ घूम रहे है,
गोल गोल गोल....
नव् हिंद कॉलेज
ईयर : 1997.
1st ईयर का पहला दिन.
अटेण्डंस हो रही है, मै मेरे नाम का इंतजार कर रहा हु।
नंबर 1,2,3,4,5,6,7,8,8,8... उपासना.. उपासना रोहतगी.. हा एस सर् हम हाजिर है.
एक लम्हा स्टॉप हो गया. उपासना कुछ अजीब सा नाम मैने पहली बार सुना था; लड़की का नाम ऐसा भी होता है!
उसने पीले रंग का कुर्ता पहना था काली पैंट उसपे सुट् हो रही थी. एकदम घने लहराते थोडे से घुंगराले बाल..
मैं मर् गया.
फिर बहोत दिन गुजर गए.
वो कोनसी टीव्शन लगायेगी तुम्हें क्या लगता है ठाकरे?
ठाकरे ने मुझे मरते हुए देखा था, अब वो मेरी कब्र पर फुल चढ़ा रहा था.
"देख अपने वेलू में दो ही टीव्शन है पहली बासा सर् की, और दुसरी सुरभी मैडम की. "
तो?
"तो कुछ नहीं वो बासा सर् के यहाँ आ रही है, शाम को 6 बजे आ जाना तु भी"
रोज 6 बजे गुलाबी सायकल पे आती वो मुझे दिखती..
उसे भी मैं दिखता, मेरे पास तब सायकल भी नहीं थी तो मैं विठ्ठ्ल की अट्लस सायकल उधार लेता बदले मे उसे सुवर्ण कस धूम्र नलिका पिलाता यानी गोल्ड फ्लैक सिगरेट
ये एकदम अग्रेजी.. उपासना की तरहा एग्लिश् शब्द
उसका इंग्लिश वाणीज्य था
और हमारा हिंदी वाणीज्य.
मेरी आँख से उसकी आँख मे; उसकी आँख से मेरी आँख मे सदियोसे पुरुष और स्त्री के बिच जो गुरुत्वाकर्षण जन्म लेता है वो बड़ने लगा था.
उपासना पहले मुझे सिर्फ देखती थी. फिर उसकी नजर मे कुछ बदलाव होणे लगे जैसे प्रकृति मे होते है.
मुझमें भी कुछ बदलाव हो रहे थे, जैसे मै ज्यादा पावडर लगा रहा था; रोज सुबह जिम जा रहा था; नए टिशर्ट और महगे पैंट खरीद रहा था; शारुख की फिल्मे ज्यादा देख रहा था इत्यादी इत्यादी.
तब सुहास ने पापा से कहां "लड़का बिगड़ रहा है"
पता नहीं तब उसे बाहर से क्या पता चल गया!
कुछ दिनों से उपासना के साथ एक लड़की रोज दिख रही थी, ठाकरे से पूछा तो उसने कहां "अरे वो प्रणाली जोशी है, एकदम खिसकी हुई लड़की.उसे गोलिया चालू है पागल का झटका लगा था उसे."
ठाकरे को सब पता रहता था. उड़ती हुई चिडिया के कितने बच्चे है ये भी वो बता सकता था!
एक दिन कॉलेज मे अर्थ शास्त्र का अर्थ हिन पिरिएड चालू था। तब सुषमा मैम आई और कहां की कल् से हमारे कॉलेज मे संगीत सिखाया जायेगा जिसको भी जो वादय पसंद है उसमे अपना नाम दे..दे!
अगले दिन मुझे समज नहीं आ रहा था की मुझे क्या पसंद है. ठाकरे ने बाजा बजा ने के लिए नाम दिया. वायलिन मुझे सुनना अच्छा लगता है लेकिन बजाने की कभी सोची नहीं.
फिर मै ढुंढने लगा उपासना ने कहां नाम दिया है और मुझे मिल गया वो बासरी बजाना सिखेगी.
मैं भी रोज बासरी सीखने के लिए जाने लगा.
उस दिन जब मै टीव्शन से घर जा रहा था तब बिच रास्ते मे उपासना सायकल रस्ते मे आड़ी लगाकर मदत मांग रही है.
बासा सर् की टीव्शन गाव से थोड़ा सा दुर् थी लगभग 3km दुर रास्ते मे दायी बाई और सब खेत.
हुवा क्या था की प्रणाली जोशी की ओढणी सायकल के चैन मे दोनों तरफ से फस गई थी इस बजह से उसके गले को फासी लग् रही थी.
सिचुवेशन् समजते ते ही मैं तेजी से भागा.. धीरे से चैन निकाल ली.
डरती हुई उपासना मैने आज पहली बार देखी थी.
फिर उसके तीसरे दिन एक जोरदार बारिश हुई. मेरा घर कॉलेज से नजदीक था, आज मै कॉलेज नहीं गया आराम फ़र्मा रहा था दोस्तोकि की बुक पड़ रहा था.
तभी सुहास डाइरेक् मेरे कमरे मे आया; " और कहां छोटे मालिक वो बड़े मालिक ने आपको बुलाया है"
क्यू?
"वो बाहर वर्षा हो रही है ना, तो कुछ लड़किया भीगती भागती अपने घर के देवडि के पास खड़ी थी,तो बड़े मालिक ने उन्हें अंदर आने को कहाँ; गरमा गरम चाय भजे खिलाये और बातो ही बातो मे लड़कीओने कहां की वो आपको पहचान ती है, तो चलिए"
नीचे उपासना आराम से भजे खा रही थी.
फिर उपासना रोज घर आने लगी, मेरे पापा के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो गई, और सुहास से भी.
उसका मेरे फैमिली के साथ ;मेरा उसके फैमिली के साथ एक फैमिली रिलेशन बन गया.
सुहास ने उसे खाना कैसे बनाते है ये सिखाया.
कल् उपासना का हैप्पी बड्डे था मुझे उसे कुछ देना था.
पुरा दिन भटका कुछ ढंग का मिला नहीं, इसलिए मेरी बासरी ही उसे गिफ्ट मे दे दी.
उसने कहाँ के वो ये बासरी कभी नहीं बजायेगी
मैं ने पूछा क्यू?
उस ने कहां बस यू ही.
एक रोज कैंटिग मे ठाकरे बोला अब तुझे प्रपोज़ करना चाहिए!
"ये पकड़ अंगूठी, मैं बनवा लाया तेरे लिए मार्केट से खास"
थैंक्स यार पर वो ये गिफ़्ट लेंगी नहीं!
क्यू?
यू ही!
फिर मुझे एक आईडिया आया
एक लेटर मैनें टाइप किया,उसमें मेरा नाम लिखकर ये लिखा था की अगर तुम् मुझसे प्यार करती हो तो साथ मे जो अंगूठी दे रहा हु उसे अपने बेंच पर रखना और चली जाना.
उसने लेटर पढ़ा पर अंगूठी बेंच पर नहीं रखी साथ लेकर चली गई...
पाच दिन हुए वो कॉलेज ही नहीं आई.
मुझे अब डर लग् रहा था,इसी डर नुमा टेंशन मे मैने जिंदगी मे पहली दफा सिगरेट पी, मुझे कस मारना विठ्ठ्ल ने सिखाया था.
आठ दिन पलट गए वो अबतक नहीं आई थी.
उसी दिन ठाकरे आया, भागता हुवा.. वो हाफ रहा था
क्या हुवा?
अरे वो उपासना.. उसका बाप फ्रॉड था उसे पोलिस ढुंढ रही है कही लोगों को जोड़ने के बिझनेस मे फँसाया है उसने.. सारी फैमिली भाग गई उपासना भी..!!!
फिर मेरे सामने सारे नक्षत्र, ग्रह, तारे.. घूम रहे थे. गोल गोल गोल गोल गोल गोल गोल गोल...
ब्लू काच पर कोई ठक् ठक.. कर रहा था.
गाड़ी रुक गई थी.
बाहर उपासना खड़ी थी नीली साडी मे, काले घने, घुंघराले बाल लिए. तो वही कर रही थी ठक ठक..
वो अंदर आ गई. क्या मैं यहाँ बैठ सकती हु?
वो हा.. बैठो ना प्लिज!
तो तहजीब सिख गए जनाब!
क.. क्या.?
कुछ नहीं, मुझे सुहास चाचा मिले उन्होंने बताया तुम् यहाँ बैठे हो "
बहोत साल हुए नहीं. मैने ऐसे ही कहाँ
हा 24 साल!
मुझे समज मे ही नहीं आ रहा था अब क्या बात करू.
तुम् कहाँ जा रही हो?
कांची के मठ मे, वहाँ हमारे गुरू उनके शिष्य को संन्यास दीक्षा देने वाले है ; और उनकी गादि पर बिठानें वाले है. वैसे तुम् कहाँ जाने वाले हो? सुहास चाचा ने कुछ बताया नहीं कहाँ की छोटे मालिक ने बोला है किसी को नहीं बताना की हम कहाँ जा रहे है, कही घर से भाग तो नहीं रहे हो तुम् दोनों और वो जोर से हसी..
नहीं भागना कैसा, पर आजकल मुझे भीड़ पसंद नहीं आती आटोग्राफ् के लिए पीछे भागते है!
हा देखती हु मै तुम्हारी फ़िल्में बहोत बड़े स्टार वाले एक्टर बन गए हो तुम् अगली फिल्म नवाज ऊदीन सीधीकी के साथ आ रही है ना तुम्हारी?
हा.. शायद, मेरा छोड़ो तुमने शादी कर ली?
हा दो बेटे है मेरे! और वो डॉक्टर है
अच्छा!
इतने मे गाडी रुक गई, स्टेशन पे पिले कलर मे लिखा था कांची..
चलो अपना मुकाम आ गया मैडम!
हा दोनों की एक ही मंजिल है!
नहीं उपासना रास्ते अलग है, एक होकर फिर अलग होने वाले रास्ते.
उपासना उसके डिबे मे चली गई बहोत जल्दी मे लग् रही थी.
मेरी नजर सीट पर गई जहाँ थोड़ी देर पहले उपासना बैठी थी वहाँ एक अंगूठी रखी थी..
मै मठ मे आ गया सारे भक्त नीचे बैठे थे, मेरी आँखे उपासना को ढुंढ रही थी, यही कहीं बैठी होंगी वो
वो अगूंठी उसे देना जरूरी था अब वो मै नहीं रख सकता था.
फिर मुझे स्टेज पे बुलाया गया, वहाँ सिद्ध पुरुष बैठे थे उन्होंने मुझे दीक्षा दे कर अपनी गादि सोप दी अब मैं एक मठाधी संन्यासी हो गया था.
शाम के 6 बजे थे दुर् आसमान मे पंछी घर लोट् रहे थे
सब तरफ एक शांती थी, उस पाश्वभुमि पर कोई बासरी बजा रहा था
मैने देखा उपासना के आँखों मे आँसू थे
विरह उसकी बासरी से बाहर आ रहा था धीरे धीरे..