रेड लाइट एरिया की तंग गलियो से विष्णु गुजर रहा था, हर एक घर उसे अपने अंदर समा लेना चाहता, लेकिन सौदा पक्का ना होने की बजेसे वो बस इधर उधर घूम रहा था।
आखिर कार उसे वो पसंद आ गई, दरवाजे़ पर बैठ कर आनेजाने वालों को बस.., देख रहीं थीं
विष्णु पास गया और बोला चलो अंदर।
दोनों अब उस छोटी सी रूम मे थे, जहा एक काॅट और कपड़े लटकाने के लिए एक हैंगर था।
"क्या यहा मै शराब पी सकता हु"..?
"नहीं जो काम यहा होता हैं बस उसी के लिए ये खोली हैं, अगर तुमे ये बात पसन्द् ना आए तो बाजू का घर खुला है! उसने शांती से कहाँ"....
"नहीं मै तो यूँ.. ही नर्वस हो गया इसलिए थोड़ी पीना चाहता हु बस थोड़ी"...
"पहली बार; और पहली धार के मर्द हो क्या"..?
हा वो...
"तो बस लौट जावो, तुम जो खुशी यहा ढुंढने आए हो.. नहीं मिलेगी यहा"...
"क्यु नहीं मिलेगी सबको मिलती हैं? विष्णु ने ताड़ से जवाब दिया...
"क्या तुम्हे शराब मे वो खुशी इस वक़्त मिलती हैं जिसके लिए तुमने पहली बार शराब पी थी"..?
वो चुप रहा थोड़ी देर तक, फिर कुछ सोच के उसने कहा... छत्तीस का हा लगभग छत्तीस का हो रहा हूँ, शादी नहीं हुई कारण कुछ भी हो लेकिन नहीं हो पायीं.. कभी कीसी लड़की को छुवा तक नहीं... तुमसे सच कहूं बुरी नजर से देखा सबको देखा.. करता भी क्या?
"तो इसलिए तुम यहा चले आए"..?उसने पूछा
"नहीं सुनो तो आगे, और एक बात सोची थी अगर शादी होगी या कोई मुझसे प्यार करेगी तभी पहली बार मै ये सब कुछ करुंगा तबतक बॉटल का ढक्कन नहीं खुलेगा मतलब नहीं खुलेगा"....
"वो तो पहली बार का लम्हा तुम जीना चाहतें थें"
"हा यही; यही चाहता था मैं लेकिन".....
"क्या हुआ हार गए खुद से"..?
ह.. ह.. वो विवशता से हसा, "काश हरता फिर एक मौका तो मिलता जितने के लिए यही जीवन का रूल हैं ना"...?
"मतलब मै नहीं समझी"..?
"क्या समझना उसमे, कुछ दिनों पहले पता चला मुझे कैंसर हैं..और कुछ महिने और".....
"अरे बस बस समझ गई"...
"तो अब मुझे वो चाहिए जिसके लिए मै यहा आया हु"...!
"हा तुम्हें अनुभव चाहिए, लेकिन जहां तुम जा रहे हो वहा इस अनुभव की कोई जरूरत नहीं हैं, तुम्हे तो अब किसी संन्यासी के पास होना चाहिए जो ये बता सके के ईस प्राण के पंछी को बाहर कैसे निकाला जाए... पर एक सच्ची बात कहे तुम्हें..ये सब नहीं करना चाहिए, अनुभव नहीं लेना चाहिए कुछ बाकी रहेगा तो शायद मौत तुमे एक मौका दे भी दे.. उस लम्हें को जीने के लिए".......
पो.. ली स.. पो..लिस...!!
कोई बाहर जोर से चिल्ला रहा था..
विष्णु वहाँसे भागने मे कामयाब रहा, उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा उस औरत को...
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एक साल बाद..
रेड लाइट एरिया की उन तंग गलियों में विष्णु ढूँढ़ रहा था उस दरवाजे़ मे बैठी औरत को जो.. आने जाने वालों को बस देखा करती थी.
वो आ गया उसी दरवाजे़ पे..
लेकिन वहा ताला था.., उसे वहा खड़ा देखकर एक पतला सा आदमी पास आया और बोला, कुछ सेवा करू बाबू?
नहीं, ये ताला क्यू हैं यहा पे वो कहा गई?
वो?.. कुछ अलग ही औरत थी बाबू हममें तो वो घुलमिल भी नहीं जाती थी उसका अपना अलग धंधा था..
पता नहीं कहा गई साली.. कुछ काम था क्या?
अब विष्णु उसे क्या बताता.. वो आज जिंदा था उसकी बजेसे..
उसने सच कहा था एक अनुभव जो जीने का रह गया था वही तुमे बजह देगा मौत से लड़ने की..
उसने उसकी बात मान ली थी, फिरसे एकबार औरत ने ही उसे दुबारा जनम दिया था..
लेकिन वो औरत कौन थी?.. क्या नाम था उसका ये पूछना तो वह भूल ही गया या शायद मौका ही नहीं मिला..
पर आज वो जिंदा था, और वो लम्हा अभी भी बाकी था...