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भंगुर

27 अप्रैल 2022

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भरी दोपहर मे भद्र ने अग्नि जलाया। आग की लप्टे जिस दिशा मे अपनी लाल जिभा दिखा रही थी वहां भद्र चल पड़ा। 
ये कठिन काम सिर्फ भद्र ही कर सकता था इसलिए कबीले वालों ने उसका चुनाव किया सारा कबीला गैर आर्य था। 
और आर्य के प्रमुख इंद्र ने उनकी सारी गाये चुरा कर एक गुफा मे बंद कर ली थी। 
इंद्र कोई आम प्रमुख नहीं था जिन गैर आर्ययौ ने उसे देखा वो उसका वर्णन कुछ इस तऱ्हा करते है: इंद्र का शरीर पृथ्वी से दस गुणा बड़ा है, उसकी दाड़ी, मुछे, और सर् के बाल हरे रंग के है जो तीन तालाब भर के सोम पिता है,जो अपना रूप बदल सकता है जिसने सूर्य के रथ का चक्र भी चुराया है, 
अपने पिता ‘त्वष्टा’ को उसने मार ही डाला। अनेक दैत्यों को भी उसने पराजित और विनष्ट किया, जिसमें से वृत्र, अहि, शम्बर, रौहिण के अतिरिक्त उरण विश्वरूप, अर्बुद, बल, व्यंश और नमुचि प्रमुख हैं। आर्यों के शत्रुभूत दासों अथवा दस्युओं को भी उसने युद्धों में पराभूत किया। कम से कम 50000 अनार्यों का विनाश उसके द्वारा किया गया।
"पूर्व दिशा मे एक काले पहाड़ की गुफ़ा मे इंद्र रहता है कबीले की गाये उसने वही बंदी बनाकर रखी है "
श्वानों की देवी ने भद्र से कहाँ और वो चली गई। 
भद्र आगे बड़ा। 
थोड़ी देर बाद आसमान मे घने काले बादल छाने लगे, पुरा आसमां स्याह हो गया। 
एक बिजली भद्र के पाव से लगभग थोड़ी दूरी पर गिरी। वो समज गया ये वार इंद्र ने किया है। 
भद्र एक आम मानव था उसके पास कोई दिव्यता नहीं थी 
लगातार सात दिनों तक वो बारिश मे चलता रहा। वह रुक सकता था कही छुप सकता था लेकिन वो चलता रहा। 
इंद्र के मित्र आवर्तक मेघ पानी बर्सा रहे थे। 
फिर भी भद्र उस पूर्व की काली पहाड़ी की गुफ़ा तक पहुँचा। 
इंद्र ने अपना वज्र निकाला और उसे फेक कर मारा लेकिन वज्र भी रुक गया। 
"तुम् एक सामान्य मानव हो फिर ये तुम् कैसे कर रहे हो", इंद्र ने पूछा. 
तुम् हार चुके हो इंद्र! दैत्य समाज ने तूम्हारी स्वर्गभुमि तुमसे हथिया ली तुम्हें कहीं का न छोड़ा फिर तुम् हमारी भूमि पर आये और कब्जा करने लगे, फिर वहाँ से भागकर तुम्हें इस गुफ़ा मे छुपना पड़ा, और अब देखो तुम्हारी शक्तियाँ इतनी शीन हो गई है की मुझ जैसे सामन्य मानव पर भी काम नहीं कर रही है! इसे ही जीवन की क्षण भंगुर ता कहते है मित्र! 
मैने तुम् लोगों को ईतना सताया फिर भी तुम् मुझे मित्र कह रहे हो...,? 
हा क्योकि हम अनार्य शांती प्रिय जीव है,तुम् हमारी गाये लौटा दो हम तुम्हें देवता बना के पुंजेगे। 
तुम्हारी गाये भीतर की गुफ़ा मे है जाओ लेलो! 
भद्र अंदर गया। सामने का नजारा देखते ही वो अपने घुटने पर बैठ गया.. 
सारी गाये मृत्यू पा गई थी वहाँ की गर्मी उन् जानवरो को बर्दास्त ना हो सकी और वो मर् गई। इंद्र उसके पास आकर बोला दुःखी मत हो मित्र सब क्षण भंगुर है। 
क्षण भंगुर ता ने सबसे पहले अमृत पिया था वो अब अमर है हम फिर से एक नई शुरवात करते है। 
                                 क्रमश

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रचनाएँ
अनुभव
5.0
ये पुस्तक मेरी कहानियों का प्रथम संग्रह है, जीवन;...मृत्यु; के बिच जो एक बहती हुई अनंत रेषा होती है इसके बारे मे भी ये कहानियां कुछ बोलती है। ये कोई मत, उपदेश, या किसी भी तरह का तत्वज्ञान नहीं ये सिर्फ बोलना है। कुछ पात्र आती हुई मुश्क़िलों का सामना कर आगे बढ़ जाते है, तो कुछ समस्या को सुलझा ना पाने के कारण उन्हीं आफतो को लेकर इस अनंत रेषा पर चलते है। हर पल एक अनुभव है! आप अनुभव पैदा नही कर सकतें आप को उससे होकर गुजरना होता है..!
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