बाबूजी के जानें से घर की रौनक चली गयीं सारी खुशियाँ गयाब सी हो गयीं जो रुपया दादाजी के ऑपरेशन के लिए रखें थें | वो सब पिताजी लें गयें थें अपने साथ देखते हीं देखते माँ ने मेरे लिए भी लड़का देखना शुरू कर दिया इस से मेरी माँ से अनबन भी हुई, पर सोचने पर यह एहसास हुआ की माँ अपनी जगह ठीक है. मेरी पीछे मेरी दो बहनें ओर है. वो भी माँ की ही जिम्मेदारी है. समय होते हुये हम सबकी शादी हो जाएं तो माँ का बोझ भी बहुत हद तक कम हो जाएगाँ माँ ने दादाजी के आँखों का इलाज करवाकर मेरी शादी भी करवा ली बरसों बाद बाबूजी का फ़ोन आया की वह हम सबको शहर लेने आ रहें है यह सब सुनकर हम सबको बहुत ख़ुशी हुई पर शहर जानें को कोई भी तैयार नही हुआ बाबूजी के लाख मनाने पर भी माँ ने उनकी कोई भी बात ना मानी एक दिन वह हम सबको लेने आये पर उनके साथ दादाजी के अलावा कोई ना गया मेरी शफी के एक साल बाद मेरी छोटी बहन की भी शादी हो गयीं ओर छह महीने बाद उसका तलक हो गया माँ का बोझ ओर बढ़ गया ओर चिंता भी इसी चिंता में, मेरी माँ का देहांत हो गया मेरा ससुराल बहुत बड़ा था, मैं भाग्यशाली थीं , जो इतने धनवान घर में, मेरी शादी हुई पर इस शादी से में खुश नहीं थीं. क्यूंकि मुझे सिर्फ अपनी छोटी बहन की चिंता खाएं जा रही थीं मैंने अपने पत्ति से बात की अगर वो मेरी बहन को हमारे यहां रहनें को जगह दे देंगे तो में उनका यह उपकार जिंदगी भर नहीं भूलेंगी उन्होंने इसके लिए तुरंत हामी भर दी उनके इस फैसले से में बहुत खुश हुई.
मेरे यहां आने से मेरी बहन का मन बदल सा गया वह बहुत खुश रहनें लगीं उसको खुश देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता बड़ी बहन के साथ - साथ में एक माँ का फ़र्ज भी बहुत ख़ूब निभा रही थीं तभी पता चला की मेरे पत्ति मेरी छोटी बहन सुधा को पसंद करने लगें है. उनकी इस ख़ुशी में, मैंने हमेशा उनका साथ दिया मेरे लिए मेरी ख़ुशी भी उतनी ही मायने रखती थीं, जितनी मेरे परिवार की मेरे लिए मेरा परिवार ही सब कुछ था. मैंने शुभ मुहूर्त देखकर अपनी बहन की शादी अपने पत्ति से करवा दी ओर हमेशा के लिए अपने पिताजी के पास शहर चली गयीं अपने दादाजी ओर सबसे छोटी बहन का ख्याल रखने वहां जाकर पता चला की पिताजी ने भी दूसरी सजादि कर ली थीं मेरी छोटी बहन को दूसरी माँ का प्यार ओर उपकार दोनों मिल गया था. और पिताजी को अपना हमसफर