यह उन दिनों की बात है, जब मैं कक्षा पाँचवी में पढ़ा करती थीं मेरे पिताजी मेरे हीं विद्यालय में एक चौकीदार थें. माँ सबके घरों में बर्तन धोया करती थीं हमारा परिवार ज़्यादा बड़ा नहीं थीं फिर भी घर में, बहुत गरीबी हुआ करती थीं | सारा दिन मुझे घर का काम करना पड़ता घर में, सिर्फ एक बीमार दादा जी के अलावा कोई भी साथ ना था.
माँ को काम पर से आने में रात हो जाती थीं पिताजी हमेशा शराब पीकर नशे में रहतें थें. हम तीन बहनें थीं कोई भाई ना था हमारा माँ के ऊपर हीं हम सबकी जिम्मेदारी थीं मेरी माँ बहुत कम पढ़ी लिखी थीं पर सिलाई, कढ़ाई का सब काम जानती थीं . अक्सर माँ ओर बाबू की आये दिन लड़ाई होती रहती बाबू रोज उन्हें यहीं ताने मारते की कब मेरा वंश आगे चलाएंगी तू कब मेरा सर गर्व से ऊपर उठाएंगी अब दे दें एक वारिश मेरे को भी बाबू की यह बात माँ को अंदर हीं अंदर खायी जा रहीं थीं एक दिन जब दिवाली आई तो, माँ ओर बाबू की लड़ाई शुरू हो गयीं इस लड़ाई में, मेरी छोटी बहन का सर फट गया जब बाबू जी ने माँ को मरने के लिए लौटा उठाया तो वह मेरी छोटी बहन को लग गयीं आस पास कोई डॉक्टर नहीं था, तो दादा जी ने उसके सर पर एक दुप्पटा बांध दिया चौट ज़्यादा नहीं लगीं थीं तभी खून बंद हो गया इस वजह से घर पर दिवाली नही बन पाई जबकि इस बार की दिवाली का हम सबको कितना इंतजार था इस हादसे के बाद कोमल बहुत शांत सी रहनें लगीं ना किसी से बोलती ना बात करती जबकि वो घर की सबसे चंचल ओर शरारती लड़की थीं उसको देखकर दादाजी भी बहुत उदास रहनें लगीं सबकी उदासी देखकर माँ बहुत ओर कहती की इस हँसते खेलते परिवार को किसकी नज़र लग़ गयीं माँ की यह सब बात सुनकर में दौड़कर माँ के पास आईं ओर उनको सीने से लगाया ओर कहां माँ आपके रहतें भला हमें किसकी नज़र लग़ सकती है, आप तो हमारी वो मुस्कान हो जो हमारे हारे हुये हौसलों को बुलंद करती हो यह सुनकर माँ जोरों से हँस पड़ी माँ को हँसता हुआ देखकर मेरा मन बहुत खुश हुआ
अक्सर जब माँ उदास होती तो बिल्कुल भी घर में मुझे अच्छा ना लगता..... ऐसे करते - करते कब में दसवीं कक्षा में पहुंच गयीं कुछ पता ना चला पिताजी ने अपनी नौकरी छोड़ दी थीं बस माँ के सहारे सारे घर का खर्चा चल रहा था | दसवीं पास होते हीं मैंने भी स्कूल में, पढ़ना शुरू कर दिया एक माँ का उपकार हीं था, जिसके भरोसे हम सबकी नईया पर हो रही थीं दादाजी के हाथ, पैरों ने भी अब जवाब दें दिया था उनकी आँख की रौशनी वापस लाने के लिए माँ दिन रात एक - एक रुपया जोड़ रही थीं सब अच्छा चल रहा था. पता नही कहां से बाबूजी को कहां से पता चल गया की माँ पैसा कहां रखती है, उन्होंने माँ के सभी पैसे निकाल लिए ओर गांव छोड़कर चलें गयें माँ के बार बार पूछने पर उन्होंने कुछ ना बताया की वें कहां जा रहें है बस चल दियें हम सबको अकेला छोड़कर