मेरा मानना है कि ताकत उसके पास होती है जिसके पास सत्ता होती है, और सत्ता उसके पास होती है जिसके पास बहुमत होता है. इस समय बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता में है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि नरेंद्र मोदी एक बड़े समुदाय के हीरो बन चुके हैं या यूँ कहिये कि एक ऐसे वर्ग के सर्वमान्य नेता बन चुके हैं जिसके पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है. मोदी जी को हीरो बनाने में उनके विरोधियों की सबसे अहम् भूमिका है. प्रकृति का एक सिद्धांत है कि जब आप किसी का बहुत अधिक विरोध करते हो तो उसका समर्थन शुरू हो जाता है. वि ज्ञान भी कहता है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया जरूर होती है. अगर आप मरा-मरा कहोगे तो लोगों को आपके मुंह से राम-राम सुनाई देने लगेगा. ठीक इसी प्रकार मोदी जी के साथ हुआ, जब उनके विरोधियों ने उनको बहुत अधिक बुरा कहना शुरू कर दिया तब एक समुदाय को लगा कि शायद यही व्यक्ति सही है और उन्होंने मोदी जी को अपना हीरो बना लिया. हिन्दू समाज कभी कट्टर नहीं रहा, खुद संघ भी कभी इस समाज को अपनी विचारधारा से पूरी तरह से सहमत नहीं कर पाया. “अहिंसा परमो धर्मः” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” के सिद्धांत को मानने वाला समाज आखिर क्यों इतना हिंसक और कट्टर हो गया, इसका कारण जाने बिना ये जानना मुश्किल है कि आखिर मोदी जी हीरो कैसे बन गए और बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता में कैसे आ गई. मुगलों ने भारत में ६०० साल राज किया, उसके बाद अंग्रेजों ने राज किया और उसके बाद जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो उन अधिकांश लोगों ने भारत को छोड़ दिया जिनके पूर्वजों ने भारत पर हुकूमत की थी, और जो भारत में रह गए उनमें से अधिकांश लोग ऐसे थे जो इसी भ्रम को मानते रहे कि हुकूमत उन्हीं की चल रही है. कांग्रेस ने इस भ्रम को बहुत चालाकी से जीवित रखा लेकिन एक बेहतर सामंजस्य के साथ, जिसे उसने सेक्युलर राजनीति का चोगा पहना दिया. उसने कभी भी इस भ्रम को मरने नहीं दिया और न ही सामंजस्य को टूटने दिया, और विपक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद भी अपना वर्चस्व बनाये रखा जिसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान स्व. इंदिरा गाँधी का रहा. लेकिन इंदिरा जी के बाद जो लोग आये वो इस सामंजस्य को बनाये रखने में नाकाम रहे और उन्होंने तुष्टिकरण की राजनीति शुरू कर दी. इस तुष्टिकरण की राजनीति ने बहुसंख्यक समुदाय में एक बगावत शुरू करा दी जिसे उन लोगों ने हवा दी जो लोग सब कुछ होते हुए भी किसी लायक नहीं रहे थे. संघ जैसे हिंदूवादी संगठन ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे और उन्होंने मुद्दा छेड़ा राममंदिर का, जिसका उन्हीं लोगों ने विरोध किया जो कि इसी भ्रम में जीवित थे कि उनके कथित पूर्वजों ने इस देश पर ६०० साल तक हुकूमत की है, और नतीजा हुआ कि बीजेपी की सरकार बन गई. हालाँकि उसके बाद फिर से कांग्रेस आ गई, लेकिन इस बार भी कांग्रेस उस सामंजस्य को बनाये रखने में कामयाब नहीं हो पाई, और धीरे-धीरे वो फिर से उसी तुष्टिकरण की राजनीती पर उतर आई जिसे मुलायम सिंह यादव, मायावती और लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं ने हवा दी. जिसका नतीजा ये निकला कि बीजेपी और संघ को फिर से मौका मिल गया और इस बार उनके हाथ में एक तुरुप का इक्का लग गया, जिसे मोदी जी कहा गया. बीजेपी और संघ ने मोदी जी को एक समुदाय विशेष के रोबिनहुड के रूप में प्रस्तुत किया और दुसरी ओर राहुल गाँधी जैसे पढ़े-लिखे, सभ्य और साफ छवि वाले युवानेता को “पप्पू” बनाकर पेश किया. जिस कांग्रेस ने १८ प्रतिशत जनसंख्या को ८२ प्रतिशत जनसंख्या के बादशाह का भ्रम बनाकर 60 साल तक राज किया, बीजेपी ने उसी ८२ प्रतिशत जनसँख्या को मात्र १८ प्रतिशत जनसंख्या का खौफ दिखाकर पूर्ण बहुमत से सत्ता कब्जा ली. बीजेपी की लगाई इस भगवा कुंड की अग्नि में ओवैसी, मुलायम सिंह, नीतिश कुमार, दिग्विजय सिंह, लालू यादव और आजम खान जैसे लोगों के प्रवचनों ने घी का काम किया और नतीजा सबके सामने है. एक और बड़ा उदहारण सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील और कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल का बाबरी मस्जिद प्रकरण पर अनावश्यक टालमटोल और मणि शंकर अय्यर जैसे नेताओं का गैरजरुरी बयान है. जो यह स्पष्ट करता है कि आज भी कांग्रेस सामंजस्य बनाने में असफल है. १८ प्रतिशत जनसंख्या को ये समझ लेना चाहिए कि वो कभी बादशाह नहीं बन सकती लेकिन कोशिश करनी चाहिए कि उसके बगैर भी कोई बादशाह न बन सके.
-ये मेरे खुद के विचार हैं, आपका इनसे सहमत होना या न होना जरूरी नहीं, अपने कटु शब्दों के लिए मैं क्षमा चाहूँगा. धन्यवाद. (इस लेख का कोई भी अंश अथवा सम्पूर्ण लेख प्रकाशित करने से हेतु लेखक की पूर्व अनुमति अनिवार्य है)
- मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
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