प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। प्रेमा मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया पहला उपन्यास है. यह उपन्यास मूलतः उर्दू भाषा में लिखा गया था. उर्दू में यह ‘हमखुर्मा व हमखवाब‘ नाम से प्रकाशित हुआ था. यह उपन्यास विधवा विवाह पर केंद्रित है, जो प्रेमा पूर्णा और अमृतलाल जैसे पात्रों के इर्द-गिर्द रचा गया है और उनके जीवन का चित्रण कर तत्कालीन सामाजिक स्थिति को उजागर करता है. प्रेमचंद के 1906-1936 तक के साहित्य सामाजिक दस्तावेज के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं। उन्होंने प्रत्येक समस्याओं पर जीता जागता कलम चलाया है। हमें उनके उपन्यास में केवल समस्या ही नहीं देखने को मिलता, बल्कि, उसके कारण तथा उपचार की ओर भी संकेत स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है। ‘प्रेमा’ में भी उन्होंने तत्कालीन हो रहे सामाजिक सुधार, उनके विरोध, स्त्रियों की दशा और पंडितों के बाह्याडम्बर और बाबाओं के नैतिक पतन व स्वार्थता को जीवन्त रूप में चित्रित किया। बाल-विवाह, विधवा विवाह, पुरूषसत्तात्मकता में तत्कालीन स्त्रियों की सामाजिक स्थिति, पंडितों के पाखण्ड तथा विलासयुक्त क्रियाकलापों को हम प्रेमचंद के इस प्रारम्भिक उपन्यास में ही देख सकते हैं। तत्कालीन समाज में स्त्रियों की क्या स्थिति थी, समाज उनके एक जीवन को कितने-कितने किरदारों में ढालना चाहता है, उसे हम ‘प्रेमा’ उपन्यास में बख़ूबी देख पाते हैं।
133 फ़ॉलोअर्स
31 किताबें