उसने उसके भिगोए हुए दो बादाम खा लिए, ये अब उसकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। वो हमेशा अस्वस्थ रहती थी, वो भी सिर्फ 23 साल की उम्र में जब उसका यौवन और सौंदर्य किसी को भी प्रभावित कर सकता था लेकिन चांद में दाग की तरह कमजोरी के निशान उसके चेहरे पर भी दिखाई देने लगे।
उसके माता पिता की मौत हो चुकी थी केवल 16 वर्ष की आयु में, तो उसके चाचा और चाची ने उसे पाला पोसा लेकिन कोई कितना भी कर ले असली माता पिता के आगे पराए लोगों का प्रेम फ़ीका ही पड़ जाता कोई हक से कुछ मांग भी नहीं सकता है, हमेशा बचे -खुचे खाने और 4 जोड़ी घिस पिट चुके कपड़ों से अपना काम चला लेती थी। हां घर के कामों में ज़रुर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करती थी, एक अनाथ को पालने पोसने का उपकार जो चुकाना था उसे, पर उसे क्या पता था कि वो इन उपकारों के बदले अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार भी खो देगी। उसके लिए कई धनवान घरों के बेमेल रिश्ते आए, कोई उम्र में दुगना तो कोई अत्यंत ही कुरुप।
जब वो बीए की पास कर ली तब ये जताया जाने लगा कि अब उसका ज्यादा दिन खर्चा उठाया जाना संभव नहीं है, घर के एक विवाह समारोह में उसकी मुलाकात नंदन से हुई जो कि एक किराए के कमरे में महानगर में रह रहा था, उसकी मां उसके बड़े भाई के साथ गांव में रह रही थी जो कि थोड़ी बहुत खेती से अपना गुजर बसर कर रहा था। नंदन शार्ट टर्म तकनीकी कोर्स कर चुका था, वो बड़े शहर में बस अभी पैर जमाने के लिए प्रयासरत था, महिने के कुल 15 हजार कमाता और 5 हज़ार अपनी मां को भेज देता।
नंदन 25 साल का करीब 5 फीट 8 इंच का गेहुंए रंग का मनोहर लड़का था लेकिन पढ़ी लिखी, नौकरी पेशा लड़कियां उसकी संघर्ष पूर्ण जिंदगी की वजह शादी के प्रस्ताव निरस्त कर दिया करती थी। तभी नंदन की मां की निगाह निहारिका पर पड़ी तो उसके चाचा-चाची को विवाह का प्रस्ताव दे डाला, वो ना नुकूर करने लगे।
उनके जाने के बाद उन्होंने ये बात निहारिका को बताई, “हम नहीं चाहते कि अब तुम्हारे जिंदगी में कोई दुख आए तो हमने नंदन की मां को ये कहकर टाल दिया कि वो अभी शादी नहीं करना चाहती है तुम्हारें माता पिता कुछ संपत्ति भी नहीं छोड़ गए तुम्हारे लिए, छोड़ते भी कैसे? खुद जो आभाव में जी रहे थे, अब तुम्हारे लिए ऐसा घर ढूंढेगे कि रानी बनकर रहो तुम” उसकी चाची ने मुस्कुराते हुए कहा।
निहारिका को नंदन पसंद आ चुका था वो बोली मुझे लगता है कि वो मेरे लिए ठीक रहेगा अभी उम्र ही क्या है उसकी मकान भी आज ना कल बन ही जाएगा।
उसे लगा अब उसकी सुनने वाला कोई नहीं, क्या पता धनवान के नाम पर कैसा लड़का उसके पल्ले बांध दे ये लोग।
उसके चाचा ने कहा “हमें क्या अगर तुम ख़ुश तो ये ही सही”।
एक महीने के भीतर नंदन और निहारिका की शादी हो गई, नंदन की मां निहारिका को बेटी की तरह प्यार करती उससे जो बन पड़ता उसके लिए करती। निहारिका भी उसे अपनी मां की तरह मानती थी और सोचती शायद धनवान घर में भी उसे वो प्रेम नहीं मिलता जो यहां मिलता है।
15 दिन गांव में रहने के बाद नंदन की छुट्टियां खत्म हो गई और वो नंदिनी को लेकर महानगर में अपने कमरे पर पहुंचा।
एक छोटा सा कमरा और उससे सटा हुआ लगभग बाथरुम के आकार का किचन देखकर निहारिका हैरान हुई कि शहर में 5- 4 हजार किराया देकर भी कितनी छोटी सी जगह मिलती है कि इंसान ठीक तरह से पैर भी ना फैलाकर सो पाए ना ही थोड़ा बहुत टहल पाए।
शादी के एक दो महीने सब ठीक चला, उसका जीवन चंपा-चमेली सा हो गया लेकिन एक दिन उसे भयंकर टायफाइड हुआ तो नंदन के थोड़े बहुत जमा किए हुए पैसे निहारिका के अस्पताल के बिल में ही खत्म हो गए।
वो पहले से ही एनिमिया की शिकार थी और टायफाइड से और भी ज्यादा पतली हो गई, उसकी ज़र्जर काया जैसे ही बिस्तर से उठने का प्रयास करती चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ती।
अब नंदन की जिम्मेदारी दोहरी हो गई उसे घर का काम करके अपने दफ़्तर जाना पड़ता ऐसा तीन महीने तक चलता रहा। तब उसने सोचा कि शायद बादाम खाने के बाद निहारिका मजबूत हो जाए, तो वो दफ़्तर जाने से पहले दो बादाम भिगोकर रख जाता जिसे बड़े ही विश्वास के साथ निहारिका खा लेती, एक बार ऑफिस से आते वक्त नंदन के पैर में फ्रैक्चर आ गया और उसके ऑफिस वालों ने उसका प्लॉस्टर करके उसे घर पहुंचाया उसके हाथों में भी सूजन थी।
उसे ऐसी हालत में देखकर निहारिका घबरा गई और अपने बिस्तर से धीरे से उठकर उसके हाथ में पानी का गिलास दिया। नंदन अभी भी निहारिका के लिए ही फ़िक्रमंद था कि वो उसका ध्यान कैसे रखेगा। धीरे- धीरे निहारिका ने अपनी हिम्मत बढ़ाई और शाम का खाना जमीन पर बैठकर बनाया वो धीरे- धीरे रोटी बेलकर एक थाली में रखने लगी और फिर उन्हें सेंकने लगी। थोड़ी देर दाल छौंक कर कूकर पर चढ़ा दी, वो काफी दिनों से बिस्तर पर थी तो उसे काफी थकान महसूस हो रही थी लेकिन उसे विश्वास था की बादाम खाने के बाद वो अब स्वस्थ हो रही है, उसने अपने हाथों से नंदन को खाना खिलाया क्योंकि नंदन के हाथों में पट्टियां बंधी थी, धीरे धीरे वो घर के पड़ोस की दुकान से सब्जियां और किराना भी खरीदकर लाने लगी, सूरज किरणें मानों उसके कमजोर शरीर में नई उर्जा भर रही हो, धीरे धीरे निहारिका पूरी तरह स्वस्थ हो गई और नंदन की चोट भी ठीक हो गई और दोनों की ज़िंदगी फिर पटरी पर आ गई।
दो बादाम सिर्फ पोषण का साधन नहीं थे अपितु त्याग, विश्वास और समपर्ण की कहानी भी कहते थे जो नंदन और निहारिका ने मिलकर लिखी।
शिल्पा रोंघे
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