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"कौन है असली कातिल....??" ( अध्याय–3)

12 सितम्बर 2021

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          " कौन हैं असली कातिल..??"





" बस एक बार मेरे हाथ खोल दो।" निशा ने रुआंसी होते हुए कहा।

" ओह! मुझे जो इतना सताया है तुम लोगों ने मिलकर उसका हिसाब बराबर तो कर लेने दो। दूसरो को जिंदा मारते हुए शर्म नहीं आती है क्या तुम लोगों को? खुद कि जान इतनी प्यारी है और दूसरो की..??" कहते हुए वो उपहास करते हुए हंसा लेकिन हंसी में भी एक दर्द छुपा हुआ है।

" मैंने किसी को नहीं मारा है। शायद तुम किसी गलतफहमी के शिकार हुए हो। मैं नहीं जानती हूं कि तुम कौन हो?? मैं तो शिवानी के साथ आई थी जंगल में। प्लीज मुझे मत मारो।" गिड़गिड़ाती हुईं निशा बोली।
"शिवानी " सुनकर उसे झटका लगा। ये तो वहीं लड़की है जिसने उसे हॉस्पिटल में एडमिट कराया था।


" कौन हो तुम? अपना नाम बताओ??" उसने पूछा।

" निशा, निशा नामधारी।" रुंधी हुईं आवाज़ में निशा बोली।

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" निशा ...., निशा।" चारों ओर यहीं आवाज़ गूंज रही है।
सब इंस्पेक्टर केशव, शिवानी, रावी और ईश्वरी सभी निशा को चारों दिशाओं में खोज रहे है।


" शिवानी! मुझे लगता हैं कि आप दोनों को यहां से चले जाना चाहिए।" केशव ने शिवानी और ईश्वरी कि ओर मुखातिब होते हुए कहा।

" नहीं सर, हमारी दोस्त मुसीबत में पड़ चुकी हैं तो कैसे हम अपने घर चले जाए? वो मेरे साथ आई थी अगर मैं चली भी गई तो उसके मॉम, डैड से क्या कहूंगी?? कैसे उन्हें कहूंगी कि निशा गुमशुदा हो गई है वो भी मेरी वजह से। मैं अपने स्वार्थ के लिए किसी भी कि जान मुसीबत में नहीं डालना चाहती हूं। जब तक निशा सही सलामत हमें मिल नहीं जाती हैं तब तक मैं यहां से हिलूंगी भी नहीं।" शिवानी ने डंके कि चोट पर कहा। ईश्वरी ने भी हामी भरी।

" लेकिन अगर किसी ने निशा कि तरह ही आप दोनों को भी किडनैप कर लिया तो...?? जरा सोचिए भगवान न करें ऐसा हो लेकिन हमें सावधान रहने कि सख्त जरूरत है। क्या पता कि इस जंगल में ही कहीं पर कोई संदिग्ध व्यक्ति छुपा बैठा हो तो..? आप दोनों या हम दोनों पर उसकी नज़र टिकी हुई हैं तभी तो यहां पर एक भी सुराग तक हमारे पहुंच से बाहर है। समझने कि कोशिश करो कि यहां पर कुछ भी हो सकता है। आप दोनों पर यहां खतरा है। शायद उस असली कातिल को भनक लग चुकी है कि हम इस ओर छानबीन करने आए हैं। अगले पल क्या हो जाए हमारी सोच से परे है। प्लीज मेरी बात मानिए। आप अपनी मां कि ओर से केस लड़ने वाली है तो मैं आपको एक अच्छे वकील के बारे में जो बताने जा रहा हूं ध्यान से सुनिए।" केशव ने समझाते हुए कहा शिवानी कि ओर मुखातिब होते हुए।


10 मिनट बाद।

" सर हम कहां जा रहे हैं?" केशव के बगलवाली सीट पर बैठे हुए हवालदार नटवरलाल ने सवाल किया।

" राधावल्लभ अनाथ आश्रम।" केशव ने सहजता से कहा।

" कुछ सबूत मिले उस लॉकेट के जरिए खूनी के बारे में?" सब इंस्पेक्टर ने हवालदार नटवरलाल से पूछा।

"सर, आपके कहें मुताबिक आधे घंटे में ही मैंने अपना काम पूरा कर लिया था लेकिन आपसे कॉन्टेक्ट नहीं हो पा रहा था। ताज्जुब कि बात है कि यहां के किसी भी गोल्ड शॉप से वो  "गोल्ड लॉकेट" नहीं खरीदी गई है। मैंने कुछ कॉन्स्टेबल’स को भी लॉकेट के बारे में पता लगाने के लिए कह रखा है सर। लगता हैं कि वो कातिल कानपुर का नहीं है।"  नटवरलाल ने एकतरफा कहा।

" तो अब उस अनाथाश्रम से ही हमें कुछ पता लग सकता है कि दामिनी वहां कैसे पहुंची और फिर किसने उसे पढ़ाया -लिखाया था। सब कुछ वही पर से पता चलेगा।" सब इंस्पेक्टर केशव ने आत्मविश्वास के साथ कहा।



वकील  "भास्कर शहाणे"  का ऑफिस।


" हमें पूरी उम्मीद है कि आप जरूर मेरी मां को न्याय दिलाने में मदद करेगें हमारी। जितनी भी चाहें आप फीस मांग लीजिएगा लेकिन मुझे मेरी मां  सही सलामत चाहिए।" शिवानी ने कहते हुए हाथ जोड़ लिए। अपनी मां कि प्रति उसकी यह तड़प साफ नजर आ रही है। ईश्वरी उसके कंधे पर हाथ रखे खड़ी है।


" ये तो हमारा फर्ज बनता है कि हम बेगुनाह को न्याय दिलवाए और गुनाहगार को उसके किए कि सजा दिलवाकर ही चैन कि सांस ले। अभी दो दिन का वक्त है हमारे पास कुछ सबूत इकट्ठे करने के लिए। मैं जानता हूं कि आपको मेरे पास सब इंस्पेक्टर केशव ने भेजा है क्योंकि उसने कॉल पर पहले ही मुझे काफी कुछ बताया था। मै तो तैयार हूं आपकी मदद करने के लिए और मुझे अगर पैसों कि खातिर अपना ईमान भी बेचने को कहा जाए तो भी मैं गुनाहगार को यूं आज़ाद होने कतई नहीं दूंगा चाहें कुछ भी हो जाए। जो सच है वो सच है मेरी नज़र में। कोई कातिल कितना भी अमीर क्यों न हो वो एक न एक दिन जरूर सलाखों के पीछे खड़ा नज़र आएगा। आप दोनों को मेरी थोड़ी सी मदद करनी पड़ेगी क्योंकि मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी को जिन इंस्पेक्टर ने गिरफ्तार किया है वे भी कोई नेकदिल आदमी नहीं है। पहले तो आपकी मां से मुलाकात होनी जरूरी है। चलिए उनसे मिल आते हैं।" भास्कर ने उन दोनों को बराबर देखते हुए कहा। दोनों ने सहमति में सिर हिलाया।




" राधावल्लभ अनाथ आश्रम।" बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है गेट पर। केशव पार्किंग साइड में जीप खड़ी करता है।

आश्रम के प्रांगण में दाखिल होते हुए केशव अपनी चील-सी निगाहें चारों ओर दौड़ाए जा रहा है। हवालदार नटवरलाल और रावी उसका अनुसरण कर रहे हैं।


" साहब! किनसे मिलना है आपकों?" एक सफेद पैंट, कुर्ता पहने व्यक्ति ने पूछा।

" यहां कि अध्यक्ष "श्रीमती वसुंधरा" देवी जी से  मिलने आए हैं थोड़ा काम है उनसे।" केशव ने बड़ी शालीनता से कहा।

" लेकिन उनका तो निधन हो चुका है करीबन तीन महीने पहले ही। अभी अध्यक्ष उनके पति श्री "लोभेश सहगल" जी है। ये साहब कभी- कभार ही आते हैं इस आश्रम में यहां कि व्यवस्था को परखने। अभी तो केवल आप "मालती बेन" जी से ही मिल पाएंगे यहां। मालती बेन के पास ही आपको आपकी चाही जानकारी सहूलियत के साथ मिल जायेगी। मालती बेन यहां कि व्यवस्था और यहां के निवासियों कि देखरेख के लिए नियुक्त की गई है।आगे से जाकर दाएं कमरे कि ओर बढ़ जाइएगा, वहीं उनका कक्ष है। उस व्यक्ति ने सहजता से कहा।


" धन्यवाद आपका। हम निःसंकोच मिलेंगे  "मालती बेन" जी से।" केशव ने सप्रेम कहा। वह व्यक्ति मुस्काता हुआ वहां से चला गया। 


" मालती बेन का कक्ष।"


" पोलिस साहब! वो भी अनाथ आश्रम में? आइए तशरीफ लाइए।" अपनी कुर्सी पर से उठकर दरवाजे के पास जाकर फीकी तरह से मुस्कुराते हुए मालती बेन ने कहा।

" माफ कीजिएगा बस हमे कुछ जानकारियां उपलब्ध करनी है आपसे। एक विशेष अभियान शुरू किया गया है जिसके तहत हमे इस अनाथ आश्रम और यहां रहने वाले लोगों के बारे में कुछ जानकारियां इकट्ठी करनी है।" केशव ने कहा।

" पहले आराम से बैठिए साहब! ठंडा या गर्म कुछ लेंगे आप?" मालती बेन ने मुंह टेढ़ा करते हुए पूछा।

" नहीं.. नहीं, जी आपका धन्यवाद। काफ़ी व्यस्त रहते है हम इसलिए ज्यादा वक्त..." केशव आगे बोलता उसके पहले ही मालती बेन बोल पड़ी।

" जी साहब! जानती हूं कि आपको कहां फुर्सत होती होगी। वर्दी वाले दिन हो या रात फुर्सत से खाना तक खाते नहीं है तो किसी से बातें करना तो क्षणिक वक्त पर ही हो सकता है। कहिए क्या जानकारी चाहिए आपको?" मालती बेन ने अपने होठों पर मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा।


" मिसेज ,  " दामिनी जी " के बारे में आपको कुछ जानकारी अगर है तो हमसे कृपया साझा कीजिए? हमने सुना है कि आप लोगों ने उस अनाथन को पढ़ा - लिखाकर  काबिलियत दी थी। वो नर्स बन चुकी थी फिर खुद के रहने के लिए उसने  " कोमलांगी गली " में अच्छा -सा घर भी खरीद लिया था अपने दम पर। सच में आप लोगों ने बड़ा ही पुनीत कार्य किया है। गर्व है आप लोगों पर , आप अनाथों कि भी जिन्दगी सुधारने में जुटे हुए रहते हैं।" केशव ने तारीफों के बांध खड़ी करते हुए कहा। नटवरलाल और रावी बड़ी स्थिरता से केशव कि वाक्- चातुर्यता को देखकर मुस्कुरा रहे हैं।


20  मिनट बाद।


" जेल में मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी।"


" मिल लीजिए।अभी इंस्पेक्टर मोहन सर को यहां आने में देर लगेगी क्योंकि अभी वो तो कहीं बाहर गए हुए हैं।" ताला खोलते हुए हवालदार ने कहा।


" मां..!" शिवानी ने तेज आवाज में कहा। एक कोने में दीवाल से टिककर बैठी चंद्रिका के कानों में ये आवाज पहुंची।

" देखो मां, मैं तुम्हें जल्दी ही यहां से निकलवाऊंगी। तुम मुझ पर विश्वास करो। मुझे पता है कि मेरी मां ऐसा कुछ कर ही नहीं सकती है जिससे उनकी बेटी को दुख पहुंचे। देखिए मेरी ओर, देखो ना।" कहते हुए शिवानी ने अपनें हाथों से चंद्रिका के गालों को थामा। उसका जमीन कि ओर झुका हुआ चेहरा देखकर शिवानी को बेचैनी महसूस हुई।


" हट... भाग यहां से। तू मेरी बेटी नहीं है।" झटके से शिवानी को धक्का देते हुए चंद्रिका चीखी।
भास्कर , ईश्वरी और शिवानी दंग रह गए।


" मां, आपकों हो क्या गया है? क्यो आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रही हो? माना कि मैं आपकी बाते नहीं सुनती हूं अपनी मन कि करती हूं लेकिन आप तो आज कि जैसी पहले नहीं थी। बोलो ना क्या हुआ है? किसी ने आपकों टॉर्चर तो नहीं किया है न...?? शिवानी अपनी मां कि ओर बढ़ते हुए बोली।

" हत्यारिन हूं मैं। जिसे चाहूं कभी भी मार सकती हूं। अपनी जान कि खैरियत चाहती हो तो चली जाओ यहां से। दोबारा मत आना यहां नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा।" तीखे स्वर में वो बोली। हवालदार भी एक बारगी कांप उठा।

" आंटी! प्लीज ऐसा मत कहिए। शिवानी आपके बिना नहीं रह सकतीं हैं। वो पहले से ही काफ़ी परेशान हैं और इसने तो सुबह से खाना भी नहीं खाया है आपकी खातिर। आपसे मिलने के लिए तड़प रही थी बेचारी। और एक आप है जो अनर्गल बातें कर रही है। हम आपकों कुछ नहीं होने देंगे विश्वास कीजिए।" ईश्वरी ने शिवानी के कंधों को पकड़ते हुए कहा। शिवानी जमीन पर बैठी हुई अपनी मां को देखते हुए रो रही है। यहीं मां कल कितनी अच्छी तरह से बात कर रही थी और आज इनकी ये हालत?

" जाओ तुम सब। मैं खूनी हूं। फांसी होगी मुझे फांसी....। शिवानी मेरी असली औलाद नहीं है बल्कि ये तो कचरे के ढेर पर मिली थी। जरा सा प्यार क्या दे दिया इसे मैनें, ये तो सिर पर चढ़कर तांडव करने लगी।" कहते हुए चंद्रिका ने दीवार कि ओर मुख कर लिया। अंधेरे कि ओर वह बैठी हुई शून्य में ताकने लगी।


" सुन लिया तुम सबने या कुछ और भी सुनना बाकी है? " पीछे से केशव, शिवानी, ईश्वरी और हवालदार को इन शब्दों के साथ किसी कि ऊंची आवाज़ सुनाई दी। पीछे पलटकर देखने पर इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर नज़र आए।

" आपने ही जरूर कुछ किया होगा मेरी मां के साथ। आपकों मैं नहीं छोडूंगी।" शिवानी उठ खड़ी हुई और उसने मोहन ठाकुर कि ओर गुस्से से देखते हुए कहा।

" क्या करोगी?? मेरा कत्ल? अपनी मां कि तरह खूनी बनोगी? ओह!! मां और बेटी दोनों एक ही थाली कि चट्टी- बट्टी है। जरा मैं भी देखूं तो कि तुम क्या बिगाड़ सकती हो मेरा। चलो जाओ यहां से। अदालत में मिलना जब तुम्हारी मां को फांसी कि सजा सुनाई जाएगी।" आंखे तरेरते हुए इंस्पेक्टर मोहन बोला। हीन भावना से शिवानी ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा।


" प्लीज शिवानी! अपनी भावनाओं को अभी अपनी कमजोरी मत बनने दो। याद रहें कि सच का साथ खुद भगवान भी देते है। कमजोर नहीं मजबूत बनो। हमारे पास दो दिन है और इन दो दिनों में हम बहुत कुछ कर सकते है। अभी यहां से चलो।" ऐडवोकेट भास्कर ने शिवानी को समझाते हुए कहा।



" भास्कर जी! अपनी क्लाइंट कि नादान बेटी को जरा उपदेश दीजिए कि अपने कायदे में रहे। मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी कुसुरवार है या नहीं ये फैसला अदालत सुनिश्चित करेगी। अब आप सब जाइए यहां से।" मोहन ने ऐंठते हुए कहा। मानों इन सबका यहां रुकना उसके लिए भारी पड़ जाएगा।

शिवानी को समझाते हुए ईश्वरी उसे वहां से बाहर निकालकर कार के पास लाती हैं। भास्कर कॉल पर किसी से बातें करते हुए कार के बोनेट के नजदीक जाकर खड़ा हो जाता है।




" राधावल्लभ अनाथ आश्रम।"


" जी तो आपका कहना है कि "दामिनी"  , को पूर्व अध्यक्ष "श्रीमती वसुंधरा" जी कहीं से उठा लाई थी तब दामिनी कि उम्र 9 साल कि थी। उन्ही ने दामिनी को पढ़ाया, उसका सारा खर्च वहन किया। ये तो काफ़ी अच्छी बात है कि वसुंधरा जी ने किसी अनाथ को मौत के मुंह से न सिर्फ बचाया है बल्कि उसकी परवरिश भी अच्छे से करी थी।" केशव ने कहा।

" हां साहब! बड़ी नेक दिल कि थी वसुंधरा जी। सबसे हंसती -बोलती थी। यहां रोज अनाथ बच्चों से बाते किया करती थी। लेकिन अच्छे लोगों को ही भगवान जल्दी बुला लेते हैं फिर बचती हैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उनकी यादें ही। उनके पति इस आश्रम को चलाते हैं सारा खर्च वहन करते हैं जब से वसुंधरा जी गई है तब से। बड़ा नाम है लोभेश जी का। अक्सर वसुंधरा जी उनके साथ मिलकर गरीबों को दान दिया करती थी। लेकिन साहब को चाह थी तो बस एक वारिस की। वसुंधरा जी शादी के 5 साल बाद भी मां नहीं बन पा रही थी। इसीलिए आश्रम के बच्चो को खूब लाड़- प्यार किया करती थी। यहां लड़को कि तुलना में लड़किया ज्यादा है क्योंकि आज के युवाओं को लड़की बोझ लगने लगी है। शहरों में बीच सड़क पर, कचरे के ढेर पर और न जाने कहां ²  पर नवजात बच्चियां फेंक दी जाती हैं। इन्हे देखने वाला कोई नहीं होता साहब। मुझे पता है कि मां -बाप आजकल लड़के ही चाहते हैं लड़की के नाम से ही कांप उठते हैं वे लोग। मैं देखती थी कि दामिनी को वसुंधरा जी अपने घर भी ले जाया करती थी ममतावश। दामिनी का नामकरण भी उन्हीं ने किया था। उनके घर में दामिनी स्वच्छंद खेला करती थी फिर बड़ी होने लगी। इधर लोभेश साहब को दामिनी यानि कि अनाथ लड़की जरा भी भाती नहीं थी। पता नहीं क्या चलता रहता था उनके मन में।" कहते हुए मालती बेन झिझककर रुक गई।


" फिर क्या दामिनी को वसुंधरा जी ने आश्रम में हमेशा के लिए छोड़ दिया था??" ये प्रश्न नटवरलाल के मुंह से निकला।


" नही साहब! दामिनी से वसुंधरा जी को लगाव हो गया था। दामिनी को देखें बगैर वसुंधरा जी को चैन नहीं मिलता था। फिर पता नहीं कैसे उन्हें हार्ट प्रॉब्लम्स वाली बीमारियों ने घेर लिया। कहीं से 11 साल कि दामिनी को ये पता चला कि उसे वसुंधरा ने कचरे के ढेर से उठाया था। दामिनी का बालमन ये सुनकर स्तंभित रह गया। वो तो वसुंधरा जी को अपनी सगी मां मानती थीं। लेकिन अब दूसरे के मुंह से अपने लिए "कचरे कि ढेर" शीर्षक सुनकर वो टूटती जा रही थी। फिर भी वसुंधरा जी से दामिनी ने इस बारे में कुछ नहीं कहा था। समय बिता दामिनी को अच्छे हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए वसुंधरा जी ने उसे दिल्ली भेज दिया था। फिर कुछ वर्ष बाद दामिनी को एक और बात पता चली जिसने उसे हिला डाला?" कहते हुए मालती बेन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।





आगे कि कहानी अगले भाग में।


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