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"कौन है असली कातिल....??" ( अध्याय–4)

12 सितम्बर 2021

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        " कौन हैं असली कातिल..??"


" सुनो शिवानी! जो अभी जेल में बंद हैं जिनसे हम अभी मिले हैं वो महिला कोई और ही है। तुम्हारी मां वो नहीं है।" भास्कर ने शिवानी कि ओर मुखातिब होते हुए कहा।

" क्या ?", निशा बुरी तरह से चौंकी। 

" ये आप क्या कह रहे हैं?" ईश्वरी ने सवाल किया।

" फिलहाल तो पहले हमें यहां से जाना है। मेरे घर चलिए। वहींं पर मैं आपकों अच्छे से समझा पाऊंगा।" भास्कर ने कार में बैठने के लिए इशारा करते हुए दोनों से कहा।


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" कौनसी बात ? " केशव ने जिज्ञासा से ओतप्रोत होकर कहा। तभी मालती बेन का सेलफोन बज उठा। 


" थोड़ी देर में आती हूं।" कहकर मालती बेन उठ खड़ी हुई। अपने कार्यालय कक्ष से बाहर निकल कर प्रांगण में एक कोने में जा खड़ी हुई फिर बातें करने लगी फोन को कान के पास ले जाकर।


" सर! मुझे तो लोभेश पर ही शक हो रहा है कि कहीं उसने 
दामिनी को वसुंधरा जी से अलग करने के लिए जरूर कोई ऐसी बात कहीं होगी जिसने दामिनी को तोड़कर रख दिया होगा ।" रावी सोचता हुआ बोला।

" वसुंधरा जी का निधन होना फिर दामिनी का खून? कोई तो संबंध है इन दोनों में।" नटवरलाल ने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा। काफी देर बाद भी मालती बेन जब अपनें कक्ष में नहीं आई तो सब इंस्पेक्टर केशव को अजीब लगा। तीनों बाहर प्रांगण में आए और देखा कि मालती बेन जो थोड़ी देर पहले यहीं पास में खड़ी फोन पर बाते कर रही थी किसी से वह नदारद हो चुकी हैं।


" काका! आपने मालती बेन को देखा है क्या? " केशव ने एक काका के पास जाकर उनसे पूछा। ये काका  वॉचमेन है इस आश्रम के जो प्रांगण के दूसरी ओर बिल्कुल गेट के  नजदीक कुर्सी पर बैठे हुए है।

" हां साहब! जल्दबाजी में वो कहीं चली गई है।" प्रतिउत्तर देते हुए काका ने जम्हाई ली।

" क्या यहां लोभेश जी आते हैं कभी महिने में?" केशव ने पूछा।

" आते तो है संग में मालती बेन को भी लेकर आते हैं। दोनों काफी वक्त साथ रहते हैं। फिर मालती बेन अकेली आया करती है जब साहब किसी काम से बाहर गए हुए होते हैं तो।" काका ने धीमे स्वर में कहा ताकि केशव के अलावा कोई और न सुन सके इस बात को।

" पूर्व अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा जी से मालती बेन के संबंध कैसे थे? मतलब दोनों में कैसा तालमेल था?" केशव ने अगला प्रश्न किया।

" मालती बेन तो वसुंधरा जी के देहांत हों जाने के बाद साहब जी के साथ यहां आई थी। फिर यहीं पर जम गई।" रूखे स्वर से कहा काका ने।


" काका! क्या आपने इस आदमी को कभी यहां आते हुए देखा है? " कहते हुए केशव ने मृत "नकुललाल" का रंगीन फ़ोटो उनके आंखो के सामने लाकर उनके हाथ में रख दिया ।

" ये तो मंगलू है लेकिन इसे क्या हुआ..?" चौंकते हुए काका बोले।

" जो भी आपको पता है कृपया हमें बताईए।" केशव ने कहा।

" मंगलू तो मालती बेन का सेवक था इस आश्रम का सफाई कर्मी । यहीं झाड़ू लगाया करता था ,फिर न जाने कहां भाग गया था। कभी -कभार ही यहां आता था। फिर बाद में उसके मुंह से सुना था कि वो किसी बड़ी हीरोइन के यहां ड्राईवर कि नौकरी पर लगा है । खूब पैसे कमाने लगा था फिर उसने शादी कर ली। लेकिन रोज शराब पीता था, पत्नी से झगड़ा होता रहता था उसका आए दिन। अच्छा ही हुआ कि मंगलू कि लुगाई अपने मायके बैठ गई। कौन सहे ऐसी जिल्लत?" हल्के क्रोधित होकर कहा काका ने।



"आपका धन्यवाद काका।" केशव ने कहते हुए वो फ़ोटो उनके हाथ से लेकर अपने हाथों में थाम लिया। रावी और नटवरलाल भी हैरान रह गए।



" लेकिन बेटा इसे हुआ क्या है? ई फोटो में मंगलू लेटा हुआ क्यों है भई जमीन पर?" काका ने जानना चाहा।


" ये समझ लीजिए कि शराब पीने और अपनी पत्नी से लड़ाई करने का उसे शुभफल मिला है अकाल मृत्यु।" केशव कहते हुए वहां से चला गया। रावी और नटवरलाल भी उसके पीछे हो लिए।


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भास्कर का घर।



हॉल में सोफे पर सामने शिवानी और ईश्वरी बैठी हुई है और भास्कर राइट साईड के सोफे पर बैठा हुआ है।

" मै अपने एक दोस्त के जरिए ये पता लगाने कि कोशिश कर रहा हूं कि इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर ज्यादातर कहां आया -जाया करता है। वो किससे मिलता है? उसका असली पेशा क्या है? सभी  डिटेल्स आज रात तक हमें मिल जायेंगे। तब तक आप दोनों यहीं पर रुकिए। आपके घर कि सेफ्टी के लिए केशव ने कई पोलिस कॉन्स्टेबल’स को तैनात कर रखा है।" भास्कर ने सहजता से कहा।



" लिजिए कॉफी।" एक बुजुर्ग व्यक्ति हाथ में ट्रे पर तीन कप कॉफ़ी लेकर आया।

" धन्यवाद काकू! आप से मैने कहा था न कि आपकी उम्र अब आराम करने कि हो गई है फिर भी आप काम करने से बाज नहीं आते हैं।" झूठा गुस्सा दिखाते हुए भास्कर बोला।

" अरे भासू! चेतक और बीरू आज अवकाश पर गए हैं। उनके न होने पर तुम्हें कौन काफ़ी बनाकर देगा भला? ये सोचकर मैं अपने आप को कॉफी बनाने से रोक न सका।" झुर्रियों वाले गाल थोड़े फूले और होठों पर मुस्कुराहट लाते हुए काकू बोले।


" वाह! वाह काकू , बोलते हो तो भी शायराना अंदाज़ में। तुस्सी ग्रेट हो। लेकिन अब जाकर आराम कीजिए क्योंकि मैं आज का डिनर बनाने वाला हूं और अब आपकी एक भी नहीं चलने वाली है।" काकू के गालों को छूते हुए भास्कर बोला। दोनों कि खनकती हंसी हॉल में गूंज उठी। शिवानी को अपनी मां कि अकस्मात याद हो आई। उसके और ईश्वरी के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई।


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" फॉरेंसिक लैब।"


" डॉक्टर! बताईए कि ये कंकाल कितना पुराना है? सड़क किनारे के जंगल जाने वाले रास्ते पर मिला था हमें।" केशव ने कहते हुए नजरे बेड पर पड़े कंकाल कि ओर घुमाई।

" ये कंकाल एक पुरुष का है। इसे मरे हुए एक साल हो चुके हैं। ये अपने आप नहीं मरा था बल्कि इसे इसका गला रेत कर मारा गया होगा। क्योंकि गले कि हड्डी पर कुछ निशान मिले हैं हमें किसी धारदार चीज के। इसके गले को कातिल ने पीठ पीछे से पकड़ा होगा और ऐंठ दिया जिससे ये झटपटाए। फिर धारदार चाकू से जोर का वार गले पर किया जिससे ये मर गया। इस कंकाल के गले कि हड्डी पीठ कि ओर झुकी हुई है हद से ज्यादा। एक तरह से टूट -सी गई है और सिर्फ थोड़ा बहुत जुड़ा हुआ है ये गले कि हड्डी रीढ़ कि हड्डी से। नाक कि हड्डी पर दरार है मतलब कि मरने के बाद ये धम्म से जा गिरा कठोर सतह पर। ये सतह सड़क कि भी हो सकती हैं। मान लो कि किसी ने इसे सड़क किनारे मारा ये सड़क कि सतह पर धम्म से जा गिरा नाक पर चोट आई यहां तक कि नाक कि हड्डी नाजुक.. हड्डी में भी दरार हो गई। फिर कातिल ने इसकी लाश को फेंक दिया होगा सुनसान जगह पर, जहां पर किसी का ज्यादातर आना - जाना न होता हो। इसकी उम्र 55 साल कि होगी लगभग।" फॉरेंसिक डॉक्टर ने कंकाल का सारा  हाल कह सुनाया केशव को। रावी और नटवरलाल भी ये सब सुनकर स्तंभित से खड़े हुए केशव का मुंह ताक रहे है।



" मुझे आपसे यहीं उम्मीद थी कि आप जरूर हमें कुछ सबूत मुहैया अवश्य कराएंगे। धन्यवाद आपका। अब उस असली कातिल तक हम पहुंचकर ही दम लेंगे।" कहते हुए केशव कि आंखे चमक उठी।



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" सर, आपने कहा था कि वो मेरी असली मां नहीं है कैसे? तो फिर मेरी असली मां कौन है? कहां पर है?"  शिवानी पूछ बैठी। अपनी कॉफी खत्म करके तीनों बैठे हुए हैं।

" क्योंकि वो अगर मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी होती यानि कि आपकी मां होती तो आपको एक बार प्यार से जरूर देखती। कोई भी मां अपनी बेटी से यूं मुंह नहीं मोड़ सकती है बेवजह। सोचिए कि किस तरह से वो बिहेव कर रही थी। वो चाहती थी कि आप या हम उससे बात न करें। वो अंधेरे कि ओर मुख करके बैठी थी ताकि उनका चेहरा न दिखे। फिर मोहन ठाकुर का वहां अचानक से आना । मतलब साफ है कि इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर उस अज्ञात असली कातिल से मिले हुए हैं। आपकी असली मां मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी को जरूर मोहन ठाकुर ने कहीं और छुपा कर रखा हुआ है। शायद वो भांप चुका था कि उसकी मौजूदगी में या उसकी गैर हाजरी में हम मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी से मिलने जरूर जायेंगे जेल। वो मौजूद होता वहां पर तो हमें जेल कि सूरत तक देखने को नसीब न होती। कुछ पल ही सही लेकिन जेल के अन्दर जाकर नकली चंद्रिका से मिलकर हमें फायदा जरूर हुआ है। अब मुझे पक्का यकीन हो गया है कि आपकी मां उनकी हिरासत में है किसी और जगह कैद।" भास्कर ने गम्भीरता से कहते हुए लंबी सांस ली।



" सर, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि कोई इस हद तक गिर सकता है। उस मोहन ठाकुर को जीतने पैसे चाहिए मैं देने के लिए तैयार हूं। बस मुझे मेरी असली मां चाहिए।
मैं अभी जाकर उसने अपनी मां को वापस लेकर आती हूं।" कहते हुए शिवानी फूर्ति से उठ खड़ी हुई।


" पागल! तूझे क्या लगता हैं कि सब इंस्पेक्टर केशव सर और ऐडवोकेट भास्कर सर घास छीलते हुए बैठे  हैं??😠 ये मत भूल कि वो इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर बड़ा लालची किस्म का आदमी है। क्या पता पैसे लेकर भी उसने अगर आंटी को सही सलामत हमें नहीं लौटाया तो?? क्या बिगाड़ लेगी तू उस धूर्त, बेईमान इंस्पेक्टर का?😑 वो तो उल्टे ही तूझे फंसा देगा ये कहकर कि मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी कि बेटी शिवानी उसे रिश्वत दे रही है अपनी ओर करने के लिए। ऐसे पोलिस वालों से लोहा लेना इतना आसान भी नहीं होता है... शिवानी। इस वक्त हमें केशव सर और भास्कर सर के कहें मुताबिक अपना कदम आगे कि ओर बढ़ना होगा। निशा भी तो न जाने कहां खो गई है। तेरी एक गलती उन दोनों कि जान खतरे में डाल सकती हैं। " ईश्वरी ने उसे समझाते हुए कहा। शिवानी कि आंखे नम हो गई और वो धम्म से सोफे पर जा बैठी।




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"मैं तो एक पेड़ के पास बेहोश हो गई थी नाग को देखकर तो फिर कैसे मैं तुम्हारी उस छिपने कि जगह में पहुंची?" हल्के से हैरान होते हुए, आंखे बड़ी करके निशा ने उससे पूछा।


" हुआ यूं था कि मैं वहीं पर से होते हुए अपने छिपने कि जगह पर आ रहा था कि तभी मेरी नजर तुम पर पड़ी। वो नाग दूसरी ओर चला गया था। मुझे लगा था कि तुम भी उन लोगों से मिली हुई हो। क्योंकि कोई महिला भी उन लोगों में शामिल है। वो लोग आज भी मुझे पूरे कानपुर में तलाश रहे हैं। तो उस वक्त तुम्हें लेकर मुझे गलतफहमी हो गई थी। तुम्हे उठाकर मैं यहां ले आया फिर तुम्हारे हाथों को बांध दिया रस्सी से। मैं बस तुम्हे डरवाना चाहता था ताकि तुम मुझे डर के मारे अपने बारे में कुछ बताओ।" वो हल्की हंसी के साथ बोला। निशा ने मुंह बिचकाया।

" तुम्हारे पैरेंट्स कौन है? तुम उस गैंग के चंगुल में कैसे फंसे?" निशा ने "उससे" पूछा। दोनों पैदल चले जा रहे हैं। शाम ढलने लगी है और अब रात का वक्त हो आया है नजदीक।

" मेरी मां एक प्रॉपर्टी डीलर थी मिसेज "प्रभा मित्तल"।" संक्षिप्त-सा  उत्तर देते हुए "वो" बोला।

" ओह! उनके साथ जो भी हुआ था वो बड़ा भयावह था। उनके बारे में काफी कुछ सुना था कि वो एक अच्छी प्रॉपर्टी डीलर थी। बड़ी ईमानदार और दयालु प्रवृत्ति की। विश्वास नहीं होता है कि क्यो किसीने उन्हें...?" कहते हुए निशा ने उसकी ओर देखा। उसका चेहरा गुस्से से लाल नजर आ रहा है।

" मेरे मॉम एंड डैड कार से कहीं फिक्स मीटिंग में जाने के लिए घर से निकले थे।  सुनसान सड़क किनारे एक आदमी ने दूसरे आदमी का गला रेत डाला था। उसे ऐसा करते मेरे मॉम- डैड  ने देख लिया था। वे दोनों कार से बाहर निकल कर उस आदमी कि ओर बढ़ गए। उस वक्त लगभग शाम के 4 बजे थे। मेरी मां उस आदमी के पास पहुंचती उससे पहले ही उस कातिल ने आगे तेजी से बढ़कर उनके पेट में चाकू भोंप दिया था। फिर एक बाईक वहां पर रूकी एक आदमी आया और उसने पापा को पीछे से पकड़ लिया। मां ने दम तोड़ दिया था। पापा को वो लोग अगवा करके ले गए थे। फिर मेरे पीछे पड़ गए। क्योंकि मैं उन लोगों तक पहुंचने ही वाला था। मुझे कैद करके रखा गया और जहरीले ड्रग्स का इंजेक्शन दिया गया। उस वक्त ये अफ़वाह फैली हुई थी कि एक सीरियल किलर घूम रहा है कानपुर में। और उसी ने प्रॉपर्टी डीलर मिस प्रभा मित्तल का खून किया है और उनके पति यानि कि मेरे पापा को किडनैप किया है। मैं बदले कि आग में तब से लेकर अब तक जल रहा हूं। मेरा परिवार खत्म हो गया उन लोगों कि वजह से। वो लोग मेरे शरीर में इंजेक्शन के जरिए नशीले पदार्थों को ट्रांसफर कर रहे थे। सारा दिन बेहोश रहता था मैं। मुझसे कहलवाया जा रहा था बेहोशी कि हालत में   "मैं सीरियल किलर हूं...विनाश।" लेकिन किसी तरह अपने आप को संभालते हुए मैने उनसे अपना पीछा छुड़ाया। भाग निकला मैं उनके चंगुल से छूटकर। मेरे गले में  "गोल्ड लॉकेट" थीं मेरी मां कि आखिरी निशानी जो उन्होने मुझे मेरे जन्मदिन पर दिया था। वो आखिरी निशानी भी न जाने कहां खो ही गई।" अफसोस जताते हुए "वो"  बोला।

" वो लॉकेट सब इंस्पेक्टर केशव सर के पास है। हमें उनके पास जाना चाहिए। वे जरूर हमारी मदद करेंगे। उन कातिलों को जरूर सजा मिलेगी।" निशा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।


" मैं तुम्हे तुम्हारे घर तक पहुंचा दूंगा लेकिन मैं जब तक उन लोगों से अपना बदला  नही ले लेता हूं तब तक किसी के सामने नहीं जाऊंगा। सबकी नजरों में मैं अब  भी  उस सीरियल किलर के कब्जे में हूं। पापा को उन लोगों ने मुझसे मिलाया था आखिरी बार। पापा ने मां के बारे में मुझे तभी बताया था और कहा था कि तुम इन लोगों को भी उसी तरह तड़पाकर मारना जिस तरह से मां को इन दुष्टों ने मारा था बेरहमी से। फिर उन्होने खुद को छुड़ाने कि कोशिश करी। लेकिन उन लोगों ने उन्हें भी मार गिराया। मैं कुछ भी नहीं कर सका। वो जमीन पर गिरकर तड़प रहें थे लेकिन मैं... कुछ नहीं कर सका। अंधेरे में हुआ था ये सब। वो लोग अंधेरे में खड़े हुए थे। मैं एक ओर बंधा पड़ा था जमीन पर दूसरी ओर उनके और मेरे बीच में अपना दम तोड़ते हुए पापा थे मुझे निहार रहे थे। वो लोग मुझे सीरियल किलर बनाना चाहते थे ताकि खुद खून कर सकें लेकिन जरूरत पड़ने पर नाम मेरा पोलिस को बता सकें। बेहोश करके चले जाते थे फिर होश में आते ही मेरे कानों में एक ही आवाज गूंजा करती थी कि "मैं सीरियल किलर हूं...विनाश।" कहने के बाद उसने गहरी सांस ली। उसकी आंखे नम है और चेहरा अलग -सी लालिमा के साथ चमक रहा है।





" क्या करने वाले हो तुम? साफ -साफ कहो?" निशा ने अंतिम सवाल किया।
" उसके" होठों पर जहरीली मुस्कान तैर गई।


आगे कि कहानी अगले भाग में।


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