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"कौन है असली कातिल....??" ( अध्याय–5)

12 सितम्बर 2021

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         " कौन हैं असली कातिल..??"




रात के 10 बजे।


" केशव सच में ये इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर , मालती  और लोभेश सहगल मिले हुए हैं।  मंगलू को नकुललाल बनाकर  चंद्रिका त्रिपाठी जी के यहां ड्राईवर बनाकर बैठाया था। बस अब रावी आने ही वाला है "राधावल्लभ अनाथ आश्रम"  के गेट के पास खंभे में सीसीटीवी कैमरा फिट था बहुत पहले से ही। उसी सीसीटीवी कैमरे से हमें हमारे कुछ सवालों के जवाब मिलेंगे। रावी आ रहा होगा उस कैमरे को और एक लैपटॉप को लेकर।" भास्कर ने कहा। केशव ने हामी भरी।

" शिवानी और ईश्वरी कहां है?" केशव ने पूछा।
" यहीं रूकी हुई है गेस्ट रूम में दोनों। काफ़ी थकी हुई थी। डिनर करने के बाद सो गई है। निशा के बारे में कुछ पता चला?" भास्कर ने सावल किया।

" नही, पता नहीं वो कैसे गायब हो गई है वहां से? हर जगह ढूंढने पर भी वो मिली नहीं। मुझे तो लगता हैं कि ये करामात भी मोहन ठाकुर कि ही कोई सोची समझी साजिश का हिस्सा है। शायद वो निशा को किडनैप करके रखे हुए है अपने बंगले में या कहीं और। क्या पता कि शिवानी और ईश्वरी को लेकर भी वो तीनों कोई षड्यंत्र रच रहे हों तो? उन दोनों को यहीं रखना चाहिए सेफ्टी के साथ।" केशव ने गम्भीरता से कहा।

तभी डोर बेल बजी।


केशव और भास्कर हॉल में ही बैठे हुए थे। भास्कर दरवाजे कि ओर बढ़ जाता है।


" ओह! रावी आओ अंदर, आओ। तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे हम।" दरवाजा खोलने के बाद भास्कर सामने खड़े रावी को देखते हुए बोला।

मुस्काता हुआ रावी अंदर आया।

" ये मेरे टीम का कॉन्स्टेबल रावी ! तुम्हारा दोस्त कब बना?" हैरानी से रावी को देखते हुए केशव ने पूछा।

" ये तो भई मैं कभी फुर्सत में तूझे बताऊंगा।" केशव को अजीब तरह से देखते हुए भास्कर बोला।


" सर, कैमरे का फूटेज दिखा दूं आप दोनों को या ऐसे ही खड़ा रहूं?" रावी बेतरतीबी से बोला।


" पहले आसन ग्रहण करो।" केशव ने हल्की हंसी के साथ कहा। दोनो मुस्कुरा दिए।

" ये देखिए वीडियो में साफ दिख रहा है कार में ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ लोभेश सहगल। और ये मालती भी गर्मजोशी के साथ जा रही है उसके कार के अंदर। लोभेश कार को वहां से जल्दी ही ले गया अपने बंगले कि ओर।" रावी ने कैमरे का वीडियो क्लिप उन दोनों को दिखाते हुए कहा।
भास्कर और केशव ने अर्थपूर्ण ढंग से एक -दूसरे को देखा।


अगली सुबह।


"लोभेश का बंगला।"

लोभेश मेंशन का डोर बेल बजा। शराब के आधे नशे में चूर लोभेश दरवाजे के पास गया। दरवाजा खोलते ही सामने खड़े "सब इंस्पेक्टर केशव नामधारी " को देखते ही उसका सारा नशा छू मंतर हो गया।


" क.. कौ.न? पोलिस? मेरे यहां? क्यूं?" वो हकलाया।

" मैं सब इंस्पेक्टर केशव हूं। एक वीडियो दिखानी थी तुम्हें, ताकि तुम ये समझ जाओ कि जुर्म कबूल करने में ही तुम्हारी भलाई है वरना अदालत में मिलना अपनी इज्जत कि धुनाई कराने के लिए।" कहते हुए दरवाजे पर ही खड़े होकर केशव ने अपने मोबाइल स्क्रीन पर उसकी और मालती कि वह बीती रात देखी गई वीडियो क्लिप उसे दिखा दी। लोभेश सकते में आ गया। उसका चेहरा पीला पड़ गया लेकिन ये भाव अपने चेहरे पर उसने जाहिर नहीं होने दिए।

" ये क्या है?" लोभेश ने पूछा।

" ये सबूत है कि तुम मालती को बहुत करीब से जानते हो उसके साथ तुम्हारा कोई पर्सनल रिलेशन है पहले से ही। इसी रिलेशन ने आपकी पत्नी श्रीमती वसुंधरा जी कि जान ली है या यूं कहें तो आपने मालती के बातों में आकर
खुद अपनी पत्नी को मारा है। अदालत में तुम्हे, मोहन ठाकुर को और उस मालती को कड़ी से कड़ी सजा मैं जरूर मुहैया कराऊंगा। ये मेरा वादा रहा तुमसे।" कहते हुए केशव ने मोबाइल ऑफ करके अपने जेब में रख दिया।

" ये कोई फेंक वीडियो है। मुझ जैसे अमीर, इज्जतदार और नर्म दिल इन्सान को फंसाने कि साजिश है ये तुम्हारा फेंक वीडियो। पता नहीं कैसे ये पोलिसिए इतने गिरते जा रहे है अपनी वर्दी के दम पर। कोई भी यकीन नहीं......" लोभेश ये देखकर गुस्से से लाल हो गया कि उसकी बाते सुने बैगर केशव  जाकर अपनी जीप पर बैठकर रवाना हो गया है यहां से।



01:00 बजे।

हॉल में मोहन ठाकुर और लोभेश सहगल आमने -सामने खड़े हुए हैं।
" मालती कहां है? " मोहन ठाकुर ने पूछा।
" वो उस असली चंद्रिका त्रिपाठी का काम तमाम करने गई है। जल्दी ही आ जायेगी।" मोहन ठाकुर कि ओर मुखातिब होते हुए लोभेश ने कहा।
" सच में मोहन! वो इंस्पेक्टर मेरे पास आज सुबह आया था। उसे मेरे, तुम्हारे और मालती के बारे में सब कुछ पता चल चुका है। जब सब इंस्पेक्टर केशव  " राधावल्लभ अनाथ आश्रम" गया था फिर मालती से थोड़ी देर बात किया था उसी दिन मैंने मालती को कॉल करके आश्रम के गेट के बाहर मेरा इंतजार करने के लिए कहा था। फोन का बहाना बनाकर मालती बाहर आई फिर गेट से बाहर होते हुए सड़क किनारे खड़ी मिली थी मुझे। फिर मैं वहां पर कार लेकर पहुंचा और हम दोनों यहां अपने घर आ गए। ये सब दृश्य एक सीसीटीवी कैमरे में क़ैद हो चुकी थी। वो सीसीटीवी कैमरा गेट के पास ही एक खंभे पर लगाया गया था जिसपर मेरी नज़र कभी गई ही नहीं थी। वो कैमरा सब इंस्पेक्टर केशव के हत्थे चढ़ चुका है। मेरी कार में मालती को बैठते हुए कैमरे के फूटेज में उसने साफ तौर पर देखा था और फिर यहां आकर वो मुझे भी वो फूटेज दिखा गया है ये कहकर कि कल अदालत में वो  मेरा, मोहन ठाकुर का और मालती का पर्दाफाश करने वाला है। अब हमें आज ही रात को यहां से निकलने का रास्ता खोजना होगा नहीं तो....।" लोभेश कहते हुए रुका।

" नहीं तो क्या? कल भरी अदालत में हंसी होगी हमारी। तुम्हें तो मैं पहले से ही कह रहा था कि अब मुझसे ये इंस्पेक्टर वाला नाटक किया न जायेगा। उस असली चंद्रिका त्रिपाठी को ठिकाने लगाकर लंदन चले जाते है लेकिन तुम और मालती मुझसे मानव अंग तस्करी करने के लिए मुझसे मदद मांगने लगें ये सोचे बिना कि चंद्रिका त्रिपाठी के पति मिस्टर त्रिपाठी ने एक साल पहले मुझे रंगे हाथों पकड़ लिया था लेकिन शुक्र है कि वो हमारे हाथों जिंदा नहीं बच सका। उस दिन  रात के 10 बजे थे। मिस्टर त्रिपाठी मेरे केबिन में अचानक आ पहुंचा। मेरे हाथों में पॉलिथीन बैग्स के अन्दर में मानव अंग भरे हुए थे खून से लथपथ। किसी कि किडनी, किसी का  हार्ट और न जाने कितने ही  अंग दूसरे कि बॉडी से ऑपरेशन करके निकालकर मैंने पॉलिथीन बैग्स में डाले ही थे को वो बेवकूफ आ गया था। वो भांप लिया था कि उन पॉलिथीन बैग्स में क्या डाले थे मैंने। वो गरज कर बोला था–: एक अच्छे डॉक्टर होने का ढोंग करते हो, और चोरी -छिपे तुम इस मानव अंग तस्करी में लिप्त हो। मैं तुम्हारी सच्चाई पूरी दुनियां के सामने उजागर करके ही रहूंगा।" कहते हुए वो हॉस्पिटल से बाहर निकल कर भागने लगा। मैं भी उसके पीछे एक धारदार चाकू लेकर दौड़ा। वो बेतहाशा दौड़ने लगा। अपनी कार में भी बैठ नहीं सका क्योंकि चाकू हाथ में लिए मैं पार्किंग साइड पहुंच चुका था। हॉस्पिटल में मै और एक -दो अन्य सेवा कर्मी ही थे उस शनिवार कि रात को। वो चिल्लाने लगा और मैं उसके करीब पहुंचने लगा। वो अंधेरे में दौड़ने लगा। मैंने लोभेश तुम्हें कॉल करके बुलाया। आखिरकार वो झाड़ियों में जा गिरा। उसे झाड़ियों से बाहर निकालकर सड़क किनारे हल्के अंधेरे में मैंने खड़ा किया। पीठ पीछे खड़े होकर उसका गला मरोड़ डाला। बेचारा 55 साल कि उम्र में ही चल बसा अपनी बेवकूफी के चलते। लेकिन उसे मारते हुए मुझे एक दंपति ने भी देख लिया था। प्रॉपर्टी डीलर मिस प्रभा मित्तल और उसके पति ने। प्रभा मित्तल को हमने वही पर मारकर छोड़ दिया। तुम बाईक पर सवार होकर वहां पहुंचे थे। इस घटना को एक साल हो चुके हैं। उसके पति और एक बेटे को हमने अगवा करके रखा हुआ था फिर मिस्टर मित्तल को उसके बेटे के ही सामने हमने मौत के घाट उतारा था।" कहते हुए मोहन ठाकुर ने मुट्ठियां भींची।

" फिर उसके बेटे को सीरियल किलर "विनाश" का खिताब भी तो हमने ही दिया था न। लेकिन कमबख्त वो सागर मित्तल भी भाग ही निकला हमारे चंगुल से छूटकर। उसे हमने बहुत सारे ड्रग्स के इंजेक्शन दिए थे तो शायद ही वो हमारे बारे में कुछ जानता होगा या फिर पागल हो चुका होगा। खैर उसके बाद तूझे इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर बनना पड़ा।" लोभेश ने हंसते हुए कहा।


"फिर राधावल्लभ अनाथ आश्रम कि पूर्व अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा जी को भी तो हमने अपने रास्ते से हटाया था,  खतरनाक दवाइयां उनके डेली के खाने में मिलाकर। झूठी रिपोर्ट बनाया था कि उन्हें हार्ट सर्जरी करवानी होगी नही तो वो मर जायेंगी एक महिने के अन्दर। पैसे चाहिए थे एक लाख। उनके पास इतनी रकम नहीं थी। क्योंकि उनके पति यानि कि आप मालती से शादी करने कि बाबत उसे बता चुके थे। तब दामिनी गर्ल्स हॉस्टल में थी। वसुंधरा जी ने दामिनी को ये सब बातें बताई। दामिनी को झटका लगा।
वो वसुंधरा जी के पास आती उससे पहले ही वसुंधरा जी मर चुकी थीं। क्योंकि उनके खाने में हमने एक जहरीली लिक्विड मिलाई थी। किसी को भी हम पर शक नहीं हुआ था बस दामिनी को छोड़कर। दामिनी को भी पैसो का, ऐशो आराम कि जिन्दगी का लालच देकर हमने  अपनी मानव अंग तस्करी का हिस्सा बना दिया। फिर मंगलू उर्फ नकुललाल और मालती को अनाथ आश्रम में भेजा स्थायी तौर पर। कितना अच्छा प्लान बनाया था हमने लेकिन उस केशव ने पानी फेर दिया इस कामयाब साजिश पर।" कहते हुए मोहन ठाकुर ने गहरी सांस ली और जबड़े भींच लिए लेकिन वो कुछ कर पाने में असमर्थ है।

" मालती के यहां आने तक हमें अपने बैग्स पैक कर लेने चाहिए। सारे इंपॉर्टेंट फाइल्स , पेपर्स और बाकि के नगद पैसे सब पैक करो। कोई भी चीज नहीं छूटनी चाहिए।
आज ही शाम के 04:00 बजे कि एक लंदन जाने वाली फ्लाइट में सीट मैने बुक कर ली है। मालती भी उस असली चंद्रिका त्रिपाठी को ऊपरवाले के पास पहुंचाकर यहां आती ही होगी। हम तीनों फौरन निकल जायेंगे यहां से।" कहते हुए लोभेश ने उसे देखा। मोहन ने हामी भरी न चाहते हुए भी।


"03:00"

सब इंस्पेक्टर केशव , ऐडवोकेट भास्कर, ईश्वरी, निशा, शिवानी और एक बीस साल का नवयुवक सभी घर के ऊपरी मंजिल के रूम में आमने - सामने बैठे हुए हैं।

" तो अब सारी सच्चाई हमें आखिरकार पता चल ही गई। मानव अंग तस्करी का मामला है ये तो।" कहते हुए उसने उस बीस साल के नवयुवक को देखा।

" मैं विनाश या कोई सीरियल किलर नहीं हूं मैं  " सागर मित्तल" अपने पैरेंट्स के साथ अपने पैतृक शहर कल्याणपुर में रहता था। मेरी मां मिस प्रभा मित्तल थी, और पिता देवेश मित्तल। प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते थे। जरूरतमंद लोगों को अच्छे फ्लैट्स दिलवाया करते थे।"  मैं वहीं जंगल वाले रास्ते पर से होते हुए अपने छिपने कि जगह की ओर जा ही रहा था कि तभी मेरी नजर निशा पर पड़ी। जिस  नाग को निशा देखकर  बेहोश होकर गिर गई थी दूसरी ओर चला गया था वह नाग झाड़ियों में। मुझे लगा था कि निशा भी उन लोगों से मिली हुई होगी शायद। क्योंकि कोई महिला भी उन लोगों में शामिल है। वो लोग आज भी मुझे पूरे कानपुर में तलाश रहे हैं। तो उस वक्त निशा को लेकर  गलतफहमी हो गई थी। निशा को लेकर  मैं अपनेछिपने वाली अंधेरी छोटी सी गुफा में ले गया था फिर निशा के हाथों को बांध दिया रस्सी से। मैं बस अपनी सुरक्षा के लिए ये सब कर बैठा, निशा को बस डरवाना चाहता था ताकि ये मुझे डर के मारे अपने बारे में थोड़ा कुछ बताए और मैं कुछ सोच सकूं। निशा जी काफी ज्यादा डर गई थी मेरे नाटक को देखकर।" वो हल्के मुस्कुराहट के साथ बोला। निशा ने उसे घूरा तो सागर झेंपते हुए दूसरी ओर देखने लगा।



" राधावल्लभ अनाथ आश्रम कि पूर्व अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा जी निःसंतान थी। उन्हें एक अनाथ बच्ची मिली। उन्होने उस अनाथ लड़की को सहारा दिया। इधर उनके पति लोभेश सहगल का मालती बेन के साथ अफेयर चल रहा था। जिस हॉस्पिटल में दामिनी नर्स का काम करती थी उस हॉस्पिटल में जितने भी गंभीर रूप से बीमार मरीज एडमिट थे सब को रात में बेहोश कर दिया जाता था।  काम में आने वाले अंगो को उन मरीजों के शरीर से बाहर निकल लिया जाता था। फिर विदेशों में बेच दिया जाता था। लोभेश का परम मित्र हैं इंस्पेक्टर मोहन ठाकुर जो कि इंस्पेक्टर बनने से पहले एक हार्ट सर्जन डॉक्टर था। वो बीमार गरीबों को मुफ्त में इलाज करूंगा कहकर अपने हॉस्पिटल यानि कि जहां दामिनी नर्स थी वहां ले जाकर एक वार्ड में एडमिट कर दिया करता था। फिर रात में उन जैसों को बेहोश करके उनके आंतरिक अंगों को काटकर निकाल दिया करता था। यहीं है उसका असली पेशा। वो 5 साल पहले से ही अब  तक ऐसा करते आ रहा था। पैसों का लालच देकर उन तीनों ने दामिनी को भी अपने इस कुकृत्य में साझेदार बना दिया।" केशव हल्के ऊंचे स्वर में बोला।

"हमें उन तीनों को सबूत के साथ धर -दबोचना होगा।" शिवानी ने कहा।


"  लोभेश का पीछा करते हुए हम मालती तक पहुंच जायेंगे फिर  आपकी मां मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी तक पहुंच सकते है। मैं मोहन ठाकुर के घर जा रहा हूं। भास्कर लोभेश के बंगले पर जायेगा।" केशव ने उठते हुए कहा।

आधे घंटे बाद।



" ये मालती कहां रह गई। 4 बजने में कुछ ही देर बाकी है। हमें फौरन यहां से चलना चाहिए।" मोहन को देखते हुए लोभेश बोला।
मोहन ठाकुर आधे घंटे में ही अपना सारा सामान पैक करके सहगल मेंशन पर आ गया है। दोनों ही एक ब्लैक कार में सवार हो जाते हैं। उधर केशव को मोहन ठाकुर का घर खाली मिला। वो भी सहगल मेंशन कि ओर आ रहा है जीप में सवार होकर।  मोहन ठाकुर ने ड्राइविंग सीट पर बैठकर पार्किंग साइड से कार निकाली। गेट से होते हुए कार सड़क पर चढ़ गई। भास्कर ने जीप पर बैठे हुए ही सामने सड़क पर उन दोनों को ब्लैक कार पर सवार देख लिया। भास्कर सहगल मेंशन पहुंचने ही वाला था कि उसे सड़क पर ब्लैक कार दिख गई।



" शिवानी! मैं अब जा रहा हूं अपने घर यानि कि कल्याणपुर। उन तीनो को उनके किए कि सजा कानून देगा ही। तो अब मेरा यहां रुकने का कोई मतलब नही रह गया है। केशव सर और भास्कर सर से कह देना कि अब मैं अपने रास्ते जा रहा हूं।" कहते हुए वो उन तीनों सहेलियों को सकते में डालकर वहां से निकल गया।
सड़क पर पैदल चलने लगा। उसकी नज़र एक बाईक पर गई। जो कि सड़क किनारे खड़ी हुई है। बाईक कि चाबी भी बाईक में ही है। मतलब कि कोई लापरवाह आदमी लघुशंका के लिए सड़क किनारे झाड़ियों में गया हुआ है बाईक को चाबी सहित छोड़कर। लपककर सागर उस बाईक पर सवार हो गया।फुल स्पीड से बाईक दौड़ पड़ी।



इधर भास्कर और केशव दो अलग सड़को पर जीप दौड़ाए जा रहे हैं मोहन ठाकुर कि कार का पीछा करते हुए। कानपुर के आखिरी छोर पर है मालती का वो घर जहां पर सागर को विनाश बनाकर कैद करके रखा गया था। वहीं पर असली चंद्रिका त्रिपाठी को भी रखा है। सागर बाईक से मालती के घर पहुंचने के लिए बेताब हुआ बैठा है। वो चाहता है कि कोई निर्दोष अब उनका शिकार न हो पाए। सागर ने एक बात सबसे छिपाई है कि वो जानता है उस जगह को जहां पर वो तीनों दरिंदे मासूम लोगों को कैद करके रखते हैं  फिर मार डालते हैं।





आगे कि कहानी अगले भाग में।


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