" कौन हैं असली कातिल..??"
शिवानी देखती है कि सच में ये नकुल कि ही लाश है।
" देखिए गले पर चाकू से काटने का निशान हैं। शायद नकुल ने हातापाई करी होगी अपने बचाव के लिए और तभी मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी के सिर के थोड़े से बाल उसके हाथ में पड़ गए होंगे और इसके चलते आपकी मां का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और धारदार चाकू से उन्होंने नकुल के गले पर वार कर दिया। नकुल के गले के आसपास और चेहरे पर काफी सारे नाखूनों के खरोच के निशान मिले हैं। आपकी मां के हाथों के नाखून से ही ये निशान बने है। चाकू हमें वहीं पर झाड़ियों में मिली। उस चाकू में मिले फिंगरप्रिंट से मिसेज चंद्रिका जी के फिंगरप्रिंट मैच भी हो गए। तो अब शिवानी जी हमारी मुलाकात होगी कोर्ट में। बड़े से बड़े लॉयर ऑर ऐडवोकेट हायर करके भी आप अपनी मां के खिलाफ़ मिले सबूतों को झुठला ही नहीं सकती हैं और न ही आपकी मां को रिहाई ही मिल सकती है जमानत पर भी।" मोहन ठाकुर ने जहरीली मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
11:00 बजे शिवानी का ड्रॉइंग रूम।
शिवानी और उसकी दो सहेलियां ड्रॉइंग रूम में बैठी हुई है।
" सच में तूझे "विनाश" जैसा कोई मिला भी था या ..." निशा अविश्वास का भाव चेहरे पर लाते हुए बोली।
" तूझे क्या लगता हैं कि मुझे दिन में सपने देखने कि कोई बीमारी हो गई है? एक तो पहले से ही मैं इतनी दुविधा में हूं। मेरी मां जेल में है और ऊपर से ये ... झूठा इल्ज़ाम.....।" शिवानी हल्के गुस्से से बोली और चुप हो गई।
" तुम उसे लेकर हॉस्पिटल गई थी। उसे एडमिड भी करवाई थी तो किसी डॉक्टर या नर्स ने तो जरूर उसे देखा ही होगा ना? हॉस्पिटल में जाकर हम पता कर सकते है कि विनाश सच में था या सिर्फ वो तुम्हारा वहम ही था।" ईश्वरी ने उपाय सुझाते हुए कहा।
" हां ये बात भी ठीक है। एक बात और कि मैं एक अच्छे ऐडवोकेट को जानती हूं और साथ में एक खास शख्स को भी जो हमारी हेल्प कर सकते है आंटी को निर्दोष साबित करने में। लेकिन सबसे पहले हॉस्पिटल चलकर पता लगाते हैं विनाश के बारे में।" निशा ने चेयर पर से उठकर कहा। तीनों ही हॉस्पिटल जाने का निश्चय कर ड्रॉइंग रूम से बाहर निकली।
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हॉस्पिटल.
" मुझे पता है उस नर्स का नाम जिसने विनाश के जख्मी राइट हैंड का ट्रीटमेंट किया था पट्टी बांधी थी। "दामिनी" नाम है उनका।" हॉस्पिटल के अंदर प्रवेश करते हुए शिवानी ने कहा। रास्ते भर कार ड्राइविंग करते हुए वो बस उस नर्स का ही नाम याद करने में जुटी हुई थी। निशा और ईश्वरी तो " विनाश" के बारे में शिवानी के मुंह से सुनकर हैरान ही रह गई । कैसे अचानक कोई , किसी भी के स्कूटी के आगे जाकर गिर सकता है फिर उसके हाथ में लगी चोट असली चोट.... लेकिन होश आने पर अपने आप को
"सीरियल किलर... और नाम विनाश " बताना। फिर ड्राईवर नकुल के घर जाना फिर नकुल का खून होना और..... विनाश का गायब हो जाना। सारा इल्ज़ाम सबूत समेत मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी पर थोपा जाना। ये सब कुछ हैरान कर देने वाला है रहस्य से भरपूर। ऊपर से क्या सच में कोई "विनाश" है? ये सवाल उठ रहा हैं। उस दिन हॉस्पिटल में एक नर्स "दामिनी " ही फ्री थी, बाकी सभी अन्य पेसेंटस या अन्य कामों में व्यस्त थे। कितनी अजीब बात है कि विनाश ने अपने आप को सीरियल किलर कहा था। उस वक्त नर्स उसका ट्रीटमेंट करके जा चुकीं थीं। डिस्चार्ज पेपर्स भी खुद उसी नर्स ने ही रेडी करके दिया था।
" रिसेप्शनिस्ट काउंटर , पर जाकर उस नर्स के बारे में पूछते हैं चलो।" ईश्वरी बोली। तीनों रिसेप्शनिस्ट काउंटर
पर पहुंचे।
" क्या आप मिस "दामिनी " के बारे में कुछ बता सकती है? क्या अभी वो ड्यूटी पर है यहां?" शिवानी ने सहजता से कहा।
" मिस. "दामिनी" वो तो आज आई ही नहीं है हॉस्पिटल। कई बार कॉल कर चुकीं हूं उसे, लेकिन कोई रिस्पॉन्स ही नहीं आया है अभी तक उसका।" रिसेप्शनिस्ट
ने दो टूक जवाब दिया।
" उनके घर का एड्रेस दे सकती है क्या आप? बहुत जरूरी है उनसे मिलना हमारे लिए।" निशा ने गम्भीरता से भरे स्वर में कहा।
" दो मिनट।" कहते हुए "दामिनी " के घर का एड्रेस उसने इन तीनों को बताया।
"30 मिनट बाद"।
कमलांगी गली.....
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" काफ़ी तंग गली है यह तो 🙄" निशा ने चारों ओर देखते हुए कहा।
" कार पास में खड़ी कर दे आगे पैदल चलते हैं।" ईश्वरी ने आगे कि घुमावदार रास्ते को ताड़ते (समझते) हुए कहा।
शिवानी ने अपनी रेड कार , नीले रंग से सराबोर दीवाल के पास एक किनारे पर खड़ी कर दी। तीनों पैदल चलने लगी। आते -जाते लोग इन तीनों को अनेकों भाव - भंगिमाओं के साथ देखे जा रहे हैं क्योंकि ये
"कमलांगी गली " हमेशा से ही गरीबों का ठिकाना है।
यहां न के बराबर ही कोई शिवानी के जैसे शख्सियत दृष्टिगत होते है।
" अंकल क्या आप बता सकते है कि दामिनी जी का घर कौनसा है यहां पर?" अधेड़ उम्र के आदमी से शिवानी ने बड़ी शालीनता के साथ पूछा। अधेड़ उम्र व्यक्ति शिवानी
कि बात सुनकर उसकी ओर मुखातिब हुआ।
" वो है उनका घर।" दो टूक जवाब के साथ अधेड़ उम्र के उन व्यक्ति ने दाएं हाथ से एक सफेदी कि कृपा से चमकते हुए घर कि ओर इशारा किया। फिर वो वहां से चल दिया।
तीनों उसे जाते हुए देखती है और फिर दामिनी के घर कि ओर बढ़ जाती है।
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" दामिनी का घर।"
" अच्छे से इस हॉल को सील कर दो। डेथ बॉडी को फॉरेंसिक लैब भेजो जल्दी । पड़ोसियों को बुलाओ। सबसे पूछताछ करके देखते हैं।" हवालदार कि ओर देखते हुए वो बोला।
" अच्छा हुआ कि निशा तुमने मुझे तुरंत इंफॉर्म कर दिया वरना शायद ये डेथ बॉडी भी यहां से ठीक वैसे ही गायब हो जाती जैसे कातिल के द्वारा खुदके सबूत नदारद हो जाते हैं। मिस शिवानी त्रिपाठी , आपकी मां मिसेज चंद्रिका त्रिपाठी जी के बारे में जानकर मुझे इतना तो समझ में आ ही गया है कि इस सबके पीछे जरूर कोई और ही गुनहगार है। जो छुपकर ये सब कर रहा है। रही बात "विनाश" कि तो उसके बारे में मै जरूर छानबीन शुरू करूंगा।" निशा के चचेरे भाई और एक काबिल सब इंस्पेक्टर "केशव नामधारी " ने मौका - ए - वारदात पर अपनी निगाहें जमाते हुए शिवानी से कहा।
" बताईए कि जब आप यहां आई , इस घर के आसपास कोई संदिग्ध क्या आपको नजर आया था? कोई अजीब हरकत किसी ने की हो आप तीनों को देखकर?" सब इंस्पेक्टर केशव ने सरलता से कहा।
" हम यहां आए। एक आदमी से इस घर के बारे में हमने पूछा। हमे कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नज़र ही नहीं आया केशव जी। सब कुछ नॉर्मल था। घर का दरवाजा खुला हुआ था। दरवाजे को खोलते ही हमारी नजर हॉल में सोफे पर मृत पड़ी हुईं नर्स दामिनी पर जाकर अटक गई। हम हैरान रह गई ये देखकर कि किसी ने हमसे पहले यहां आकर " दामिनी" का खून कर डाला था। फिर आपको निशा ने कॉल करके बुला लिया।" शिवानी धाराप्रवाह बोलकर चुप हो गई।
" सर! ये लॉकेट मिली है दरवाजे के पास वाली खिड़की में लगे हुए पर्दे से फंसी हुई थी। काफी उलझी हुई थी पर्दे से। शायद भूल से ये पर्दे पर ही छूट गई होगी? ये कातिल का भी हो सकता है?" हवालदार नटवर लाल ने लॉकेट सबको दिखाते हुए कहा।
" बहुत अच्छे नटवर ! ये लॉकेट हमें उस मुजरिम तक पहुंचने में काफी मददगार साबित हो सकता है।" उसके हाथ से लॉकेट लेकर करीने से देखते हुए सब इंस्पेक्टर केशव बोले।
" ये तो "विनाश" का लॉकेट है..!! पर... ऐसा कैसे हो सकता है..?" शिवानी बुरी तरह से चौंकते हुए बोली। उसने देखा था विनाश के गले में ये लॉकेट " गोल्ड लॉकेट...।" निशा और ईश्वरी भी गौर से लॉकेट को देखने लगी।
" ये अगर विनाश का लॉकेट है तब तो जरूर वो यहां आया होगा। अब तक के मिले हुए सारे सबूत सिर्फ और सिर्फ "विनाश" कि ही ओर इशारा कर रहे हैं कि वहीं कातिल हो सकता है लेकिन चंद्रिका त्रिपाठी जी को भी फंसाया जा रहा है। फिर भी हम जब तक उसके बारे में सब कुछ सच-सच जान नहीं जाते हैं तब तक किसी भी नतीजे पर पहुंचना या गुनहगार विनाश को समझना बेवकूफी होगी हमारी। इस लॉकेट से पता लगाओ कि ये किस गोल्ड शॉप से खरीदी गई है? कब? और किसने खरीदा है? सारी जानकारी आधे घंटे के अंदर मुझे चाहिए समझे आप नटवर जी? लेकिन किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि हम क्या जानने कि कोशिश कर रहे हैं क्योंकि हो सकता है कि कोई हम पर नजर रखें हुए हो।" सब इंस्पेक्टर केशव ने लॉकेट को पॉलिथीन बैग में डालते हुए कहा।
" जी सर! मैं आपके कहें मुताबिक ही इंफॉर्मेशन आधे घंटे में लेकर आपसे मिलूंगा। जय हिन्द सर।" सैल्यूट करते हुए हवालदार नटवर ने ऊर्जस्वित निगाहों से केशव को देखते हुए कहा।
" सर, मेरी मां को बचा लीजिए। पता नहीं कौन ये सब कर रहा है? गुनहगार कोई और है और इल्जाम किसी और पर थोपे जा रहे हैं। मुझे तो लगता हैं कि ये सब सोची समझी साजिश है किसी की।" शिवानी ने अपना रोष प्रदर्शन करते हुए कहा।
"सर ये रहे आसपास के घरों में रहने वाले पड़ोसी।" एक कॉन्स्टेबल ने कहा। दरवाजे से हॉल में कदम रख रहे पड़ोसियों पर केशव ने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि टिकाई।
" आप सब जानते हैं " दामिनी" जी को ?" सीधा सा सवाल केशव ने उनकी ओर उछाला।
" जी हां ! नर्स का काम करती थी बेचारी। भली लड़की थी अनाथ। अनाथालय के किसी सज्जन ने दामिनी को पढ़ाया था फिर नर्स बन गई दामिनी।" एक बुजुर्ग ने सहजता से कहा।
" क्या आज सुबह या कल आपमें से किसी ने दामिनी को देखा था कही से आते हुए परेशान या कोई संदिग्ध व्यक्ति देखने में आया हो?" केशव ने दूसरा सवाल पूछा।
" नहीं साहब! दामिनी को नर्स बने एक साल लगभग होने वाले है एक महीने पहले ही वो हमें कम दिखाई देने लगी थी। पता ही नहीं चलता था कि कब वो हॉस्पिटल जाती थी फिर कब वापस आती थी। हम भी अपने काम धंधों में व्यस्त रहते थे तो ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए दामिनी पर। लेकिन जब वो पहली बार यहां रहने आई थी तब से वो हमारी बेटी कि तरह थी। हमसे राम- राम किए बगैर उसे चैन आता ही न था। पता नहीं बेचारी कि ये हालत आखिर क्यों? और किसने की है? " एक 40 साल कि महिला बोली।
" उस अनाथालय का नाम पता है आपको?" केशव ने पूछा।
" राधावल्लभ अनाथ आश्रम "। उसी महिला ने उत्तर दिया।
" आप सब जा सकते है। वक्त पड़ने पर दोबारा मिलेंगे। धन्यवाद।" केशव ने कहा। पड़ोसी चले गए।
" शिवानी जी ! क्या आप हमें वहां पर ले जा सकती है जहां पर से विनाश आपको मिला था?" केशव ने शिवानी कि ओर मुखातिब होते हुए कहा।
" जी सर! वो जगह जंगल के पास ही है। उसी सड़क किनारे से सकरी कच्ची पगडंडी जाती है जंगल कि ओर शायद उसी ओर से वो भागता हुआ आया था।" शिवानी ने उत्तर दिया।
" उस एरिया को अच्छे से चेक करना होगा। कोई न कोई सबूत तो जरूर हमारे हाथ लग ही जायेंगे।" केशव ने उत्साहित होकर कहा। तीनों ने हामी भरी।
जीप में आगे कि सीट पर सब इंस्पेक्टर केशव और एक कॉन्स्टेबल रावी बैठे हैं । पीछे कि सीट पर निशा, ईश्वरी और शिवानी बैठी हुई हैं। सड़क पर जीप दौड़ी जा रही है।
30 मिनट बाद।
उस सड़क किनारे।
" यहीं सड़क पर राइट साइड में विनाश मेरी स्कूटी के सामने आकर गिरा था।" शिवानी ने सड़क कि ओर इशारा करते हुए कहा। जीप साईड में रोक दी गई।
" आसपास खोजते हैं कुछ न कुछ जरूर मिलेगा। सावधानी बरतनी नितांत जरूरी है।" केशव ने गम्भीरता से कहा। पांचों विपरीत दिशाओं में आसपास फैल गए।
निशा सड़क किनारे कि झाड़ियों को हाथों से दरकिनार करते हुए आगे बढ़े जा रही है।वो देखती है कि यहां एक जैसे विशालकाय वृक्षों कि बहुलता है। हरी घासों पर चलते हुए वो जंगल कि ओर बढ़ी जा रही है। इधर केशव और रावी भी जंगल कि ओर बढ़ गए।
ईश्वरी और शिवानी जंगल और सड़क के बीच वाली जगह पर खोजबीन करने में जुटी हुई हैं।
अचानक से निशा कि नज़र पड़ती है एक कंकाल पर...।
" हे भगवान! इस सुनसान जगह पर कंकाल! किसका होगा ये? कॉल करके केशव को बुला लेती हूं।" खुद से कहते हुए निशा ने मोबाइल ऑन करके देखा तो उसका चेहरा उतर गया।
" उफ!! नेटवर्क ही नहीं आ रहा है इस मनहूस जगह पर।" हिकारत भरी निगाहों से आसपास को देखती हुई वो बोली।
" सर यहां पर तो मोबाइल में नेटवर्क भी नहीं आ रहा है।" रावी मोबाइल स्क्रीन पर उंगलियां चलाते हुए बोला।
" क्यों? क्या काम करना है अभी तुम्हे मोबाइल पर?" थोड़ी दूर पर खड़े केशव ने पूछा।
" क.. कुछ नहीं।" रावी ने झट से कहा।
" शिवानी! मुझे प्यास लगने लगी है यार।" ईश्वरी ने जोर से कहा , अपने कमर पर हाथ रखते हुए । वो पसीने से भीग चुकी हैं।
" चल जीप में है मेरा बैग पीछे कि सीट पर। उसमें दो वाटर बॉटल्स है।" शिवानी ने कहा।
दोनों जीप कि ओर बढ़ गई।
निशा चलते- चलते थक गई तो वो एक पेड़ के नीचे जा बैठी। उसके दिमाग में कंकाल ही घूम रहा है।
" पता नहीं कौनसी मनहूस घड़ी थी वो जब शिवानी...." आगे के शब्द उसके हलक में ही अटक गए। सामने नाग देवता , मृत्यु के देवता यमराज का छद्म रूप धारण करके बैठे हुए हैं। निशा के पसीने छूटने लगे। वो देखती है कि फन फैलाए वो नाग उसी कि ओर बढ़े आ रहा है। धड़कने तेज हो गई। आंखो के आगे अंधेरा छाने लगा। वो बेहोश हो गई।
20 मिनट बाद।
" इतना अंधेरा ..... क्यो है? कहां पर हूं मैं??... प्लीज मुझे बचाओ... कोई है??" सूखे गले से आवाज अटक -अटककर निकली। निशा के हाथ पीछे कि ओर बंधे हुए हैं रस्सी से। ये कौनसी जगह है पहचान पाना मुश्किल है अंधेरे कि वजह से।
" ओह! तो तुम्हे होश आ ही गया आखिरकार। क्या सोचकर आई थी यहां?? तुम्हे लगा होगा कि तुम मुझे मार डालोगी , तुम्हें जिसने भेजा है उसने शायद तुम्हारी जान कि परवाह नहीं की होगी। भटक रहा हूं मैं दर ² कि ठोकर खाकर तुम लोगों कि वजह से।" किसी शख्स कि कर्कश आवाज उस अंधेरे में गूंजी। निशा के हाथ -पैर कांप उठे। उसने सोचा ही नहीं था कि वह ऐसी मुसीबत में फंस जायेगी। एक तो पहले कंकाल फिर नाग देवता और अब किसी अपरिचित कि क्रोधित आवाज सब एक से बढ़कर एक भूचाल आ रहे हैं।
" कौन हो तुम?" साहस बटोरते हुए वो बोली।
" क्या करोगी जानकर?? अब मैं तुम्हे भी मौत कि नींद में सुलाने वाला हूं। चीखने -चिल्लाने कि कोशिशें करना बेकार है यहां पर। ये मेरी सीक्रेट जगह है। परिंदा भी पर नही मार सकता यहां मेरी मर्जी के खिलाफ़। तैयार हो जाओ अपनी मौत को अपनें गले से लगाने के लिए।" कहते हुए "वो" हंसा मानों अपनी क्रोध भावना व्यक्त कर रहा हो।
" नहीं.....!! नहीं ... ।" निशा बुरी तरह से चीखी।
आगे कि कहानी अगले भाग में।