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अप्रैल महीना शुरू नहीं हुआ कि पूरे देश में सूखे और जल समस्या को लेकर हाहाकार मचना शुरू हो गया है. इसी क्रम में मुंबई हाई कोर्ट ने एक चर्चित याचिका पर भी सुनवाई की जिसमें कहा गया था कि एक ओर तो राज्य सूखे की मार झेल रहा है, ऐसे में आईपीएल की पिच तैयार करने के लिए पानी का इस्तेमाल कितना सही है? इस मामले की देश भर में चर्चा हुई तो सूखे की मार से परेशान लोग टीस से भर उठे! सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश के तमाम दूसरे हिस्सों की तरह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की स्थिति और भी दयनीय नज़र आ रही है. यह क्षेत्र तो पहले से ही पानी की कमी और सूखे की मार से पीड़ित रहा है, मगर इस बाबत उठाये गए तमाम कदम अब तक अधूरे क्यों हैं, यह बात समझ से बाहर है! हालाँकि अखिलेश सरकार ने कुछ ऐसे प्रयास जरूर किये हैं, जिनसे तात्कालिक तौर पर राहत मिलती दिख रही है, मगर यह बात स्पष्ट है कि सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार के ज़ोर लगाने से स्थिति में बहुत कुछ बदलाव नहीं आने वाला है. इसके लिए निश्चित रूप से केंद्र सरकार को भी अपना एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना होगा, अन्यथा 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम का स्वाद इस क्षेत्र के लोगों को कतई समझ नहीं आएगा! हालाँकि, दुसरे कार्यक्रमों का भी अपना महत्त्व है, किन्तु जब देश के दुसरे हिस्सों के किसान मर रहे हों, बुंदेलखंड के लोग अपना घरबार छोड़कर जा रहे हों, भूखों तड़पने की नौबत सामने खड़ी हो, तब आखिर आईपीएल जैसे आयोजन का क्या लाभ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले ही दिनों, अपने चर्चित कार्यक्रम 'मन की बात' में 2017 में अंडर 17 फुटबाल कप के आयोजन का ज़िक्र किया था और लोगों से इसे लेकर उत्साह का माहौल बनाने का आग्रह किया था, और सच कहा जाय तो यह कोई गलत मंशा भी नहीं है उनकी! किन्तु बुंदेलखंड के भूख से पीड़ित लोग आखिर ऐसे आयोजनों में किस प्रकार मुस्कुराएं?
केंद्र में बड़ी उम्मीद से चुनकर आयी मोदी सरकार को बताना चाहिए कि उसकी सरकार को दो साल पूरा होने को आये, किन्तु बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों के लिए किसी ठोस योजना का निर्माण एवं उसका कार्यान्वयन करने की ज़हमत क्यों नहीं उठायी गयी है अब तक! जहाँ तक सवाल राज्य सरकार का है तो उसकी एक सीमा है और अखिलेश यादव इस सीमा के भीतर रहकर इस क्षेत्र के लोगों को राहत पहुंचाने का भरपूर प्रयत्न करते जरूर दिख रहे हैं. इसी क्रम में यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र में अन्त्योदय परिवारों को दी जा रही समाजवादी सूखा राहत सामग्री को अब हर महीने वितरित करने की घोषणा की है. जाहिर है यह एक बड़ा कदम है, जिससे पीड़ित परिवारों को तात्कालिक रूप से राहत मिल सकेगी. मुख्यमंत्री ने अपने पिछले दौरे में महोबा और चित्रकूट में समाजवादी सूखा राहत सामग्री वितरण का शुभारम्भ किया था. इस सामग्री से गरीब परिवारों को मिलने वाली महत्वपूर्ण राहत को देखते हुए उन्होंने बुंदेलखंड के सभी क्षेत्रों में इसे जारी रखने का फैसला लिया है. हालाँकि, हमें यह मानने में संकोच नहीं होना चाहिए कि यह कोई स्थाई फैसला नहीं बन सकता, किन्तु भूखे को तत्काल भोजन मिले और हर महीने मिलता रहे, यह भी एक बड़ी बात है. गौरतलब है कि समाजवादी सूखा राहत सामग्री के तहत प्रत्येक अन्त्योदय परिवार को 10 किलो आटा, 5 किलो चावल, 5 किलो चने की दाल, 25 किलो आलू, 5 लीटर सरसों का तेल, 1 किलो शुद्ध देशी घी तथा 1 किलो दूध का पाउडर मुहैया कराने की बात अखिलेश सरकार ने कही है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सामग्री बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सभी सातों जनपदों के 2 लाख 30 हजार अन्त्योदय परिवारों को उपलब्ध करायी जाएगी. जाहिर तौर पर इस योजना से लोगों की आत्महत्या दर में कमी तो आएगी ही, साथ ही साथ सूखे की मार के कारण उन्हें भूखे मरने को विवश तो नहीं होना पड़ेगा.
इसी कड़ी में जो और जानकारी सामने आयी है, उसके हिसाब से बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सूखा प्रभावितों के लिए राज्य सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 2 रुपये एवं 3 रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध कराए जाने वाले खाद्यान्न के भुगतान, मनरेगा के तहत 100 के स्थान पर रोजगार दिवसों को बढ़ाकर 150 करने तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पात्र परिवारों को शत-प्रतिशत समाजवादी पेंशन योजना के तहत लाभान्वित करने का फैसला पहले ही लिया जा चुका है. कहना मुश्किल नहीं है कि अखिलेश सरकार अपनी सीमा से बाहर जाकर बुंदेलखंड के लोगों के हितों को ध्यान रख रही है, पर समस्या इस हद तक विकराल हो चुकी है कि आशंकाएं अब भी व्यापक स्तर पर विराजमान दिखती हैं, खासकर पानी की समस्या को लेकर. हालाँकि, गर्मी में पानी की दिक्कत को दूर करने के लिए भी राज्य सरकार द्वारा ठोस प्रयास की शुरुआत जरूर नज़र आती है. यूपी के मुख्यमंत्री ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पीने के पानी की समस्या दूर करने के लिए हर सम्भव उपाय करने, पशुओं के चारे की व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही, बुन्देलखण्ड के समस्त जनपदों के ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घण्टे विद्युत आपुर्ति करने के भी निर्देश देते हुए कहा है कि सभी जनपदों के अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि किसी भी स्थिति में किसी भी व्यक्ति की भुखमरी से मौत न होने पाए. इसके साथ इस बात का सख्ती से पालन करने की बात भी कही गयी है कि भुखमरी के कारण किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर सम्बन्धित जनपद के जिलाधिकारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी और उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी. ठीक ही तो है, क्योंकि जिलाधिकारी के साथ दुसरे सरकारी अधिकारी अगर वातानुकूलित कमरों में बैठे रहेंगे तो राहत सामग्री की लूट-खसोट शुरू हो जाती है और कब यह सरकारी गोदाम से निकलकर दलालों के चंगुल में चली जाती है, इस बात से हर कोई हलकान और परेशान है!
न केवल यह हालिया योजना, बल्कि अखिलेश सरकार ने बुंदेलखंड को लेकर दूसरी कई योजनाओं का शिलान्यास किया है, जिसमें पिछले दिनों एक सोलर प्लांट का लोकार्पण, कालपी नेशनल हाइवे 91 के फोरलेन का उदघाटन और इसके साथ ही साथ बुंदेलखंड में 108 योजनाओं का लोकार्पण अखिलेश यादव की इस क्षेत्र से सम्बंधित सोच को जाहिर करता है. सरकारी सूत्रों के अनुसार, वर्षों से उपेक्षित बुंदेलखंड में यूपी सरकार द्वारा बहुत बड़ी पहल को अंजाम दिया गया है. इस सन्दर्भ में, ललितपुर में पावर प्लांट के साथ बुंदेलखंड के लिये सरकार बजट में विशेष व्यवस्था के लिए दृढ-प्रतिज्ञ दिखी है. एक ओर बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा बिजली निर्माण होने को अखिलेश सरकार अपनी उपलब्धियों में गिना रही है तो बागवानी के लिये पॉलिसी और बुंदेलखंड में सड़कों की हालत सुधारने पर कार्य किये जाने को अखिलेश यादव अपने सरकार की प्राथमिकता मान रहे हैं. यही नहीं, अखिलेश सरकार ने बुंदेलखंड की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के बजट में सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड समेत प्रदेश के 50 जिलों के लिए 2057 करोड़ का बजट आबंटित किया है, तो स्पेशल स्कीम फंड को 71.50 करोड़ से बढ़ाकर 200 करोड़ और पीने के पानी के लिए 200 करोड़ रुपये आबंटित किये गए हैं. इसी कड़ी में, ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी के लिए 500 करोड़ रुपये और स्पेशल स्कीम के लिए 338 करोड़ रुपये के साथ ऑयल सीड प्लांट लगाने के लिए 15 करोड़ रुपये का ज़िक्र मुख्य रूप से किया जा सकता है. साफ़ है कि यूपी सरकार की ओर से इस क्षेत्र के लिए दिल खोलकर योजनाएं बनाई गयी हैं और न केवल योजनाएं बनाई गयी हैं, बल्कि उनके कार्यान्वयन के लिए खास बजट भी दिया गया है, बस सवाल अँटकता है तो इसके जमीन पर उतरने को लेकर! जाहिर है, अगर उत्तर प्रदेश सरकार के इन प्रयासों को भी नौकरशाही ठीक ढंग से लागू करने की ज़हमत उठा लेती है तो इस गर्मी में बुंदेलखंड वासियों को कम से कम भूखों तो नहीं मरना पड़ेगा. हाँ, इस क्षेत्र के लोगों के लिए स्थाई समाधान ढूँढ़ने की कोशिश कब शुरू की जाती है, इस बात का इंतजार करते करते दशकों से ज्यादा समय बीत चुका है. बुंदेलखंड की बदहाली प्रदेश ही नहीं केंद्र सरकार में भी चर्चा का विषय सालों से रही है. केंद्र सरकारें इस मुसीबत से उबारने को घोषणाएं तो करती हैं पर उन्हें अमलीजामा पहनाने में बुंदेलखंड केंद्र व राज्य सरकार के बीच 'फुटबाल' बन जाता है. परिणाम यह है कि जल उपलब्धता बढ़ाने की निर्माणाधीन कई बड़ी परियोजनाओं को समस्या में धकेल दिया जाता है. बुंदेलखंड में उप्र के सभी सात जिलों में पानी की कमी नासूर बन चुकी है. 2007 से लेकर अब तक सूखे की विभीषिका लगातार बढ़ती ही गयी है. बीते दस वर्ष में राज्य व केंद्र सरकार की जल संचयन की विभिन्न योजनाओं के तहत लगभग दस अरब रुपए व्यय करने के बाद भी पानी लगातार पहुंच से दूर क्यों होता गया है, इसकी जवाबदेही नौकरशाही से ली ही जानी चाहिए. जाहिर है कि इस लूट-खसोट और अदूरदर्शी योजनाओं का सीधा असर कृषि पर पड़ा है. खेती-किसानी चौपट होने से कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या करने लगे हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
इस क्षेत्र के लोगों का यह बड़ा दुःख है कि देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमाम क्षेत्रों की सुध ले चुके हैं, किन्तु उन्हें पानी के सताए बुंदेलखंड वासियों का दर्द क्यों नहीं दिख रहा है? केंद्र के सन्दर्भ में यदि आंकड़ों की बात की जाय तो, सेन्ट्रल गवर्नमेंट ने उत्तर प्रदेश के 21 जिलों के लिए राष्ट्रीय आपदा मोचक निधि से स्वीकृत 934 करोड़ रुपये में से 430 करोड़ रुपये की पहली किस्त दी है, जबकि 504 करोड़ रुपये अब भी बकाया बताया जा रहा है. गौर करने वाली बात यह भी है कि प्रदेश सरकार ने नवंबर 2015 में केंद्र से सूखा प्रभावित जिलों के लिए 2027 करोड़ रुपये की मदद मांगी थी, जबकि केंद्र ने सिर्फ 1304.52 करोड़ रुपये की मदद की मंजूरी दी. ख़बरों के अनुसार, इसमें भी केंद्र ने पहले से राज्य के पास 370.20 करोड़ रुपये पड़ा होने की बात कहते हुए उतनी रकम कम कर दी और शेष 934.32 करोड़ रुपये देने का ऐलान जनवरी 2016 में किया और अब गर्मी आने के बाद भी केवल आधी या फिर उससे भी कम रकम ही जारी की गयी है. समझना मुश्किल है कि एक ओर तो विजय माल्या जैसे लोगों को तमाम लोन्स की देनदारी के बावजूद भागने दिया गया है, जबकि दूसरी ओर बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र को समय पर फण्ड जारी करने में कछुआ की चाल चली जा रही है.
न केवल भाजपा सरकार, बल्कि यही हाल राहुल गांधी का भी रहा है, जिन्होंने बुंदेलखंड के तमाम किसानों के साथ फोटो तो खूब खिंचाई, किन्तु दस साल उनकी रही सरकार ठोस कदम उठाने से दूर ही भागती रही. आज भी जब उनकी पार्टी विपक्ष में है तब जेएनयू, देशभक्ति और सहिष्णुता जैसे तमाम गैर जरूरी मुद्दों को लेकर संसद को ठप्प कर दिया जाता है, किन्तु बुंदेलखंड के दर्द को कांग्रेसी लोकसभा और राज्यसभा में उठाना कतई जरूरी नहीं समझते हैं. बहनजी सुश्री मायावती भी इस क्षेत्र से अपना नाता लगभग तोड़ ही चुकी हैं और वह कभी स्मृति ईरानी के साथ बहसबाजी तो कभी अपने ही सांसदों के द्वारा अपनी बहु की हत्या के आरोपों पर अपना समय खूब लगाती हैं, किन्तु उन्हें इस बात की फ़िक्र कब है कि बुंदेलखंड के निवासी किस हाल में हैं! ऐसे में अखिलेश यादव का प्रयास बुंदेलखंड वासियों के लिए निश्चित रूप से एक बड़ी आस हैं, हालाँकि नौकरशाहों की प्रशासनिक क्षमता और दलालों के बड़े नेटवर्क से राहत सामग्री को बचाने का बड़ा कार्य अभी शेष है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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