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सागर की लहरें

6 नवम्बर 2021

71 बार देखा गया 71

वो सागर की चंचल लहरें,

आती किनारे, अठखेलियाँ करती,
जैसे हो कोई चंचल हिरनी
कुलांचे मारती,
दिग्भ्रमित सी, इधर-उधर ताकती,
फिर मुड़कर वापिस भाग जाती।

पर बहेलियों जैसे नासमझ ये इंसान,
समुद्र के किनारों पर
खड़ी करते अपनी अट्टालिकाएं,
चिढ़ाती रहतीं जो रात दिन,
अपनी बौनी ऊंचाइयों से,
इन लहराती बड़ी लहरों को।

लहरें ताकती जब अपने प्रेमी चंद्रमा को,
शिकायती स्वर और मुखर हो जाते।
तट पर छोड़े गए तमाम
कचरे को देखकर।

चंद्रमा अपनी प्रेयसी लहरों की
शैय्या, समुद्रतट पर इंसानों की
फैलाई गंदगी देख भड़कता,
भावुक होता और बुलाता
उन्हें अलिंगन करने को
सुदूर क्षितिज में।

दोनो के मिलन से उत्पन्न सुनामी,
बहा ले जाती अपने साथ,
इंसानों की तमाम नाइंसानी करतूतें
और इंसान को भी।

अरे! मानव प्रकृति कितना कुछ देती है, संभल जा,
मत कर तट से छेड़छाड़, एक अदद इंसान बन जा।।


गीता भदौरिया

Jyoti

Jyoti

👌

27 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बहुत खूब,बहुत ही संजीदगी से अपने प्रकृति संरक्षण का संदेश दे दिया,बेहतरीन👌

23 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत बढिया 👌 👌

8 दिसम्बर 2021

संजय पाटील

संजय पाटील

बेहतरीन 👌

7 दिसम्बर 2021

रमा

रमा

शानदार

8 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

9 नवम्बर 2021

आभार 🙏💐💐

Pragya pandey

Pragya pandey

बहुत सुंदर कविता है 🙏🙏🙏

7 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

9 नवम्बर 2021

आभार 🙏💐💐

वणिका दुबे "जिज्जी"

वणिका दुबे "जिज्जी"

मैंम बहुत ही प्रेरणा दायक रचना बहुत ही अच्छा संदेश आपने प्रकृति के माध्यम से दिया है शुभकामनाएं

7 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

7 नवम्बर 2021

धन्यवाद

Uday Raj Singh

Uday Raj Singh

बहुत बढ़िया कविता है, एक सन्देश देती हुई।

6 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

7 नवम्बर 2021

धन्यवाद

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