निर्जन, विशाल तट, हो खुला आसमान,
या कि ज्वार-भाटा, कि हो तम वीरान।
श्वेत-श्याम, सफ़ेद-लाल गहे रंग धारीदार,
दीपस्तंभ अडिग, अविचल, निर्विकार।।
अडिग, अविचल और गंभीर सदा,
सतर्क रहे दिन-रैन या हो आपदा।
सुनामी का किया डट कर सामना,
दिखाया चक्रवातों को भी आईना।
संचालित करे डीजीपीएस, वीटीएस,
जलपोत समेत अगणित सुविधाएं,
किन्तु पहचान निरंतर हो जिससे
वो लाइटहाउस या दीपघर कहलाए।।
वक्त के साथ चलें हम, न हो जीवन वृथा,
कर विचार किया टूरिज्म अंगीकार यथा।
सौन्दर्य औ’ तकनीकी का मनोरम संगम,
कर रहा टूरिज्म का आलिंगन, अभिनन्दन,
सर्वथा अप्रतिम, है ये दृश्य विहंगम।।
आमंत्रित करता दीपघर जन-जन औ’ कारावन,
मनोरम दीपस्थल मांडवी, द्वारका व् वेरावल,
अगुआड़ा, देवगढ़, जयगढ़ औ' भटकल।
रमनीय, सुन्दर, सुगम एवं तीर्थस्थल।।
मुत्तम, पांडिचेरी, पुलिकट, पोर्टोनेवो
अन्तर्वेदी, कलिंगपट्ट्नम व् सैक्रामेंटो।
मिनिकॉय, सुहेलीपार, वायपिन और थिन्कारा,
पुरी, पारादीप, नार्थ सिंक आदि नाम अपारा।।
कृति - गीता भदौरिया