19 जनवरी 2022
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साहित्य के वृहत सागर में एक ओस की बूंद, जिसके सपने बहुत बड़े हैं और पंख छोटे। छोटे पंखों के साथ अपना आसमान खोज रही हूँ। प्रकाशित पुस्तकें: - अभिव्यक्ति या अंतर्द्वंद - 'राम वही जो सिया मन भाये' D
चमकीली धूप आई सुहानी रचना। 👍👍👍👍👍👍
आभार
<div align="left"><p dir="ltr">कहते हैं वो, उम्र हो गई</p> <p dir="ltr">क्यों झमेलों में पड़ते हो?<b
<p dir="ltr"><span style="font-size:18px" ;=""><span style="color:#000000;">भारत - भाल की बिंदी हूं
<div align="center"><p dir="ltr"><b>मनमौजी लेखक</b><b></b><br> </p> </div><p dir="ltr"><br> </p> <di
<div>कुछ पुराने ख्याल के हैं हम,</div><div>और कुछ पुराना इश्क़ है हमारा,</div><div>उनकी जरा सी मुस्कु
<div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>शाम, ख़ुशी, तन्हाई </div><div><br></div><div>
<div><br></div><div><br></div><div>"उठ खड़ी हो अग्निशिखा-सी, </div><div><br></div><div>रौशन 
<div><br></div><div><br></div><div>पल पल दिल के पास तुम रहती हो,</div><div>मेरी सुनती अपने दिल की कह
<div><br></div><div><br></div><div>सोनू सूद लॉकडाउन में, करते रहे मजूदूरों संग उठाईगीरी।</div><div>ह
<div>यूँ बेकरारी और परेशानी की खलिश ना होगी,</div><div>कभी घर पर बच्चों की मासूम शरारतें तो दे
<div align="center"><p dir="ltr"><b><u>आक्रोश</u></b></p></div><div align="left"><p dir="ltr">वह मान
<div>क्या कहूँ! मेरे लिए हीरा हो,</div><div>माणिक या कोहनूर हो तुम!</div><div>सीप के मुँह में अनजाने
<div><br></div><div><div align="left"><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">है नमन तुझे भारत भूमि,</p><p
गुनगुनी धूप की चादर ओढ़े,सुबह की चाय में ढलतीतुम आंगन में आती धूप सी,बिखरती आओ तो कोई बात बने। चमकी
<div align="left"><p dir="ltr">निर्जन, विशाल तट, हो खुला आसमान, </p>
<div align="left"><p dir="ltr"><span style="font-size: 1em;">वो सागर की चंचल लहरें,</span><br></p><d