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आक्रोश

13 नवम्बर 2021

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आक्रोश

वह मानव ही क्या

जो थोड़ा इंसान ना हो!

वह दिल ही क्या

जिसमे थोड़ा सा प्यार ना हो।।


वह रिश्ता ही क्या

जो थोड़ा मजबूत ना हो,

वह जीवन ही क्या

जिसमे अपनों का एहसास ना हो।।


वह सुबह ही क्या

जिसमे उजालों का अभाव हो,

वह प्रगति ही क्या

जिसमें अपनों का साथ ना हो।।


वह शामें ही क्या,

जिसमें चाय का  दौर ना  हो।

वह राही ही क्या

जिसकी मंजिल कोई ठौर ना हो।।


वह जवानी ही क्या

जिसमे आक्रोश  और उबाल ना हो,

वह कहानी ही क्या

जिसमे देश का कोई ख्याल ना हो।।


गीता भदौरिया

Jyoti

Jyoti

👍

27 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बहुत खूब👌

23 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत खूब 👌 👌

8 दिसम्बर 2021

रमा

रमा

बहुत जी बढिया आक्रोश है आपका। नमन।

21 नवम्बर 2021

Uday Raj Singh

Uday Raj Singh

बहुत बढ़िया

13 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

14 नवम्बर 2021

धन्यवाद

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत सुंदर

13 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

14 नवम्बर 2021

धन्यवाद

पंकज गुप्ता

पंकज गुप्ता

बहुत खूब

13 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

14 नवम्बर 2021

धन्यवाद

sayyeda khatoon

sayyeda khatoon

बहुत बेहतरीन 👌👌 मेरी कविताएं भी पढ़ कर देखें 😊😊

13 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

13 नवम्बर 2021

धन्यवाद जरूर

Pragya pandey

Pragya pandey

सुंदर रचना 🙏🙏🙏🙏

13 नवम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

13 नवम्बर 2021

धन्यवाद प्रज्ञा जी

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