मनमौजी लेखक
सबकी परेशानियों को सुनकर,
अपनी नादानियों को गुनकर,
फिर खुद उनसे उलझकर,
औरों को सुलझाती हूँ मैं,
क्या है कि! स्वभाव से फक्कड़ हो गई हूँ मैं,
थोड़ी सी लाल बुझक्कड़ हो गई हूँ मैं।।
कभी लिखती हूँ कविता,
कभी कविता मुझे लिखती है,
कभी कहती हूँ मैं कहानी,
कभी कहानी मुझे कहती है,
क्या है कि! स्वभाव से बेढब हो गई हूँ मैं,
थोड़ी सी लेखक हो गई हूँ मैं।।
कभी सब की सुन कर,
अपने मन की करती हूँ मैं,
कभी अपने मन की सुनकर,
सबके मन का करती हूँ मैं,
क्या है कि! स्वभाव से फौजी हो गई हूँ मैं,
थोड़ी सी मनमौजी हो गई हूँ मैं।।
(लालबुझक्कड़: ऐसा मूर्ख व्यक्ति जो वास्तव में जानता तो कुछ भी न हो, फिर भी अटकल-पच्चू और ऊट-पटांग अनुमान लगाकर दुरूह बातों का कारण तथा समस्याओं का समाधान करने में न चूकता हो)