कहते हैं वो, उम्र हो गई
क्यों झमेलों में पड़ते हो?
तभी अनछुई ख्वाइशें,
चुपके से गुनगुनाती हैं।
मत कर साबित खुद को
रख खुद पर विश्वास,
वक्त खुद साबित करेगा
कि जीता कौन?
वो उम्र के हिमायती ?
या तू!
जिसने उम्र को याद ही नहीं किया।।
गीता भदौरिया
26 अक्टूबर 2021
कहते हैं वो, उम्र हो गई
क्यों झमेलों में पड़ते हो?
तभी अनछुई ख्वाइशें,
चुपके से गुनगुनाती हैं।
मत कर साबित खुद को
रख खुद पर विश्वास,
वक्त खुद साबित करेगा
कि जीता कौन?
वो उम्र के हिमायती ?
या तू!
जिसने उम्र को याद ही नहीं किया।।
गीता भदौरिया
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साहित्य के वृहत सागर में एक ओस की बूंद, जिसके सपने बहुत बड़े हैं और पंख छोटे। छोटे पंखों के साथ अपना आसमान खोज रही हूँ। प्रकाशित पुस्तकें: - अभिव्यक्ति या अंतर्द्वंद - 'राम वही जो सिया मन भाये' D
सुन्दर कविता
23 दिसम्बर 2021
बहुत खूब 👌 👌
8 दिसम्बर 2021
लाजबाब 👌👌👌
10 नवम्बर 2021