एक प्राण नदी के चारो ओर झरने, और वायु का शोर, शांत, गति में पुलकित मोर जीवन धारा करती हिलोर! शिथिल हृदय, आहत मन विस्मित चित्र, और सूनापन लगता है कि कायनात मे, लहू-लुहान हैं सबके स्वपन, हे मानव, क्या हस्ती है तेरी, डूबती, उतराती कश्ती है तेरी, पा
'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल 15 कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है!
सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। झाँसी की रानी (कविता) उनकी प्रसिद्ध कविता है। वे राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं। स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपन
मन के भावों को शब्दों में पिरोकर सृजन करने का एक अलग ही आनंद है। सामान्यतः यह मानी जाती है कि रचनाएं कवि की कल्पना मात्र होती है, लेकिन सच तो ये है कि कवि अपनी कल्पनाओं में भी उसी हकीकत का जिक्र करता है , जो वो जीता है अर्थात् जो वह अपनी रोजमर्रा की
तू मेरा हमसफर, मेरा हमदर्द,मेरे नाव का मांझी। तू मेरा जीवन, में तेरे सुख दुख की सांझी। तू मेरा प्रियतम अलबेला, में तेरे ग्रहस्थी कि गाड़ी। तू मेरे सांसो की माला, में तेरे ह्रदय की वासी। तू मेरे जीवन का अधिकारी, में तेरी प्राणप्यारी। तू बना दिया में
कुछ कविताएँ महाभारत के पात्रों को लेकर और कुछ समाज के अन्य पहलुओं का चित्रण करती हुई
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म प्रयाग में ठाकुर रामनाथ सिंह के घर हुआ। शिक्षा भी प्रयाग में ही हुई। सुभद्रा कुमारी बाल्यावस्था से ही देश-भक्ति की भावना से प्रभावित थीं। इन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। विवाह के पश्चात भी राजनीति में सक्रिय भाग लेत
सुभद्रा कुमारी चौहान एक प्रसिद्ध हिंदी कवियत्री थी जिन्होंने मुख्यतः वीर रस में लिखा। उन्होंने हिंदी काव्य की अनेकों लोकप्रिय कृतियों को लिखा। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना झांसी की रानी थी, जो रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करने वाली एक भावनात्मक कविता
मुसाफिर भटकते हुए खुद ही अपनी जिंदगी की तलाश करते रहते है लेकिन कभी-कभी वही मुसाफिर जब अपनी राह भटक जाता है, तो उसे किसी राहगीर की ही तलाश होती है उसे ऐसे किसी मसीहा की सख्त जरूरत होती है जो उसकी जिंदगी में मार्गदर्शन कर सके।।
( **धर्मपुरा** (कहानी प्रथम क़िश्त ) दुर्ग ज़िले के धमधा तहसील में एक छोटा सा गांव है धर्मपुरा । इस गांव का नाम धर्मपुरा कैसे पड़ा इसके पीछे एक कहानी है । उस गांव के कई बुजुर्ग बताते हैं कि आज से सौ वर्ष पूर्व यहां के अधिकान्श खेतों व मेढों म
जीवन के सफर की एक नई शुरुआत होती है फेरो से। विश्वास कायम किया जाता है,कसमो,वादों के घेरे से। जिम्मेदारी डाल दी जाती है,एक दूजे पे साथ फेरो से। नए रिश्ते, नया घर, नई परम्परा, बसना है नए शहरों में। उन अनजान गलियों में रहना है उसे अब पहरों में। अपना रि
यह पुस्तक मेरे पढ़ाई के दौरान लिखी गई कुछ कविताओं का संकलन है
मणि जैसा रूप है तेरा , जो करता प्रकाश । कैसी यह लगन लगाई मन में , कैसी लगाई आस।
एक आदमी के संघर्ष और एक चूहे की जिजीविषा की जुगलबंदी ।
लोगों की फितरत देख कर के कभी-कभी उसको ऐसा लगता था उसने इस जहां में आकर के एक बहुत बड़ी गलती से करती है न जाने क्यों ऐसा सोचता था पता नहीं इस समाज के संकीर्ण सोच या फिर कशमकश लोगों के ताने।
बाबुलाल रायपुर शहर के बहुत धनी इंसान थे। उनके वहां कै राईस मिल व दुकानें थी। जिनका मूल्य 50 करोड़ से कम नहीं था। वे और अधिक कमाने के चक्कर मेँ शेयर मार्केट में अनाप शनाप तरीके से पैसा लगाने लगे । कुछ महीनों बाद शेयर मार्केट ढह गया तो उनके ऊपर
मन के भावों को शब्दों में पिरोकर सृजन करने का एक अलग ही आनंद है। सामान्यतः यह मानी जाती है कि रचनाएं कवि की कल्पना मात्र होती है, लेकिन सच तो ये है कि कवि अपनी कल्पनाओं में भी उसी हकीकत का जिक्र करता है , जो वो जीता है अर्थात् जो वह अपनी रोजमर्रा की
हिंदुस्तान की एकता और वीर जवानों की गाथा का संकलन
हमारे आस पास बहुत सी ऐसी घटनाए होती है जिसके बारे में हमे पता नही चलता है ऐसी ये हमारा शरण है जो सामने से कुछ और लगता है, और असलियत कुछ और है,