ना अर्ज किया है ना फर्ज किया है किसी ने हमें रिजेक्ट किया बाद में उसी ने हमें गूगल पर सर्च किया है अजी हार नहीं मानी हमने एक वक्त पर लोहा भी पिघल जाता है अजीब हार नहीं मानी हमने इस वक्त पर नोहा भी बिगड़ जाता है और हम से मत उलझो शेर सो रहा हूं तब भी
कोरोनावायरस के चलते देश में लाक डाउन लगा हुआ है। जिसके चलते अन्य राज्यों में बसे हुए मजदूरों का पलायन हो रहा है। और मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर चल पड़े हैं। इन्हीं मजदूरों पर केंद्रित मेरी ये कविता है। बस चले जा रहे हैं। बे
पशुधन विधेयक 2023 आज हम सभी जानतें हैं कि पशु भी मानव जीवन में कितना महत्व रखते हैं भला ही वह सड़क के पशु हो या हमारे पालतू पशुओं में एक वफ़ादार शब्द भी एक आज के समय में अतिशयोक्तिपूर्ण हैं आओ पढ़े
राजा रानी हर कदम पर है बनना है तो इक्का बनो राजा रानी हर कदम पर है बनना है तो इक्का बनो बनना है तो इतना बनो की चाल ही पलट दे सब एक नंबर का है पगली दो नंबर का नहीं कमाते हम अजीत सब एक नंबर का है पगली तो नंबर का नहीं कमाते हम और जाकर कई और लाइन मार्ग
यह हमारे दैनिक जीवन से जुड़े छोटे-बडे़ अनुभवों को एक पुस्तक के रूप में की गई प्रस्तुति है..... हमारा जीवन, जो अनेक उतार-चढ़ाव और संघर्षों से ही बनता है, उसी से जुड़े कुछ प्रश्न और उनके उत्तर खोजने का एक छोटा सा प्रयास है। आशा करती हूं पाठकों को पसंद
ह कहानी शरीफो की शराफत एक ऐसे ही क्रूर जमींदार ठाकुर रतनसिंह और उनके दो बेटे जालिम सिंह और सालिम सिंह की कहानी है।इस कहानी की नायिका एक गरीब किसान की बेटी वैशाली है।जो ठाकुर के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती है।दोनों के बीच एक जबरदस्त संघर्ष की स्थित
हमारे जिंदगी में अक्सर कुछ ना कुछ बदलाव होते रहते हैं। इस बदलाव को लेकर हमारी ये पेशकश जो आपको पसंद आएगी में सायद बदल गया हूं या जमाने में परिवर्तन आया है कलतक में खुद को तलाश रहा था आज जमाने को तलाश रहा हूं यहां सबकुछ तो पहले जेसा है फिर परिवर्तन
ये कहानी है एक बहु की नजर से उसकी सास "अम्मा" की ...या कह सकते है मेरी दादी की.. मेरी माँ की नजर से.. मैंने कहने की कोशिश की है जो मैने देखा, सुना, समझा... ये मेरी ओर से मेरी दादी के लिए एक श्रद्धांजलि हैं l 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 सुबह के छह बज रहे थे..
इस किताब मे जीवन के बारे मे सारे फैक्ट और बरीकियौ को देखा जा सकता है। बहुत है जोशीला कविता और भी बहुत कुछ। जो के जीवन के गुण को दर्शाया है
मेरी यह कहानी एक ऐसे पात्र की है जो अपने जीवन में ऐसे आगे बढ़ता है कि वह सोच ही नहीं पाता कि जीवन भी ऐसा होता है। जीवन के हर रास्ते पर हर व्यक्ति को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है , मुश्किलों को पार - पार करते करते वह इतनी दूर चला जाता है कि वह सो
शीर्षक-सोच बदलना है ! रचनाकार- क्रान्तिराज ( पटना,बिहार) यह कहानी की पात्र ,घटनाए सभी कालपनिक है किसी व्यक्ति विशेष से मिलता जुलता नही है ,नही नाम वस्
एकटा मी माझ्यात रमलेला, तन्हाई ची रात आहे.................. जोडीला घोटभर दारू, मी विरहाच्या
कोरोना की वैक्सीन बन गयी है, किन्तु हर रोज की तरह आज भी मार्किट में भारी भीड़ लगी हुई थी। उसी भीड़-भाड़ वाले मार्किट में मैं भी था; जहाँ कोई मास्क लगाए नहीं था, वहाँ मैंने मास्क लगा रखा था ! लोग अजीब नजरों से मुझे देख रहे थे, क्योंकि मैं उन्हें 'मास्क'