इस पुस्तक का मकसद समाज में होने वाले दैनिक कार्य, प्रेम, जीवन में होने वाली घटनाएं और समाज में आवश्यक परिवर्तन जिनकी भावी समाज को आवश्यकता है।
भाग- 01 आज जब उसका राज्य प्रसाशनिक सेवा की परीक्षा का परिणाम आया था और वह इसमें डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित हुआ था । घर में सभी लोग बहुत खुश थे कि बेटा बड़ा अधिकारी बन गया
यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसका प्यार में मिले धोखे की वजह से इससे विश्वास उठ चुका है। उसे प्यार शब्द से भी नफ़रत है। अब उसे सिर्फ जीने की एक वजह तलाशनी है। वो वजह, वो मंज़िल उसे कैसे मिली जानने के लियर कहानी को अंत तक पढ़ें।
एक कथा महायुद्ध की एक कथा कलयुग के प्रपच की एक कथा कलयुग के उदय की एक महान राजा की
राष्ट्रकवि दिनकर के इस 'वेणुवन' में लेख भी हैं, निबन्ध भी और काल्पनिक संवाद भी। यह चिन्तन-मनन के अभयारण्य की तरह है जिसका आकर्षण और प्रभाव अन्त तक बना रहता है। इसमें शामिल हर पाठ अपने रंग में रँगने की क्षमता रखता है। 'अर्धनारीश्वर' में दिनकर नर-नारी
मेरी कुछ चुनी हुई कविताओं का संकलन आपके लिए
सैकड़ों वर्षों की हिंदुओं की आस्था एवं विश्वास व हिंदुत्व भावना के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की मंदिर निर्माण के आनंद में ओत प्रोत अवध नगरी के जनमानस की भावनाओं का वर्णन
‘नीरजा’ में बिलकुल परिपक्व भाषा में एक समर्थ कवि बड़े अधिकार के साथ और बड़े सहज भाव से अपनी बात कहता है। महादेवी जी के अनुसार ‘नीरजा’ में जाकर गीति का तत्त्व आ गया मुझमें और मैंने मानों दिशा भी पा ली है।’’ प्रस्तुत गीत-काव्य ‘नीरजा’ में ‘निहार’ का उप
कुछ अल्फाज तुम्हारे नाम,मेरे नादां साथी। |माना तुम अब हमारे साथ नहीं हो,पर तुम्हारी दी गई यादें हमें हमेशा हंसाएगी और हाँ, जब भी याद करूँगा तो चेहरे पर हंसी जरूर आएगी।| |ये पंकियाँ मेरे साथी और एक ऐसे दोस्त के नाम जो मेरे जिंदगी का अहम हिस्सा था,तुम
इसमें 1927 से 1931 देवी जी का चिंतन और दर्शन पक्ष मुखर होता प्रतीत होता है। 'रश्मि' काव्य में महादेवी जी ने जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। मीरा ने जिस प्रकार उस परमपुरुष की उपासना सगुण रूप में की थी, उसी प्रकार महादेवीज
सांध्यगीत महादेवी वर्मा का चौथा कविता संग्रह हैं। इसमें 1934 से 1936 ई० तक के रचित गीत हैं। 1936 में प्रकाशित इस कविता संग्रह के गीतों में नीरजा के भावों का परिपक्व रूप मिलता है। यहाँ न केवल सुख-दुख का बल्कि आँसू और वेदना, मिलन और विरह, आशा और निराशा
दीपशिखा महादेवी वर्मा जी का का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन १९४२ में हुआ। इसमें १९३६ से १९४२ ई० तक के गीत हैं। "दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएँ संग्रहित हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है। सभी रचनाओं को ऐसी
युवाओं को जातिवाद छोड़कर मिलजुल कर देश प्रेम के प्रति जागरूक क्या गया है!
1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री क
अग्निरेखा महादेवी वर्मा का अंतिम कविता संग्रह है जो मरणोपरांत १९९० में प्रकाशित हुआ। इसमें उनके अन्तिम दिनों में रची गयीं रचनाएँ संग्रहीत हैं जो पाठकों को अभिभूत भी करती हैं और आश्चर्यचकित भी, इस अर्थ में कि महादेवी के काव्य में ओत-प्रोत वेदना और करु
यह किताब निशा के जीवन के संघर्ष की कहानी है, जो समाज की रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए सफलता हासिल करती है | वह बेटे की तरह ही अपनी सभी जिम्मेदारी और कर्तव्य का पालन करती है | यह कहानी कभी ना हार मानने वाली उस लड़की की है, जो समाज की हर लड़की को अपने जी