शरीर के किसी भाग पर आघात पहुँचाता है तो उसकी प्रतिक्रिया से शरीर का रोम-रोम काँप उठता है। मन पर मस्तिष्क भी उद्विग्न और बेचैन हो उठते है। समूचा ध्यान शारीरिक पीड़ा पर केन्द्रित हो जाता है। मनः संस्थान असन्तुलित हो तो शरीर भी स्वस्थ एवं निरोग नहीं रह पाता। शरीर के सभी अवयव -मनः संस्थान परस्पर एक-दूसरे की स्थिति से प्रभावित होते है। यह शरीर को चैतन्यता एवं एकता के प्रमाण है। दृश्य और अदृश्य प्रकृति-समूचा है, जिसके सभी घटक परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए है। इसके एक सिरे पर जो कुछ भी घटित होता है, तो अन्यान्य स्थानों पर उसकी प्रतिक्रिया परिलक्षित होती है।
इस तथ्य को प्रतिपादित करने एवं रहस्योद्घाटन करने का जो वि ज्ञान भारत में प्राचीनकाल से प्रचलित था, उसे ज्योतिष विज्ञान के नाम से जाना जाता है। इसका लक्ष्य था- अन्तर्ग्रही सम्बन्धों की वैज्ञानिक विवेचना करना तथा एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों से अवगत कराना। फलतः इस विद्या के सहारे पृथ्वी से इतर ग्रह-नक्षत्रों के अनुदानों से लाभ उठा सकना एवं दुष्प्रभावों से बचाव कर पाना सुलभ था, जो आज विकसित भौतिक विज्ञान द्वारा भी सम्भव नहीं है। कालान्तर में यह उसका स्थान फलित ज्योतिष की मूढ़-मान्यताओं एवं भ्रान्तियों ने लिया, जिसे देखकर विज्ञजनों द्वारा इस विद्या की उपेक्षा हुई।
इसके बावजूद भी विज्ञान ने जब से प्रौढ़ता की ओर कदम रखा है, उसका ध्यान अन्तरिक्ष की खोजबीन की ओर आकर्षित हुआ है। साथ ही ग्रह-नक्षत्रों, सौर-मण्डल की गतिविधियों, आपसी सम्बन्धों एवं परस्पर एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने के लिए छुटपुट प्रयास भी चल रहे है। प्रकारान्तर से भौतिक विज्ञान अब उन्हीं निष्कर्षों पर पहुँच रहा है, जिन पर सदियों पूर्व तत्त्ववेत्ता ऋषि, जो ज्योतिर्विज्ञान के मर्मज्ञ भी थे, पहुँच चुके थे।
ज्योतिर्विज्ञान के आचार्यों ने सौर-मण्डल के ग्रह-नक्षत्रों को देवशक्तियों के रूप में प्रतिष्ठापित किया था। नौ ग्रहों की नौ देवताओं के रूप में प्रतिष्ठापना की गई है। ज्योतिर्विज्ञान की यह मान्यता सदियों से चली आ रही है कि सौरमण्डल का अधिपति सूर्य मात्र अग्नि का धधकता पिण्ड ही नहीं है, अपितु जीवन प्राण ओर सक्रिय अग्नि का पुँज है, जो प्रतिपल अपने सौर-मण्डल के सदस्यों को अपनी गति-विधियों से प्रभावित करता है। न केवल सूर्य बल्कि मंगल, बृहस्पति, बुध आदि भी पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करते है।
इस तथ्य को विश्व के प्रसिद्ध भौतिकविद् भी स्वीकार करने लगे हैं कि सौर-मण्डल की गतिविधियाँ पृथ्वी के वातावरण एवं जैविक परिस्थितियों पर प्रभाव डालती है। यूगोस्लाविया के नाभिकीय भौतिकविद् प्रो. स्टीवन डेडीजर’ जैसे विद्वानों का कहना है कि विज्ञान को अपनी अन्तरिक्षीय खोज की सफलता के लिए प्राचीन ज्योतिर्विज्ञान का अवलम्बन लेना होगा। प्राकृतिक घटनाओं की अभी भी कितनी ही गुत्थियाँ ऐसी हैं, जिनको सुलझा पाने में आज का विकसित विज्ञान भी असमर्थ है। आधुनिक विज्ञान अन्तरिक्ष एवं सबन्यूक्लियर क्षेत्र के में अपनी शानदार सफलता के बावजूद भी ब्रह्माण्ड सम्बन्धी घटनाओं की व्याख्या कर पाने में अपनी अक्षमता व्यक्त कर रहा है, क्योंकि इसका क्षेत्र सीमित है। इसके विपरीत ज्योतिष विज्ञान का ब्रह्माण्डीय ज्ञान अंतरिक्षीय रहस्यों का उद्घाटन करने में पूर्णतया सक्षम है।
भौतिक विज्ञान के सिद्धान्तानुसार सभी पदार्थकण इस ब्रह्माण्ड में एक दूसरे के सापेक्ष गतिशील है। वे अपना स्थान भी परिवर्तित करते रहते है। फलतः जिस पर्यावरण में वे गतिशील रहते है, वह बदलता रहता है और एक अविच्छिन्न ब्रह्माण्डीय श्रृंखला में बँधे होने के कारण कणों का संदोह विशेष प्रभाव उत्पन्न करता है, जो अन्यान्य ग्रहों तथा पृथ्वी, चर-अचर पदार्थों एवं खगोलीय पिण्डों को प्रभावित करता है। इस तथ्य से परिचित होते हुए भी विज्ञान ग्रह-नक्षत्रों की गति, स्थिति और प्रभावों की स्पष्ट जानकारी देने में असमर्थ है। उपर्युक्त टिप्पणी देते हुए भौतिकविद् स्टीवन डेडीजर का कहना है कि समग्र जानकारियों के लिए ज्योतिर्विज्ञान के विलुप्त ज्ञान को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
प्रख्यात आस्ट्रियाई वैज्ञानिक एरनेस्ट मैक का मत है कि ब्रह्माण्ड के अनंत कण एक-दूसरे से जुड़े हुए है तथा उनमें घना सम्बन्ध है। सौर लपटें जो कि ग्रहों की निकटता एवं चन्द्रमा की गति से किसी न किसी प्रकार सम्बन्धित हैं, पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के व्यतिरेक उत्पन्न करती है। ग्रहीयोग पृथ्वी एवं जैविकी चुम्बकीय पर अपना प्रभाव डालते है। ग्रहों के असन्तुलन से उत्पन्न होने वाली चुम्बकीय आँधी प्रकृति प्रकोपों एवं पृथ्वी के जीवधारियों में अनेकों प्रकार के मानसिक एवं नर्वस सिस्टम के रोग उत्पन्न करती है। भू-चुम्बकत्व में होने वाले हेर-फेर से मानवी आचरण और स्वभाव भी अछूता नहीं रहता है।
रूस के वैज्ञानिक चीनेवस्की ने इस क्षेत्र में लम्बे समय तक खोजबीन करने के उपरान्त महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले है। उनका कहना है-सौरमण्डल की हलचलों से पृथ्वी के वातावरण एवं घटनाक्रमों का घना सम्बन्ध है। हर ग्यारहवें वर्ष सूर्य में आणविक विस्फोट होता है। इन वर्षों में पृथ्वी पर युद्ध और क्रान्तियाँ जन्म लेती है। प्रकृति प्रकोप एवं महामारियाँ बढ़ती है। अभी 1999 व 2000 का समय भी ऐसा ही बताया गया है।
जियोजारजी गिआरडी नामक वैज्ञानिक ने ज्योतिर्विज्ञान से प्रेरणा लेकर विज्ञान की एक नवीन शाखा को जनम दिया-ब्रह्माण्ड रसायनशास्त्र। गिआरडी का कहना है कि समूचा ब्रह्माण्ड एक शरीर है, इसका कोई भी घटक अलग नहीं वरन् संयुक्त रूप से एकात्म है। इसलिए कोई भी ग्रह-तारा-पिण्ड कितना भी दूर क्यों न हो, पृथ्वी के जीवन को प्रभावित करता हैं
प्रो. ब्राउन का मत है कि पृथ्वी सौर-मण्डल का ही एक सदस्य है और चन्द्रमा उसका ही एक उपग्रह। वैज्ञानिक दृष्टि से पृथ्वी और चन्द्र की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। न केवल चन्द्र और सूर्य वरन् मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि की गतियाँ भी पृथ्वी को प्रभावित करती है। उन्होंने अन्तर्ग्रही प्रभावों को समानुभूति नाम दिया है।
अहमदाबाद भौतिक अनुसंधान शाला के दो वैज्ञानिकों प्रो. के. आर. रामनाथन् और डॉ. एस. अनन्तकृष्णन् ने यह घोषणा की है कि पृथ्वी सौर मण्डल की अभिन्न घटक है। आकाशीय पिण्डों के स्पन्दन धरती को भी व्यापक रूप से प्रभावित करते है। अपनी एक खोज में इन वैज्ञानिकों ने पाया कि वायुमण्डल के ‘डी’ क्षेत्र में शक्तिशाली एक्स-किरणों के स्रोत स्कोर्पिओं-11 के गुजरने से वनस्पति एवं जीव जगत की हलचलें बढ़ जाती तथा उनका हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
परमाणु शक्ति आयोग के भूतपूर्व अध्यक्ष और विश्व-विख्यात भौतिकविद् डॉ. साराभाई ने विभिन्न देशों से आये वैज्ञानिकों की एक गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि सूर्य के अतिरिक्त भी अन्य आकाशीय पिण्डों का प्रेक्षीय प्रभाव धरती पर आता है। यदि ज्योतिर्विज्ञान के सूत्रों को ढूँढ़ा जा सके और अन्तरिक्षीय ज्ञान में प्रयुक्त किया जा सके तो अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ हाथ लग सकती है।
रूसी वैज्ञानिक ब्लादीमोर देस्यातोब ने इस सम्बन्ध में व्यापक शोधकार्य किया है। उनका कहना है कि पृथ्वी पर समय-समय पर आने वाले चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता या फ्रीक्वेंसी बदलना आकाशीय पिण्डों के ऊर्जा प्रवाह के परिणाम है। अपनी आरम्भिक खोजों में ब्लादीमोर ने यह पाया कि जब सूर्य पर एक विशेष प्रकार के ज्वाला प्रकोप (फ्लेयर) फूटते है, तो धरती पर प्रचण्ड चुम्बकीय तूफान आते है, जिनसे प्रभावित तो सभी होते है, पर कमजोर मनः स्थिति वाले व्यक्तियों पर उनकी प्रतिक्रिया अत्यधिक दिखाई पड़ती है। आत्महत्याएँ, हत्याएँ एवं असन्तुलन के फलस्वरूप सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि मस्तिष्कीय क्रिया-क्षमता का मूलभूत स्रोत, अल्फा-एनर्जी धरती के चुम्बकीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ है और भू-चुम्बकत्व का सीधा सम्बन्ध आकाशीय पिण्डों से है। इसलिए मानवी जीवन अन्तरिक्षीय घटनाक्रमों एवं शक्तियों से विलक्षण रूप से सम्बन्धित है। अस्तु. अंतरिक्ष में पैदा होने वाली हर हलचल पृथ्वी, मानवी प्रकृति, मन, बुद्धि एवं चेतना को प्रभावित करती है।
प्रसिद्ध खगोल शास्त्री पास्कल का कहना है कि सूर्य और चन्द्रमा के द्वारा आरोपित सशक्त खिंचाव से सभी परिचित हैं, जो समुद्रों में ज्वार-भाटे उत्पन्न करते है। ये जीवधारियों पर भी अपना प्रभाव छोड़ते है। पास्कल के अनुसार समस्त जीवधारी कम्पायमान समष्टिगत ऊर्जा के एक विशाल समुद्र में निवास करते है, फिर विभिन्न ग्रहों से उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा तरंगों से अप्रभावित कैसे रह सकते है। भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में यह तथ्य सप्रमाण पुष्ट होता चला जा रहा है। पृथ्वी पर विद्यमान जीवन का अन्तरिक्ष के ग्रह-नक्षत्रों से अति घनिष्ठ सम्बन्ध है और अविज्ञात होते हुए भी सूक्ष्म आदान-प्रदान का क्रम चलता रहता है।
प्रौढ़ता को प्राप्त करता हुआ विज्ञान अब उन्हीं निष्कर्षों पर पहुँच रहा है, जिन पर सदियों पूर्व भारतीय तत्त्ववेत्ता ज्योतिर्विद् पहुँच चुके थे। समूचा ब्रह्माण्ड एक चैतन्य शरीर है, जिसका प्रत्येक स्पन्दन हर घटक को प्रभावित करता है, जिसमें पृथ्वी और सम्बन्धित वातावरण, वनस्पति एवं जीवधारी भी सम्मिलित है। प्राचीनकाल में ज्योतिष विज्ञान इसी दिशा में अनुसंधान करने प्रमाण जुटाने और अन्तर्ग्रही तथ्यों की खोजबीन करने में सचेष्ट था, जिसकी अनेकानेक उपलब्धियों से समय-समय पर मानवजाति लाभान्वित होती रहती थी। विज्ञान का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और अन्तर्ग्रही टोह लेने का सिलसिला आरम्भ हुआ है, यह शुभ चिन्ह है। फिर भी ज्योतिर्विज्ञान के बिना अन्तरिक्षीय खोज -बीन करने में विज्ञान उतना सक्षम नहीं है। इस दिशा में प्राचीन भारतीय ज्ञान सहायक सिद्ध हो सकता है। इस विषय पर भारतीय प्राचीन ज्योतिर्विदों ने गहन अनुसंधान किए एवं निष्कर्ष निकाले है। आर्य भट्ट का ज्योतिष सिद्धान्त, कालक्रियापाद, गोलपाद, सूर्य सिद्धान्त और उस पर नारदेव, ब्रह्मगुप्त के संशोधन, परिवर्धन, भास्कर स्वामी का महाभास्करीय आदि दुर्लभ और अमूल्य ग्रन्थ अनेकानेक रहस्यों एवं निष्कर्षों से भरे पड़े है। ज्योतिष सिद्धान्त पुस्तक के प्रथम पाद में ज्योतिष सिद्धान्त पुस्तक के प्रथम पाद में अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित के सिद्धान्त समझाए गये है। मात्र तीस श्लोकों में दशमलव वर्ग, क्षेत्रफल, घनमूल, त्रिभुजाकार शंकु का घनफल निकालने जैसे महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी सूत्र रूप आबद्ध है। कालक्रियापाद में खगोलशास्त्र का विशद वर्णन है। इसी तरह उसका अन्तिम पाद 50 श्लोकों का अध्याय ‘गोलपाद’ अपने में ज्योतिष विज्ञान के महत्वपूर्ण रहस्यों पर प्रकाश डालता है। अपने पंच सैद्धान्तिक में बाराहमिहिर ने पोलिश, रोमक, वशिष्ठ, सौर और पितामह नामक पाँच ज्योतिर्सिद्धान्तों का वर्णन किया है, जो ज्योतिर्विज्ञान पर विस्तृत प्रकाश डालते है। ज्योतिर्विज्ञान के शोधकर्ताओं के लिए अतीत के महान ज्योतिर्विदों द्वारा संग्रहित किया गया वह ज्ञान पथ प्रदर्शन कर सकता है।