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साप्ताहिक प्रतियोगिता

hindi articles, stories and books related to Saptahik pratiyogita


                   आज लंडन ओवल में पहला टी 20एकदिवसीय मुकाबला है, बस कुछ देर में चालू होगा, वैसे लडकियों से कहीं ज्यादा लडके क्रिकेट के शौकिन होत

       आज फिर से एक नई उम्मीद के साथ हफ्ते की शुरुवात हुँवी है, वैसे आय थिंक लाईफ इज ऑलवेज न्यू बिगिनिंग, तो सब तकलीफ देनेवाला कल में छोड आनेवाले सुनहरे कल का निर्माण आज में अपने ह

                              आज ऐतवार, आषाढी एकादशी, आपको एकादशी की ढेर सारी शुभकामनाए। एक महिने से सारे लोग इसी दिन का

                    आज शनिवार , कल ऐतवार, आषाढी एकादशी, सब दिंडीवाले अपनी जगह पहूँच गये यानि की पंढरपूर, दो साल से इसी दिन का भगवान और उनके भक्त

            आज तो सच में मैं तुझे भूल ही गई थी, बाहर बहुत बारीश थी, माहौल कुछ अलग ही बन गया था! तो तुझसे मिलना ही भूल गई, याद आया तो आ गई, बहुत देर हो गई है, सब काम खत्म

             सच कहूँ आसपास का माहौल बहुत ही प्यारा बना है, पंढरी को जाने वाले की भीड हर जगह दिखाई देती है, सब अपना तन मन भूलकर बस उसकी ओर भागे चले रहे है मानो की नदी

           "  लिख़ने को बैठी हूँ तो कुछ ख्बाब लिख रही हूँ,       सच्चाई से लेकिन बेखबर, कुछ झूठ लिख रही हूँ,        कुछ आसपास

                आज कल के हिसाब से जल्दी तुझसे मिलने आई हूँ,  क्यूंकी एक बार मैं तुझसे मिलना भूल गई, तो भूल ही जाती हूँ।बरसात नहीं हो रही है आज, चारों

                     आज सुबह से ही बारीश हो रही है, तो बाहर गिला गिला हो गया है, सुबग ही मंदिर भी जाना था, तो भिगते ही हमें मंदिर जाना पडा,

               आज ऐतवार, अच्छे से ये महिना की शुरुवात हूँवी है।बारीश भी ठीकठाक ही बरस रही है। इस माह आषाढी एकादशी भी होती है, तो वारी की रेलचेल है।  &

           आज शनिवार कल फिर से छुट्टी का दिन है, तो काम को भी थोडा आराम मिलता है, आज सुबह स्कुल होता है, जो करीब 12बजे तक छुट जाता है।          आ

                बहुत पुरानी बात है, करीबन मैं तब सात आठ साल की हूँवा करती थी, तब ज्यादातर हमारे नाना नानी का गाँव में  कोई आने जाने के लिए गाडी नहीं हूँवा

       आज जून मास का आखरी दिन, हमारे जून के डायरी ले़खन का भी आखिरी दिन, शुक्रिया करती हूँ मैं उनका जिन्होनें ना सिर्फ दिल से पढा पर कमेंट के साथ अपनी बात मुझतक पहूँचायी। जानकर खुश

विश्व के हर कण कण में समाया,साज़ बनकर प्रेम और संगीत,दोनों संग जूडी है अनजाने ही,मेरे मन की प्रीत संग मीत भी।संगीत कहाँ नहीं है बसता यहाँ,हर एक जगह है नामोनिशान,आसमाँ के बरसते बूँदों से लेकर,सागर में

साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता के सभी नियमों के अनुसार वीक 37 (20 जून 2022 से 26 जून 2022) के सबसे सक्रिय लेखक हैं आपको शब्द.इन टीम की ओर से बधाइयां 🎊 सम्बंधित पुरस्कार आपको 1 सप्ताह के भीतर मिल जाएं

वो भी क्या नायाब से दिन थे,जो पशुओं का मेला सजता था,बच्चों और पशुओं की आंगन में,शोर शराबों की गूंज हरदम रहती।खेत तो एकरों में थे अपने तब पास,पशुओं के घास की ना थी होती कमी,सब मिल जूडकर रह पाते थे घर म

परवाह वो मेरी बहुत किया करती है, बेटी है पर माँ की तरह वह डाँटती है, हल्का सा दर्द मेरा उसको बर्दाश नहीं, तकलीफ में मेरी फूलों की सेज बिछाती। बडी प्यारी बेटी मेरी गुरुर है वो मेरा, थोडी सी बेफिक्र और

बचपन से देखा मैंने ख्बाब की आयेगासफेद घोडे पर होकर राजकुमार सवार,पर ऐसा क्यूँ ना हूँवा की बडे होकर भी,ना भूला पाई मैं दिल से वहीं एक खुमार।परिदों को आसमाँ में उडाता स्वच्छंद होकर,सोचती थी काश!मैं भी ह

आते जाते अपने आप में, यूँ बिखरे पडे हुँवे हम की, संभालनेवाले ही बिखर गये, और हम भी ना संभल गये। अनुभव से होते हुँवे हम तक, निकल के आये थे सभी रास्ते, कश्मकश में थे फिर भी लेकिन, कौनसे सही में थे अपने

बचपन से पसंद थी, मुझे घूंगरु की रुणझूण,पर मेरे पापा को ना भाँता, मेरा घूंगरु पहनना,याद है मुझे एक वाकया, रुठ बैठे हम पापा से,वहीं जिद थी थानी जो पापा को ना गवारा थी।पापा मेरे जैसे ही जिद्दी कहाँ आसानी

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