आते जाते अपने आप में,
यूँ बिखरे पडे हुँवे हम की,
संभालनेवाले ही बिखर गये,
और हम भी ना संभल गये।
अनुभव से होते हुँवे हम तक,
निकल के आये थे सभी रास्ते,
कश्मकश में थे फिर भी लेकिन,
कौनसे सही में थे अपने वास्ते।
दिल की सुने तो रिश्ते ही टूटते,
रिश्तों की सुनो दिल खामोश होता,
क्या करे, क्या ना करे ये उलझन,
दोनों ही ओर है मोहब्बत का दर्पण।
अनुभव का होता नहीं है क्या मोल,
हर दिन बस हम सुनते ये ही बोल,
तो तय कर लिया हमने बडों की सुनेगें,
कुछ अपने ख्बाब को नजरअंदाज करेगें।
हमने तो काँट ली बस ऐसे ही जिंदगी,
बडों के छाँव में गूजरी हर हाल में जिंदगी,
रक्स सिर्फ रहा इस बात का की हमें,
हमारे अनुभव का नहीं रहा मोल ही कोई।
पर अब जो बने है हम माँ बाप बच्चों के,
ठान लिया है सिखने देगें उन्हें अपने आप,
गिरेंगे, उठेगें, हारेगें ,जितेंगे,निराश भी होगें,
पर अपने अनुभव से सारे मुश्किल पार करेंगे।
जब निखर के आयेंगे हर हालात से होकर,
तो अनुभव का भी अपने मोल करना सिखेंगे,
दुसरों को सलाह देने के बजाय वो खुद ही,
अपने आप के एक कायम सलाहगार बनेंगे।