परवाह वो मेरी बहुत किया करती है,
बेटी है पर माँ की तरह वह डाँटती है,
हल्का सा दर्द मेरा उसको बर्दाश नहीं,
तकलीफ में मेरी फूलों की सेज बिछाती।
बडी प्यारी बेटी मेरी गुरुर है वो मेरा,
थोडी सी बेफिक्र और थोडी अल्लड है,
पर जब भी कभी बिखर जाऊ मैं हारके,
वो संभाल लेती है ऐसे हो दादी माँ जैसे ।
मासूम बस पहुँची है जवानी की दहलीज पर,
क्या है लेकिन उसे बदलती दुनिया की खबर,
जब भी बाहर के हालात देख दिल है दहलता,
कहे काँटों में रहके मुझे फूलों सा पनपना आता।
परवाह मुझे उसकी दिन रात जो हर वक्त होती,
पर जूबान से खामोशी से मैं वो आकर कैद होती,
चाहती मैं दुनिया के हालात से वो रुबरु खुद हो,
सही गलत सब का फैसला वो खुद अपने आप ले।
जानती हूँ वो दुर्गा, वक्त आने पर काली भी है लेकिन,
और कुछ जो हुँवा गलत तो परवाह के लिए मैं तो हूँ,
दिया है मैनें उसे खुला आसमान और अपनी ही जमीं,
चाहे जितना चाहो उड़ना , मैं भी तो साथ चल दिये हूँ।