शतरंज की बिसात सी बनी है ज़िन्दगी,
खुली हुई क़िताब के मानिंद कर निकल।
भूल जा हर तलब, हर इक नशा औ जख्म,
अब तो बस एक रब का तलबगार बन निकल।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”
1 सितम्बर 2023
शतरंज की बिसात सी बनी है ज़िन्दगी,
खुली हुई क़िताब के मानिंद कर निकल।
भूल जा हर तलब, हर इक नशा औ जख्म,
अब तो बस एक रब का तलबगार बन निकल।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”
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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" रोटी के जुगाड़ से बचे हुए समय का शिक्षार्थी मौलिकता मेरा मूलमंत्र, मन में जो घटता है उसमें से थोड़ा बहुत कलमबद्ध कर लेता हूँ । सिर्फ स्वरचित सामग्री ही पोस्ट करता हूँ । शिक्षा : परास्नातक (भौतिक शास्त्र), बी.एड., एल.एल.बी. काव्य संग्रह: इंद्रधनुषी, तीन (साझा-संग्रह) नाटक: मधुशाला की ओपनिंग सम्पादन: आह्वान (विभागीय पत्रिका) सम्प्रति: भारत सरकार में निरीक्षक पद पर कार्यरत स्थान: कानपुर, मेरठ, रामपुर, मुरादाबाद, नोएडा, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)D