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शायरी

3 अप्रैल 2016

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जैसे ही भाने लगी , हमे इश्क़ की जेल !

मुंसिफ़ बनकर आपने , दे दी हमको बेल !

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रचनाएँ
ajoybahadursbi
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शायरी

3 अप्रैल 2016
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जैसे ही भाने लगी , हमे इश्क़ की जेल !मुंसिफ़ बनकर आपने , दे दी हमको बेल !

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शायरी

3 अप्रैल 2016
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बहुत लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ मैं,किसी से कुछ कहने की कोशिश में

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शायरी

3 अप्रैल 2016
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तू वो ज़ालिम है जो दिल मे रहकर भी मेरा बन ना सका और दिल वो काफ़िर है जो मुझमे रहकर भी तेरा हो गया

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शायरी

3 अप्रैल 2016
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हर रोज़ के मिलने में तकल्लुफ़ कैसा, चाँद सौ बार भी निकले तो नया लगता है!

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शायरी

14 अप्रैल 2016
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कोशिश करो ,हल निकलेगा आज नही तो,कल निकलेगा !अर्जुन के तीर सा निशाना साधो,जमीन से भी जल निकलेगा !मेहनत करो ,पौधों को पानी दो,बंजर जमीन से भी फल निकलेगा !ताकत जुटाऔ,हिम्मत को आग दो,फौलाद का भी बल निकलेगा !जिंदा रखो दिल मे उम्मीदों को,समंदर से भी गंगाजल निकलेगा !कोशिशें जारी रखो कुछ कर गुजरने की ,जो है

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शायरी

14 अप्रैल 2016
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निकलोगे तो हर मोड़ पर मिल जायेंगी लाशेंढूंढोगे तो इस मुल्क में क़ातिल न मिलेगा !!!

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नजरें

14 अप्रैल 2016
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नजरें झुका के जब भी वो गुजरे है करीब सेहमने समझ लिया कि "आदाब-अर्ज" हो गया।

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दिल

14 अप्रैल 2016
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अच्छा किया जो तोड़ दिया दिल तूने मेरा इसको भी बहुत गरुड़ था तुम्हारे प्यार पे !!!

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