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शिक्षा

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देख कर पराई स्त्री को, आते बुरे विचार।इसे कहते हैं काम का विकार।छोटी-बड़ी बातों पर, आता गुस्सा अपार।इसे कहते हैं क्रोध का विकार।जरूरत पर भी नहीं खर्चते, चाहे वो बेशुमार।इसे कहते हैं लोभ का विकार।गलत क

सर्दियों में छत पर जाकर,धूप सेका करते थे।और धूप भी रहती नदारद,एक झलक को तरसा करते थे।गर्मियों में धूप का,छाया रहता प्रकोप है।लगता जैसे सूरज को,आता कोप है।और बारिश में मौसम का,मिलाजुला रूप है।कभी मूसला

माँ मुझे इतना पढ़ा दो,मैं अफसर बन जाऊँ।नहीं रहूँ आश्रित किसी पर,खुद अपनी किस्मत बनाऊँ।ये घर तेरा, वह घर तेरा,अब और नहीं सुन पाऊँ।सजा के अपने सपनों को,अपना घर बनाऊँ।  इसकी सुनो, उसकी सुनो,&nb

आज के थपे कंडे,आज ही नहीं जलते हैं। आज के किए कर्मों के फल,आज ही नहीं मिलते हैं।  सूखने के बाद,कंडो को जलाया जाता है।कर्म करने के बाद,उनका फल जरूर मिलता है।कुछ कंडो को जलाकर, 

कितना पानी बरसता है बरसात में, गर्मियों में कहाँ चला जाता है। बारिश के मौसम में पानी ही पानी, और गर्मियों में तरसाता है। बारिश में नदी नाले उफ़न आते हैं, और घरों में पानी भर जाता है। चारों तरफ दिखता

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