# इश्क़ में एक और मौत
मैने मेकअप रूम के दरवाजे को नॉक किया था, कि तभी अंदर से लीना मेम की आवाज़ आई....
कौन हैं....?
मेम मैं सुमित.... आपको सीन समझाने आया हूं मेम.... !
ओह सुमित अंदर आ जाओ डोर खुला हैं...
जी मेम.... इतना कहते ही मै दरवाजे को धकेलता हुआ अंदर दाखिल हो गया था... रूम तक पहुंचने के लिए एक 5×3 की गैलरी थी जिसके आगे चल कर 10×10 का रूम था.. मैं तेज़ क़दमों से जैसे ही अंदर पहुंचा तो ड्रेसिंग टेबल के आईने के सामने चेयर पर लीना मेम अपने चेहरे पर फाउंडेशन ब्रश के सहारे मेकअप कर रही थी.... उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था ड्रेसिंग आईने के चारो तरफ लगी दूधिया लाइटों की रौशनी में उनका पूरा उघड़ा हुआ दमकता हुआ शरीर किसी महिला का मैं पहली बार देख रहा था.... जो सामने आईने में साफ दिखाई दें रहा था... उन्हें इस हालत मे देख मैं दंग रह गया और बाहर जाने को फ़ौरन पलटा ही था.... कि मेम ने मुझें रोका
रुको सुमित ..... !
उनके आदेश भरे शब्दो को सुन कर मेरे कदम वही ठिठक गए थे.... उन्होंने मुझसे पूछा
क्या हुआ...?
जी कुछ नहीं मैं बाद में आता हूं.
नहीं इधर आओ.... उन्होंने कड़े लहज़े में मुझें आदेश दें कर बुलाया था... वो इस फ़िल्म की हीरोइन के साथ -साथ प्रोडूसर भी थी.... जिनका आदेश मैं टाल नहीं सकता था.... मैं जब तक उनके पास पहुंचा तब तक वो उसी अवस्था में खड़ी हो चुकी थी... मैं नज़रे झुकाये उनके सामने शर्म से भरा थोड़ा दूर को खड़ा था....
इधर पास में आओ मेरे
जी.. जी मैं यहीं ठीक हूं मेम अ आप कहिये मैं सुन रहा हूं
वहां नहीं यहां मेरे करीब आओ
मैं घबराता हुआ हिम्मत करके उनके करीब जा कर खड़ा हो गया
मेम ने पलटते हुए अपने दोनों हांथ मेरे कंधो पर रखते हुए कहां ...
तुम यहां डाइरेक्टर बनने आये हो ना ...?
जी...जी... मेम.
हूं तों ऐसे कैसे डाइरेक्टर बनोंगे...?
मैं चुप रहा....
मेम गहरी सांस भरते हुए बोली...
सुमित तुम स्मार्ट और हेंडसम भी हो तुम चाहो तो इस पर्शनाल्टी का इस्तेमाल करके बड़ा डाइरेक्टर बन सकते हो...?
और उनके दोनों हाथ मेरे चेहरे पर हौले हौल घूमने लगे थे और वो मेरे और भी करीब आ चुकी थी
मैं अपनी सांस रोके चुपचाप खड़ा रहा
क्योंकि मेरी पर्शनाल्टी ही ऐसी ही थी... लेकिन मैं इसे अपने सपनों मंज़िल की सीढ़ी नहीं बनाना चाहता था.... अपने टेलेंट के बलबूते पर ही अपनी मंज़िल तक पहुंचना चाहता था. मेम मेरी कमजोरी का फायदा उठाना चाह रही थी और मेम मेरे सपनों को सवारने का मुझें ऑफर दें रहीं थी..
कहां खो गए मिस्टर हेन्सम...?
क..... कही नहीं मेम.... क.... क... कोई देख लेगा..?
मेरी मर्जी के बगैर यहां कोई नहीं आएगा.. पहले मेरे सवाल का जवाब दो...?
मैंने हिम्मत करके अपनी नज़रे उनकी तरफ उठा कर देखा उनके चेहरे पर एक अजीब सा भोलापन था... उनकी आँखों में अधूरी औरत की झलक साफ दिखाई दें रहीं थी...और उनकी संसो की गरमाहट मुझें महसूस हो रही थी. मैं उस वक़्त बिलकुल निरुत्तर था.
अच्छा चलो आज हम एक डीड करते हैं...
मैं जान रहा था कि वो मुझ सें क्या चाह रहीं हैं.... उनकी गर्म सांसे मेरी दृढ़ता को कमज़ोर कर रहीं थी मैं जब भी पीछे को होने की कोशिश करता तो वो और मेरे नजदीक आ जाती थी...
क.... क....कैसी डीड मेम.....?
अब इतने भी नासमझ मत बनो.... सुमित.... तुम मुझें वो सब देदो जिसकी चाह में मैं तड़प रहीं हूं.....
लेकिन आप तो शादी शुदा हैं मेम....?
मैंने बड़ी हिम्मत करके उनसे पूछा था
यही तो रोना हैं सुमित... मेरी शादी अब तक नहीं हुई हैं जो भी रिश्ता रहा हैं लीव इन रिलेशन का रहा हैं.... यहां का हर आदमी औरत के खूबसूरत बदन सें खेलता हैं.. मेरी शायद किस्मत अच्छी थी के मैं इस मुकाम तक आ पहुंची लेकन अब बहुत हो चूका अब मैं घर बसाना कर सुकून सें ज़िन्दगी बिताना चाहती हूं..
तों क्या ये सब आप मुझमें तलाश कर रही हो क्या मेम..?
उन्होंने अपने दोनों हाथो सें मेरी गर्दन को जकड़ते हुए मेरी आंखो में आंखे ड़ालते हुए कहा
हां... इसमें क्या बुराई हैं बोलो ..?
मैंने अपने दोनों हाथों सें उनके हाथों सें अपनी गर्दन को छुडाते हुए कहा
मेम ये कैसे हो सकता हैं आप कहां और मैं कहां.. आप इतनी बड़ी एक्टर हैं आप सें तों कोई भी बड़ा आदमी शादी कर लेगा..?
इतना सुन कर वो मुझसे दूर होकर साइड में लगे सोफे पर अपनी टांग पर टांग रख कर बैठ गयी
यही तो रोना हैं सुमित इस दुनियां में हर आदमी मुझें इस्तेमाल ही तों करता आया हैं अगर कोई मुझें दिल सें चाहता तों आज मेरा भी घर परिवार होता कोई ना कोई तों मेरा पति होता और मैं उसकी बीबी होती .... मैं जब पंजाब सें एक्टर बनने की चाह लेकर मुंबई आई थी तब बहुत स्ट्रैगल किया हजारों बार ऑडीसन दिया लेकिन किसी ने काम नहीं दिया जहां भी जाती सब एक ही बात कहते क्या आप काम्प्रोमाइस करेंगी...?
इस काम्प्रोमाइस के चक्कर में मुझें वो मुकाम नहीं मिला था जिसका सपना लेकर मैं स्ट्रागल कर रही थी.. वही उम्र भी अपनी रफ्तार सें दौड़ रही थी.. लेकिन ना मैं रुक रही थी और ना ही मेरी उम्र.. लेकिन ज़ुनून के चलते इस शहर में पांच साल कैसे निकल गए पता ही नहीं चला... घर वाले हमेशा यही कहते शादी की उम्र निकली जा रही हैं.. यही कहते कहते वो लोग भी मुझसे रूठ गए.. तब एक दिन जब विनय कुमार जी के अपोजिट हीरोइन के लिए शशर्त फोन आया... अगर आप ये फ़िल्म करना चाहती हैं तों पांच दिन के टूर पर विनय जी के साथ जाना होगा..
फिर.... मैंने उत्सुकता वश उनसे पूछा
फिर क्या तब मेरी मज़बूरी थी....
नहीं मेम ये आपकी मजबूरी नहीं थी आपकी हार थी आप हार चुकी थी आपने अपने इस जिश्म के बदले एक मुकाम को चुना था...जिसके बल पर आज आप इतनी बड़ी स्टार हैं..
वही तो मैं तुम्हे समझाना चाहती हूं.. जब तुम मेरी कम्पनी में आए थे तभी सें मैं तुम्हे चाहने लगी थी और देखो आज इन तीन सालों में एसोसिएट डाइरेक्टर बन चुके हो तुम सें पुराने कितने लोग और भी यहां हैं जो वही के वही हैं तुम भी तो एक अच्छे डाइरेक्टर बनना चाहते हो ना ...?
हां मेम चाहता तो था लेकिन अब नहीं...
क्यों...? मेम ने आश्चर्य से मुझें देखते हुए बोला..
जब आप जैसी मिशाल मेरे सामने खड़ी हो तो कैसे अपने उसूलो को तोड़ कर ऐसे मुकाम का रास्ता चुनू.... आप क्या चाहती हैं मै भी आपकी तरह अपनी जिंदगी बर्बाद कर के अपने घर वालों की हजारों तमन्नाओ पर पानी फेर दूं....? मेम ये आप कर सकती हैं पर मैं नहीं.
यहां की यही रीत हैं सुमित....
जिस मुकाम के लिए ऐसी रीत का सहारा लेना पड़े मैं ऐसी दुनियां से दूर ही चला जाऊंगा.....
इतना सुन कर मेम का चेहरा तमतमाने सा लगा था क्योंकि मैं अब उनके किसी भी झांसे मे फसता उन्हें दिखाई नहीं दें रहा था...वो मुझसे खीझते हुए बोली
अगर में चाहू तो तुम्हारी पूरी जिंदगी तबाह कर सकती हूं....
और आप कर ही क्या सकती हैं मेम .... आपको पता हैं आपके लाखों करोडो फेन आपको पूजते हैं आपके सपने देखते हैं लेकिन जब आपकी ये असलियत पता चलेगी तब, तब क्या करेंगी आप अपना ये चेहरा और ये थका थका सा जिस्म कहां छुपाओगी आप...? आपके लिए बेहतर यही होगा अपना ये केरैक्टर इस चार दीवारी में ही बंद रहने दो... वरना एकदिन आपके सामने आत्म हत्या के सिबाय कोई और रास्ता नहीं होगा...
मैंने इतना कह कर उनका खुले जिस्म को बेड पर पड़ी चादर ढ़कते हुए कहां..
मैं यही बैठा हूं मेम आप चाहो तो मेरी जिंदगी तबाह करने के लिए मुझ पर जितना नीच इल्जाम लगाना चाहो लगा सकती हो....
मेकअप रूम में कुछ देर के लिए सन्नाटा सा छा गया था.... वही मेम की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी थी.... मुझसे उनका इस तरह सिसकना देखा नहीं गया... हालांकि कई लोग मंज़िल के जूनून में दलदल का रास्ता चुन लेते हैं और उस दलदल सें निकल पाना इतना आसान नहीं होता.. और मेम भी उस दलदल दबी होने के वबजूद भी मुझें मंज़िल का रास्ता दिखा रही थी.. मैंने उनके आसुओं को चादर पोछा और वहा से बाहर की और जानें को हुआ ही था की मेम ने फिर रुंधे हुए स्वर में पूछा...
कहां जा रहें हो सुमित.....?
बापस अपने शहर....
मैने जाते जाते रुक कर और उनकी तरफ पलट कर देखते हुए कहा था....उस वक़्त उनका चेहरा एकदम मासूम सा था जो शायद मेरे उसूलों और संस्कारों पर भारी सा पड़ रहा था.... लेकिन मुझें अपने उसूलों की खातिर ही नहीं अपने परिवार के खातिर किसी एक की मौत तो करनी ही थी जो मैने खुद अपने मंज़िलों के सपनों की हत्त्या कर.... हमेश हमेशा के लिए निकल पड़ा था..... जो शायद मेरा फ़िल्मी कॅरियर मेरी सिर्फ एक हां के चंद कदमों की दूरी पर ही था..... जो मुझें यकीनन बिलकुल भी गवारा ना था......
दो साल बाद
मैं अपनी शॉप पर व्यस्त था क्योंकि पढ़ाई के बाद मैने अपने नौकरी के अवसर मुंबई की चकाचौध में गवा दिए थे..... मुंबई से लौटने के बाद में मैं डिप्रेसन हावी होने लगा था और मैं अपनी ये जिंदगी खोना नहीं चाहता था.... इसीलिए उस दौर को एक सपना समझ कर भूलने में काफ़ी जद्दोजहद कर चुका था..... और अपने सही काम धंधे में लग चुका था..... एक दिन शाम का समय था ग्राहाकी का समय था तभी मेरे भांजे (बहन का बेटा) के साथ एक स्मार्ट सी महिला जो जींस और टी शर्ट में थी उसने अपने सिर और चेहरे को स्कार्फ से ढक रखा था और आँखों पर बड़ा काला चस्मा लगा रखा था उसके आते ही मेरी दूकान के माहौल एक भीनी भीनी महक में महकने सा लगा था....मेरी नजर उस और को पड़ी तों सोनू के साथ वो महिला ख़डी थी उस महिला ने मुझें मेरे नाम सें पुकारा...
सुमित....
इतना सुनकर मैंने उस महिला को गौर से देखा और उन्हे पहचानने की कोशिश करही रहा था कि वो फिर बोल उठी...
मुझें आप से अकेले में बात करनी हैं सुमित...
इतना सुन आस पास खड़े ग्राहक उसकी शक्ल देखने लगे थे.... मैं उन्हें पहचान गया था...
ओ हा मेम आप....! मैं एकदम सें मेम को यहां देख घबरा सा गया था ये यहां कैसे...
अब फिर आप सोचने लगे..?
आ... आप....आप अपनी गाड़ी में ही रुकिए म...मैं अभी आता हूं... स... सोनू बेटा आप यहीं रुको
मेरी बात सुनकर वो सड़क के उस पर ख़डी गाडी में जा कर बैठ गयी..... मेरा मन अंदर से घवराने सा लगा था मैने ग्राहकों को मौजूद कर्मचारी के हवाले कर उनके पास जाते जाते भगवान को मन ही मन सिमरने लगा था....मैं जैसे ही गाडी के नजदीक पहुंचा तों कार का पीछे का दरवाजा खुल चूका था जो मेम ने मेरे लिए खोला था...
अंदर आ जाओ...
मैं जैसे ही कार के अंदर बैठा तो मेम ने ड्राइवर को बहार जाने को कहां तो ड्राइवर फ़ौरन बहार निकल कर गाड़ी के बोनट की तरफ जा कर खड़ा हो गया
हम दोनों कार की पिछली सीट पर बैठे थे उनके चेहरे मे अभी भी वही कसक और मायूसी थी उन्होंने मेरे दोनों हांथ अपने हांथो मे लेते हुए कहा....
सुमित...कैसे हो तुम...?
मैं ठीक हूं.. और आप..?
इन दिनों तुम्हे कभी भी मेरी याद नहीं आई..?
य... याद आई आई..!
फिर तुमने फोन भी नहीं किया कभी क्यों ..?
वो... म मैंने सोचा आप विज़ी होंगी इसलिए फोन नहीं किया मैंने.
झूठ...एकदम झूठ.. सच तों ये हैं कि तुम मुझें वहीं मुंबई में ही भूल आए थे लेकिन मैं अब भी तुम्हे नहीं भूली जानते हो क्यों..?
मैं चुप था मुझें समझ नहीं आ रहा था कि मैं उनके इस सवाल का क्या जवाब दूं..
आखिर क्या हो गया हैं सुमित...? तुम्हे पता हैं मैं कितनी मुश्किल से तुम्हे ढूंढते हुए तुम्हारे पास आई हूं...खैर इतना घबरा क्यों रहे हो तुम..?
मैंने अपने माथे का पसीना पोछते हुए कहा
न... नहीं म... मैं कहां घबरा रहा हूं ..गाड़ी में गर्मी बहुत हो रही हैं.
कहां सुमित गाड़ी का एसी ऑन हैं.. इतना मत घबराओ मैं तों बस तुम्हारा थेंक्स करने आई हूं.
किस बात के लिए..?
उन्होंने अपने पर्स सें एक एनवलप निकाल कर मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा
सुमित मैंने फ़िल्म इंडस्ट्री हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दी हैं.
क्यों..?
तुम्हारे कारण.. भले तुम मेरे नहीं हुए पर सच कहूँ मुझें सच्चा प्यार सिर्फ और सिर्फ तुम्ही सें हुआ हैं बहुत भूलने की कोशिश की लेकिन मैं तुम्हे भूल नहीं पाई तुम्हारी बातों ने सुमित मुझें अपने आपको बदलने पर मजबूर कर दिया और फिर मैंने सब कुछ बाइंडअप करके हरिद्वार के महंत श्री राधे नंदन महराज जी के आश्रम में रहने का फैसला बची सारी ज़िन्दगी के लिए कर लिया हैं...
मैं चुपचाप बैठा बैठा सिर्फ उनकी बातें सुन रहा था और सोच रहा था मेम में इतना बड़ा परिवर्तन कैसे संभव हो सकता हैं कही ये उनकी नई चाल तों नहीं
सुमित मैं ने अपनी इस ज़िन्दगी में बहुत सें मर्द देखे पर तुम सा मुझें आज तक कोई नहीं मिला शायद यहीं मेरी किस्मत में था.. देखो सुमित तुम मुझें गलत मत समझना मैं चाहती हूं कि तुम सिर्फ एक फ़िल्म जरूर बनाओ तुम एक बार अपने सपने की मंजिल के लिए ही नहीं लेकिन अपने सपने के लिए एक फ़िल्म जरूर बनाओ ये रहा ब्लेंक चेक जितना भी बजट लगे फ़िल्म बनाने में लेलेना...
और वो मेरी तरफ एक प्रशंवाचक की दृष्टि सें देखने लगी मैंने बगैर समय गवाए उनके प्रश्न का उत्तर दिया था
मेम वो सुमित जिससे आप मुंबई में मिली थी वो तों वहीं मर के दफान हो चूका था.. मैं एक छोटे सें शहर का अब साधारण सा सुमित हूं उस सुमित की तों वहीं मौत हो चुकी थी.. उस सुमित का फिर सें जन्म लेना अब ना मुमकिन हैं.. शायद आपको पता नहीं मेरी अब शादी भी हो चुकी हैं मेरी वाइफ इस वक़्त प्रेग्नेंट हैं..
पता हैं मुझें मैं कल्पना सें मिल कर आ रही हूं इतना ही नहीं मैं तुम्हारे पूरे परिवार के हर एक सदस्य सें मिल कर आ रही हूं..मैं आज तुमसे सिर्फ आज एक वादा लेने आई हूं..
कैसा वादा...?
या तों तुम एक फ़िल्म बनाओ..
इतना कह कर मेम चुप हो गयी थी.. मेरी वेचैनी बढ़ने लगी थी मैं समझ रहा था कि वो मुझसे प्यार करने लगी हैं ऐसा नहीं हैं कि मुझें भी उनसे प्यार ना हुआ हो लेकिन पर्दे के पीछे की ज़िन्दगी को जान कर मैं कितना टुटा था वो मुझसे वेहतर और कोई नहीं जान सकता...
और दूसरा वादा..?
मेम ने धीरे सें अपना सीधा हांथ मेरी तरफ किया जिसकी मुट्ठी बंधी हुई थी.
ये क्या हैं..?
लो तुम खुद ही मेरी मुट्ठी खोल कर देखलो सुमित..
मेम ने जब ऐसा कहा तों मुझें अंदर सें उत्सुकता तों हो रही थी कि उनकी इस मुट्ठी में दूसरे वादे के तौर पर क्या हैं... नहीं नहीं मुझें कही ये फिर ना फसाने की कोशिश करे.
अ... आप ही बताइये न मेम...?
क्यों क्या तुम मेरी मेरी मुट्ठी नहीं खोल सकते हो क्या..?
मैं चुप रहा मन में असमंजस सी होने लगी थी.. के क्या करूं..... हैं भगवान अब आप ही कुछ सुझाओ...
सुमित... फिर तुम सोचने लगे.. इसमें भगवान कुछ नहीं कर सकते हैं ये भी उन्ही की मर्जी हैं..
ओके... पर एक शर्त.. हैं मेरी..
नो.... अब तुम्हारी कोई शर्त नहीं चलेगी.. अगर तुम शर्त पर मेरी मुट्ठी खोलोगे तों रहने दो.. मैं चलती हूं... लेकिन तुम याद रखना एक दिन तुम्हे मेरे पास ज़रूर आना ही पड़ेगा गुडबाय...
इसबार मेम की आवाज़ में एक रुखापन था और मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं..
मैंने तुम सें कहां ना गुडबाय... आप जा सकते हैं सुमित
और उन्होंने मेरी तरफ का कार का दरवाज़ा खोल दिया. मेरी दुकान पर खडे लोग और सोनू हमारी ही तरफ देख रहें थे मुझें झिझक सी महसूस हुई तों मुझें कार सें उतरना ही पड़ा.. मेरे उतरते ही मेम ने गुस्से में कार का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा..
अपना ख्याल रखना... और हां मैं फिर दोहरा रही हूं.... तुम्हे एक दिन ज़रूर मेरे पास आना ही होगा..
मैं गाड़ी सें उतर कार चुपचाप ही खड़ा रहा और मेरे देखते ही देखते मेम की गाड़ी मेरी आँखों सें ओझल हो गयी थी.
आखिर मेम की मुट्ठी में दूसरा वादा क्या था.. क्या वो मुझें अपनी कोई निशानी देना चाह रही थी...?
क्या वो सही में हमेशा के लिए फ़िल्म इंडस्ट्री छोड़ कर हरिद्वार जा रही हैं या फिर वो मुझें परखने आई थी... मुझें उनकी बात मान कर उनकी मुट्ठी को खोल कर एक वार देख ही लेना चाहिए था..
यहीं सब सोचते हुए मैं काफ़ी देर तक बुत बना वहीं खड़ा रहा था... तब सोनू ने आकर मुझसे कहा था
मामा अब कब तक यहीं खडे रहोगे दूकान बढ़ाने का समय हो गया हैं.. तब मैंने अपनी हाथ घड़ी पर नजर डाली तो सही में रात के 10 बज चुके थे...
दस साल बाद
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समय अपनी गति सें दौड़ता जा रहा था लेकिन समय के साथ मेरे मन में मेम की बात बार बार कौध रही थी के एक दिन तुम्हे मेरे पास एक बार ज़रूर आना ही होगा इस बात को सोचते सोचते आज पूरे दस साल गुज़र चुके थे इन दस सालों में दुनियां तों बदली ही थी साथ ही मेरा शहर भी काफी तरक्की कर चूका था इन दस सालों में इतने बड़े घर में मैं कल्पना और अन्नू यानि मेरी बेटी भर रह गए थे. मैं लॉन में बैठा अपनी दूकान में सामान की लिस्ट चेक कर रहा था तभी घर के बहार रोड पर एक कार आ कर रुकी मैंने अपनी पास की नज़रों का चस्मा हटा कर देखा तों कार सें तीन लोग उतर कर मेरे बाउंड्री वाल के मेन गेट पर आकर खडे हुए और पूछने लगे..
भाई सहाब जी हरे कृष्णा... क्या सुमित परिहार जी यहीं रहते हैं...?
जी... मैं झट सें अपना सामान समेटते हुए खड़ा हुआ... अ... आप कौन..? आप अंदर आइए ना.. वे तीनो व्यक्ति सफेद कलर की शर्ट नुमा कुरता और धोती पहने हुए थे तीनों के सिर मुंडे हुए थे बस सिर पर शिखा दिखाई दें रही थी.. माथे पर सफ़ेद चन्दन का तिलक तीनों लगाए हुए थे.. मैंने जल्दी सें उनकी अगुवाई की और उनसे पूछा
आप लोग कहां सें आए हैं..? मैंने आप लोगों को पहचाना नहीं पाया महराज जी
कृष्णा कृष्णा.. सुमित जी इससे पहले हम और आप कभी मिले ही नहीं तो पहचानोंगे कैसे..?
जी जी आप लोग बैठियेना...!
तीनों लोग एक तरफ रखे सोफे पर बैठ जाते हैं और मैं उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ जाता हूं
हम लोग हरिद्वार सें आए हैं अब शायद आप पहचान गए होंगे.
तभी कल्पना ट्रे में चार गिलास पानी रख कर लेकर आती हैं
जी स्वामी जी ये अपने काम में कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहते हैं इसीलिए इन्हे किसी बात को समझने में थोड़ा समय लगता हैं स्वामी जी....लीजिये जल ग्रहण कीजिए स्वामी जी
ओह हरिद्वार... याद आया मेम ने कहा था के वो वहां जा रही हैं.. मैं थोड़ा बुदबूदाया सा था
जी आपने कुछ कहा क्या..? कल्पना ने मेरी तरफ मुख़ातिब होते हुए पूछा
नहीं नहीं.. लाओ मुझें भी पानी दो..
और मैं एक ही बार में पूरा गिलास पानी पी गया था..
हां तों आप क्या कह रहें थे..?
मैं कब..?
यहीं की मेम भी हरिद्वार गयी हैं..
धत्त तेरी की कल्पना को कैसे पता चल गया..
मैंने मन ही मन में कहा था
मुझें सब पता हैं.... क्योंकि मैं आपकी पत्नी हूं और पत्नी को कुछ पता ना रहें ऐसा हो सकता हैं क्या.. क्यों स्वामी जी
कृष्णा कृष्णा... बिलकुल सही कहा बेटी.. सुमित जी आप अपने आपको इतना गलत क्यों समझ रहें हैं आप गलत नहीं हैं जब दीदी मां जी ने आपके बारे में बताया और आपकी धर्म पत्नी के बारे में बताया तों हम भी समझ गए के ये तों मीरा का कृष्ण सें प्रेम हैं इसमें कृष्ण का क्या दोष..
मैं अपना सिर झुकाए चुप बैठा था मैं कल्पना सें नज़रे नहीं मिला पा रहा था.. तभी कल्पना ने मेरे पास बैठते हुए कहा..
आज सें दस साल पहले जब आपकी मेम आई थी तब उन्होंने सब कुछ मुझें मां और बाबूजी को बता दिया था आपकी मेम ने ये भी कहा था कि सुमित कही भी गलत नहीं हैं वो मुझसे बिलकुल भी प्यार नहीं करते लेकिन पता नहीं क्यों मैं उनसे एकतरफा प्यार करने लगी हूं. उन्होंने यहीं कहा था इतना ही नहीं उन्होंने वचन दिया था के वो हमारी ज़िन्दगी में कभी भी रोड़ा नहीं बनेगी... और देखो ना इन दस सालों में उन्होंने कभी भी हमें किसी भी तरह सें परेशान किया.... नहीं ना ...?
हां वो तो तुम सही कह रही हो कल्पना लेकिन...
अब लेकिन वेकिन कुछ नहीं इस वक़्त उन्हें आपकी बहुत जरूरत हैं..उन्ही ने आपके पास हमें भेजा हैं
मतलब...?
कल्पना बेटी सही कह रही हैं भईया जी.. अब दीदी मां ज्यादा दिन की मेहमान नहीं हैं..
क्यों क्या हुआ उन्हें..?
कैंसर हैं उन्हें लास्ट इस्टेज पर हैं कल्पना बिटिया को सब पता हैं.
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि सें कल्पना को देखा
हां.. मेरी और उनकी बात कभी कभी फोन पर हो जाया करती थी
और तुमने मुझें कभी बताया भी नहीं..?
वो सब बातें हम बाद में कर लेंगे पहले हमें चलना होगा
हां सुमित भईया दीदी मां आप सें अंतिम वार मिलना चाहती हैं.
मुझें समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा हैं मेरे साथ क्या मेरा जाना ठीक रहेगा अगर लोगों को पता चल गया तो मैं किसी सें नज़रे मिलाने के काविल नहीं रहूंगा कल्पना भी कितनी भोली हैं कमसे कम उसे तो समझना चेहिए....लेकिन कही ना कही तो मैं भी तो उनसे प्यार करने ही लगा था..
अब क्या सोच रहें हैं आप...?
कल्पना ने मुझें सोई हुई चेतना सें जाग्रत करते हुए पूछा था.
क.. कुछ नहीं.. लेकिन कल्पना ये कैसे हो सकता हैं..?
मैं आपको बहुत अच्छे सें समझती हूं इसीलिए तो मुझें आप पर विश्वास हैं आप मेरी नज़रों में कही सें कही तक गलत नहीं हो लेकिन उनकी तपस्या के लिए आपको ऐसे समय में उनके पास होना चाहिए..
कल्पना देखो अकेले जाने की मेरी तो हिम्मत हैं नहीं.. तुम्हे भी साथ चलना पड़ेगा..?
मैंने तो पहले ही उनके पास जाने की तैयारी कर रखी हैं.... तो फिर अब चलें हम लोग
लेकिन सोनल...?
सोनल यहीं रहेगी सोनू और अनीता के पास
ठीक हैं... तो फिर अपन कल चलते हैं
नहीं नहीं सुमित भईया जी चलना तो आज, अभी और इसी समय ही पड़ेगा..
ओह....
देखिए आप इतना सोच क्यों रहें हैं.. मेम के पास इतना समय नहीं हैं कि वो अब आपका इंतज़ार कर सके..
बिलकुल सुमित भईया... बाए रोड चलना हैं अपने को 1600 किलोमीटर का सफर हैं अभी निकलेंगे तो परसों सुबह तक देहरादून पहुंच जाएंगे.. अब ज्यादा सोच विचार मत करिये चलिए
और वो लोग उठ खडे हुए थे... मैंने धीरे सें कल्पना सें कहां कुछ पैसे तो रख लेने दों मुझें.
वो भी सब मैंने रख लिए हैं
सुमित भईया आप बिलकुल निश्चिन्त हो कर चलें आपको कोई परेशानी नहीं होंगी.. बस अब आप चलिए
लेकिन वो सोनल को तो आ जाने दों कल्पना..?
उसको मैंने सब बता दिया था..
तभी सोनू आते हुए कहता हैं..
मामा आप वेफिक्र हो कर जाइएगा..
मैंने कल्पना की तरफ देखा.. तो कल्पना ने बेग उठाते हुए सोनू सें बेग गाड़ी में रखने को कहां मामी का आदेश सुनते ही सोनू बेग लेकर बाहर चला गया..
चलिए स्वामी जी...
और हम सब गाड़ी में बैठ कर देहरादून की ओर चल पड़े थे.
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उसके दोनों हाथ अपने दोनों हांथों में लेते हुए पूछा था
आपने कभी प्यार किया हैं..?
उसने शर्माते हुए अपनी निगाहें झुका ली थी
हां
ओह तो आप पहले सें ही किसी को चाहती हैं..?
हां
हाथ छोड़ते हुए
क्या मैं जान सकता हूं कौन हैं वो खुश नसीब..?
कमरे में कुछ देर चुप्पी सी सध जाती हैं
बेड सें खडे होते हुए..
अगर ये बात आप पहले ही उस दिन मुझें बता देती तो मेरे और आपके घर वालों को इतना खर्चा नहीं करना होता आपने मेरे साथ छल किया हैं..
इतना बोलते हुए... दरवाजे के पास को जाने लगता हैं.
वो हाथ पकड़ कर रोकती हैं
आप तो बुरा मान गए.. मैं तो मज़ाक कर रही थी..
मतलब...?
हां.. मैंने सिर्फ और सिर्फ तुम सें ही प्यार किया हैं..
अच्छा... लेकिन ये ऐसा मज़ाक़ करना तुमने कब सें सीख लिया...?
आप सें ही तो सीखा हैं मैंने.. याद करों जब हमारी इंगेजमेंट हुई थी उसके तीन चार दिन के बाद मैंने ही आपको फोन लगाया था तब मैंने आपसे पूछा था कि क्या आपको मेरी याद नहीं आती तो आपने..
ओह तो आपने उस मज़ाक का बदला आज मुझसे लिया..
तब वो उसे जम कर अपनी बाहों में उसे जकड़ लेता हैं..
तुम होही इतनी खूबसूरत के तुम पर तो हज़ारों मरते होंगे..
और वो उसे किस करने को होता हैं
छोड़िये ना प्लीज उओह्ह्ह.. प्लीज
नहीं अब तो नहीं छोडूंगा... नहीं छोडूंगा... नहीं छोडूंगा...
तभी एक दम सें गाडी के ब्रेक लगते हैं
क्या हुआ भईया जी
क्या हुआ आपको... किसे नहीं छोडेंगे...?
ओह...
और मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता हूं
लगता हैं सुमित भईया कोई सपना देख रहें थे..
ओह.. सॉरी..
बताओ ना क्या हुआ...? किसे नहीं छोडेंगे...?
क कुछ नहीं कल्पना बस सपना देख रहा था.. स्वामी जी और कितना वक़्त लगेगा..?
मैंने साइड खिड़की सें झाकते हुए देखा था तो सुबह की रौनक सें बहार का दृश्य बहुत ही सुन्दर लग रहा था..जिस हाइवे पर हमारी कार रुकी थी उसके दोनों तरफ आकाश को छूती पर्वत की श्रृंखलाये थी जी कही हरी हरी तो कही बर्फ सें ढकी ही थी जिस पर लाल लाल सूर्य की पहली किरणे पड़ रही थी.
बस समझो हम पहुंच ही गए मुश्किल सें आधा घंटा और लगेगा..भईया जी.
क्या हूं 5-10 मिनट रुक सकते हैं..?
अगर लघुशंका के लिए जाना हैं तो यहां खुले में जाना निषेध हैं भईया जी थोड़ी दूर पर ही शौचालय हैं..
नहीं नहीं स्वामी जी मुझें तो बस थोड़ा मुंह धोना था खैर रहने दीजिए..
आप बुरा ना माने दीदी मां के पास जल्दी पहुंचना अपनी मज़बूरी हैं....
और गाड़ी मंज़िल के रास्ते पर दौड़ पड़ती हैं.
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आश्रम में प्रवीष्ट होते ही महसूस हुआ कि वहां का माहौल एकदम शांत सा हैं हमारी गाड़ी एक भवन नुमा बिल्डिंग के पोर्च में जा कर रुकी थी.. तभी वहां के और मौजूद लोग जल्दी सें दौड़ कर हमारी गाड़ी के पास आ जाते हैं.. हम सभी जल्दी सें गाड़ी के बहार निकलते हैं..
अभी कैसी हैं दीदी मां..?
हमारे साथ आए स्वामी ने वहां पर मौजूद महिला साध्वी सें पूछा था.
वो बस आप लोगों की ही प्रतीक्षा कर रही हैं..
हम सब जल्दी जल्दी तेज कदमो सें एक बड़े सें हॉल में पहुँचे थे जहां काफी लोग मौजूद थे जो हरे कृष्णा हरे कृष्णा का जाप कर रहें थे वे सब मुझें ही देख रहें थे मानो मैं ही दोषी हूं मैं और कल्पना चुपचाप सीधे मेम के पास पहुँचे जी एक आलिशान सें बेड पर अधलेटी सी बेड की पुस्त सें टिक कर बैठी थी.. मेरी नज़रे जब उन सें मिली तो वो मुस्कुरा रही थी हम उनके पास जा कर खडे हो गए तब मेम ने ही मुझें अपने पास बैठने को कहां तो मैंने कल्पना की तरफ देखा तो कल्पना ने मुझें इशारे सें बैठने की इजाजद देदी.. तब मैं उनके पास बैठ गया मेम ने कल्पना को भी बैठने के लिए कहां तो कल्पना उनके दूसरी तरफ जा कर बैठ गई थी... मेम के सिर पर बिलकुल भी बाल नहीं थे वो सफ़ेद चोले में लिपटी बैठी थी उनकी आंखे धस चुकी थी चेहरा रुखा सा हो गया था मैं उन्हें देख रहा था और वो मुझें मुस्कुराते हुए देख रही थी उनकी आंखो में मेरा इंतजार साफ झलक रहा था
मैंने कहां था ना..... एक दिन तुम मेरे पास जरूर आओगे..
उनकी आवाज में अजीब सा शांत पन था...उनकी आवाज़ की पहले जैसी खनक अब गुम हो चुकी थी..
मैं उन्हें देखता हुआ मन ही मन उनसे कह रहा था... हां याद आया...!
उन्होंने कल्पना की तरफ देखा
तुम बहुत खुशकिश्मत हो कि तुम्हे सुमित जैसा पति मिला
और उन्होंने मेरा और कल्पना का हाथ आपस मैं मिलते हुए कहां
जो दूसरा वादा तब तुम तो मुझसे कर नहीं पाए थे सुमित लेकिन आज मेरे जीते जी वो वादा तुम्हे करना ही होगा.
और उन्होंने अपने एक हांथ को हम दोनों के सामने बढ़ाते हुए मुट्ठी खोली थी..
ओह.. तो उस वक़्त इस मुट्ठी में यहीं दूसरे बदे की डिब्बी थी..
इ... इस में क्या हैं मेम..?
सिंदूर... एक सोहागन की ज़िन्दगी.. एक औरत का नसीब सच में कितनी सच हैं ये हमारी परम्परा जो एक दूसरे की सहभागिता को बांधे रखती हैं..अगर तुम उस समय ये वादा पूरा कर देते तो कभी भी रुक्मड़ी और कृष्ण के बीच ये राधा कभी नहीं आती..
मैं अतीत में खोया हुआ था... कल्पना की आंखो में आंसू छलक रहें थे.
लो सुमित अब आज ये वादा तुम कल्पना की मांग में दोबारा सिंदूर भर कर पूरा कर दों.. मैं हमेशा तुम्हारी कल्पना में जिन्दा रहूंगी..
मेरे अंडर का रुदन बहार आने को तड़प रहा था तभी सिसकिया भरते हुए कल्पना ने मेम सें कहां
दीदी आपको कुछ नहीं होगा... प्लीज आप ऐसा मत कहिये दीदी प्लीज..
राधा कभी रुक्मिणी नाही बन सकती कल्पना..
उन्होने कल्पना के आंसुओ को पोछते हुए कहां था
लेकिन दी... रुक्मणि भी तो कभी राधा नाही बन सकी..
इसलिए तो मैं इनसे कह रही हूं के आज रुक्मणि में राधा को बसा दों
मेम की सांसे खिचने सी लगी थी.. उन्होंने अपनी संसो को सम्हालते हुए कहा मेरे पास अब ज्यादा समय नही हैं सुमित..कल्पना तुम मेरे और करीब आ जाओ..
उन्होंने कल्पना का हाथ अपनी तरफ खींचते हुए अपने और करीब को खींच कर अपने सीने में भींच लिया था मैंने जल्दी सें उनके एक हाथ में रखी सिंदूर की डिब्बी का ढक्कन खोल कर अपने सीधे हाथ की चुटकी में सिंदूर लिया.. वो मुझें देख कर मुस्कुरा रही थी वहीं कल्पना की अश्रु धारा बहे जा रही थी मैंने कल्पना की मांग में तीन बार सिंदूर भरा और मैं उन्हें देख रहा था मांग में सिंदूर भरने के बाद मैंने उनसे कहां
लो मेम आपका ये वादा मैंने पूरा कर दिया...
वहां सभी मौजूद लोग इस दृश्य को एकटक निगाहों सें देख रहें थे सभी के आंखो में आंसू थे माहौल पूरा गुमगीन था.
मेम मैंने आपका ये वादा पूरा कर दिया... अब तो आप खुश हेना..
मेम मुश्कुराते हुए एकदम सें अचेत सी बैठी थी.. तभी हॉल में धीरे धीरे कृष्णा कृष्णा हरे हरे का स्वर गूंजने लगा था.. मेम जा चुकी थी मैं उन्हें पागलों की तरह बोले जा रहा था कल्पना और मेरे पास मौजूद सभी लोग मुझें समझा रहें थे लेकिन मैं अपनी खीझ में उन्हें झंझोड़े जा रहा था..फिर सब लोगोने मुझें उनसे अलग किया और दूसरे कमरे में ला कर बैठा दिया मैं रो भर नही रहा था मेम मेरी आंखो में बस चुकी थी उनका वो हंसता मुस्कुराता चेहरा मेरी आंखो में बार बार घूम रहा था. अंतिम दर्शनार्थ पार्थिव देह को हॉल में सब के लिए रखा गया था कल्पना वहीं मौजूद थी मेम के पार्थिव देह के साथ.. लोग बारी बारी सें उनके दर्शन कर रहें थे मुझें भी लाकर वहीं उनके पास बैठा दिया था लोगों की आंखे नम थी..मुझें लाने का कारण यहीं था कि मैं भी उनके अब आखिरी बार देख लूं..
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शाम होने सें पहले ही उनका अंतिम संस्कार होना था जो आश्रम के परिसर के पीछे बने देवलोक स्थल पर पार्थिव देह को लेकर आश्रम के सभी लोग आ चुके थे मेम की देह को चन्दन की चिता पर लेटाया गया और मैं एक और खड़ा सब देख रहा था तभी वहीं स्वामी जी मेरे पास आए और कहां
भईया जी चलिए जल्दी सें स्नान कर लीजिये दीदी की चिता में अग्नि आप ही को लगानी हैं.
मैं...?
हां दीदी मां की यहीं अंतिम इकक्षा थी.. जो आपको ही करनी होंगी. आइए वो वहां स्नानागर में स्नान कर लीजिए..
स्नान के बाद मैं मेम की चिता के पास गुमसुम सा खड़ा हो गया था मन में अनेक विचार कौद्ध रहें थे क्या ज़िन्दगी में ऐसे भी वाक्ये होते हैं जो इश्क़ और मोहब्बत में इतना पागल कर देते हैं शायद हम दोनों ही एक दूसरे की मौत का कारण थे जब मैंने मेम को उस बार वैसी अवस्था में देखा था और मेम ने अपने दिल की बात मेरे सामने कही थी... तब मेरी मौत तो मेम के कारण उसी वक्त हो गई थी.. काश मेम आपने उस वक़्त ऐसा ना किया होता... लेकिन क्या मैं भी आपकी मौत का जिम्मेदार हूं...?
लीजिये भईया चिता को अग्नि दे दीजियेगा...
और स्वामी जी ने प्रज्वालित अग्नि की शाख मुझें थमा दी आज पहली वार मेरे हांथ काँप रहें थे जितने अपने पिता और माता जी की चिता में अग्नि देते हुए नाही कंपे थे..
भईया जी... अग्नि दीजिये..!
और मैंने मेम की चिता में अग्नि देदी थी कुछ ही पलों में चिता की अग्नि ने प्रचंड रूप धरना कर लिया था चिता की ऊंची उठती लपटे आसमान को छू रही थी.. और मेम पंच तत्त्व में विलीन होने के लिए राख में तब्दील हो रही थी..
# इश्क़ में एक और मौत...!