श्रीधर : कमी को बनाया अपना संबल
श्रीधर नागप्पा मालागी का एक हाथ एक्सीडेंट के बाद काटना पड़ा। ये घटना है 2006 की। तब उनकी उम्र मात्र छह साल थी। श्रीधर ईर के इस अन्याय से न घबराये न डरे बल्कि इसमें भी कोई भलाई होगी, ये सोचकर अगला कदम बढ़ाने की सोचते। उन्होंने शिक्षा में अव्वल आने का बीड़ा उठाया। लोगों के साथ-साथ घर वालों ने भी उनका साथ दिया। उनकी मेहनत रंग लायी। वे अच्छे नम्बर लाते। ये बात है 2011की। जब वे क्लास छह में थे तो उन्हें पता चला कि उनके गांव से छह किलोमीटर दूर बेलगाम में विकलांगों के लिए तैराकी का एक ट्रेनिंग कैम्प होने जा रहा है। स्विमर क्लब एंड एक्वारियस स्विम क्लब बेलगाम ने यह कैम्प आयोजित किया था। कैम्प में मौजूद कोच उमेश कलघटगी ने श्रीधर को देखा और उन्हें ट्रेनिंग देने का न्योता दिया। धीरे-धीरे गुरु के सानिध्य में वे कब मछली की तरह पानी में तैरने लगे, उन्हें पता ही नहीं चला। श्रीधर ने डेढ़ हाथ से पानी को काटकर अपने लिए अनेक मेडल तराशे। दिसम्बर 2012 में चेन्नई में हुए 12वें नेशनल पैरालम्पिक स्विमिंग एंड वाटर पोलो चैम्पियनशिप में शिरकत कर व्यक्तिगत स्पर्धा में दो गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। इसके बाद अगले वर्ष नवम्बर 2013 में बेंगलुरू में हुए 13वें नेशनल पैरालम्पिक स्विमिंग एंड वाटर पोलो चैम्पियनशिप में चार सिल्वर मेडल जीतकर सबको चौंका दिया। नवम्बर 2014 में इंदौर में हुए 14वें नेशनल स्विमिंग चैम्पियनशिप में चार गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीतकर अपनी रेंज का पता बता दिया।श्रीधर का जन्म 20 अप्रैल ।999 को बेलगाम में हुआ था। तीन बड़ी बहनों सरिता, रूपा व दीपा में सबसे छोटे श्रीधर को सबका प्यार दुलार भरपूर मिल रहा था। जब वह छह साल के थे तो एक दिन रेलवे स्टेशन के निकट रिक्शे पर जाते समय पीछे आये एक वाहन ने टक्कर मार दी और श्रीधर के बायें हाथ पर रिक्शे का पूरा बोझ आ पड़ा। एक लाख रुपये न होने के कारण डाक्टरों को हाथ काटना पड़ा। घर में मातम छा गया। समय हर घाव भर देता है। पिता नागप्पा एक फैक्ट्री में फिटर की नौकरी करते थे और मां गुनडावा घर का खर्च चलाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन फटका करतीं। धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता रहा।बड़ी बहन सरिता जो एक पार्लर में काम करती हैं, बताती हैं कि जब पप्पू (घर में श्रीधर को सभी इसी नाम से बुलाते हैं) का एक्सीडेंट हुआ और प्राइवेट डॉक्टर ने हाथ के आपरेशन के लिए एक लाख मांगे तो हम सब के पांव के तले से जमीन खिसक गयी। हमारे पास बिल्कुल भी पैसा नहीं था। तब डॉक्टर ने कहा कि हमें इसका हाथ काटना पड़ेगा नहीं तो जहर पूरे शरीर में फैल जाएगा। वह वक्त हम सब के लिए बहुत भारी था। पप्पू का एक हाथ काट दिया गया। पप्पू रोया। उसके साथ हम सब भी बहुत रोये। आज यही कटा हाथ पप्पू की शक्ति बन गया है। अगर उसके बराबर हाथ होते तो शायद वह तैराकी कभी नहीं सीखता और इतना नाम भी नहीं होता उसका। कोच उमेश कलघटगी बताते हैं कि उन समय मेरी नजर श्रीधर पर पड़ी तो मुझे लगा कि ये बच्चा एक दिन जरूर देश का नाम रोशन करेगा। श्रीधर में सीखने की गजब की लालसा थी। मैं जो भी सिखाता वह झट से सीख लेता। धीरे-धीरे उसकी तैराकी में कलात्मकता आने लगी। आज मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि श्रीधर अनेक नार्मल बच्चे से बेहतर तैराक है। मैं दुआ करता हूं कि उसका सपना जरूर पूरा हो।पिता नागाप्पा मालागी बताते हैं कि जब श्रीधर का एक्सीडेंट हुआ तो वह समय काफी खराब था। लेकिन अब हमें लगता है कि शायद इसी में उसकी भलाई थी। आज वह देश में अपना नाम कमा रहा है। मेरी तो यही इच्छा है कि उसे कोई अच्छी से सरकारी नौकरी मिल जाए।श्रीधर लिंगराज कालेज में इंटर फस्र्ट इयर के छात्र हैं। कालेज से लौटने के बाद एक हाथ से छह किलोमीटर साइकिल चलाते हुए श्रीधर रोज स्विमिंग पूल आते हैं और जमकर अभ्यास करते हैं। शरद गायकवाड उनके रोल मॉडल हैं। वे भी एक हाथ से ही स्विमिंग करते हैं। श्रीधर रोज दो से ढाई घंटे नियमित प्रैक्टिस करते हैं। श्रीधर को पढ़ाई और तैराकी के अलावा कोई और शौक नहीं है। खाने में मां के हाथ की बनी खीर व डोसा उन्हें बेहद पसंद हैं। श्रीधर की तीनों बहनें उन्हें बहुत प्यार करती हैं। उनकी हर इच्छा पूरी करने के लिए वे दिन रात लगी रहती हैं। श्रीधर भी अपनी बहनों पर वैसे ही जान छिड़कते हैं। श्रीधर अंतरराष्ट्रीय पैरालम्पिक स्विमिंग कम्पटीशन में गोल्ड जीतकर भारत का नाम रोशन करना चाहते हैं।