आत्मतत्व से ही समस्त चराचर की सत्ताप्रायःसभी दर्शनों की मान्यता है कि जितना भी चराचर जगत है, जितना भी दृश्यमान जगत है – पञ्चभूतात्मिका प्रकृति है –उस समस्त का आधार जीवात्मा – आत्मतत्त्व ही है | वही परम तत्त्व है और उसी कीप्राप्ति मानव जीवन का चरम लक्ष्य है | किन्तु यहाँ प्रश्नउत्पन्न होता है कि आत्म
गीता औरदेहान्तरप्राप्तिश्राद्ध पक्ष में श्रद्धा के प्रतीक श्राद्ध पर्व काआयोजन प्रायः हर हिन्दू परिवार में होता है | पितृविसर्जनीअमावस्या के साथ इसका समापन होता है और तभी से माँ दुर्गा की उपासना के साथ त्यौहारोंकी श्रृंखला आरम्भ हो जाती है – नवरात्र पर्व, विजयादशमी,शरद पूर्णिमा आदि करते करते माँ लक्
पर्यूषण पर्व चल रहे हैं, और आज भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण की परा शक्ति श्री राधा जी का जन्मदिवस राधा अष्टमी भी है – सर्वप्रथम सभी को श्री राधाअष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...गीता गायक भगवान श्री कृष्ण... पर्यूषण पर्व के
अध्यात्मपरक मन:चिकित्सामनःचिकित्सक अनेक बार अपने रोगियों के साथ सम्मोहन आदि कीक्रिया करते हैं | भगवान को भी अपने एक मरीज़ अर्जुन के मन का विभ्रम दूर करकेउन्हें युद्ध के लिये प्रेरित करना था | अतः जब जब अर्जुन भ्रमित होते – उनके मनमें कोई शंका उत्पन्न होती – भगवान कोई न कोई झटका उन्हें दे देते | यही क
अध्यात्म और मनश्चिकित्साअर्जुन ने जब दोनों सेनाओं में अपने ही प्रियजनों को आमनेसामने खड़े देखा तो उनकी मृत्यु से भयाक्रान्त हो श्री कृष्ण की शरण पहुँचे “शिष्यस्तेऽहंशाधि मां त्वां प्रपन्नम् |” तब भगवान ने सर्वप्रथम एक कुशल वैद्य औरमनोवैज्ञानिक की भाँति उनके मन से मृत्यु का भय दूर किया | मृत्यु को अवश