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सपने (भाग-3) यह मेरी पहली किताब Zorba Publication से प्रकाशित हो चुकी हैं |

28 अप्रैल 2022

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साथ ही अचार की कनस्तर से एक छोटा सा टुकड़ा भी रखा मगर तभी निशा को याद आया कि मां की तबीयत तो खराब है और दवाइयां भी चल रही है तो खट्टी चीजों से परहेज करना चाहिए |
गरम गरम रोटी एक चम्मच घी लगाते हुए साथ ही सलाद के रूप में प्याज और मूली भी थाली में रख चुकी थी | कभी-कभी तो मां को ऐसा लगता है कि निशा मेरी बेटी नहीं अपितु दादी है जो मुझे अक्सर मेरी गलती पर डाटा करती और बिल्कुल बच्चों की तरह ही मेरा ध्यान रखा करती है | निशा का मां के प्रति इतना लगाव और प्रेम भी मन को बहुत सुकून और शांति आभास कराता है |
 धीरे-धीरे मां ने अपने हाथों से एक निवाला अपने मुंह में लिया तो मां को अचानक खांसी का ठसका लगा | निशा ने तुरंत अपने हाथों में पानी का गिलास उठा कर मां को पानी पिलाया और मां की पीठ पर हाथ से सहलाती रही |निशा गुस्सा होकर बोली हो गई ना सर्दी खांसी सुबह मैंने मना किया था ना कि पानी में मत रहो | पौधों को पानी मत दो गोबर लिपाई पुताई मत करो मैं सब काम कर लूंगी मगर आप मेरी बात कहां मानते हो,बस अपनी ही जीद पर रहती हो |
अब आपकी ज्यादा तबीयत खराब हो जाएगी तो हमारा क्या होगा | सच कहूं तो निशा के जीवन में मां ही थी, पापा की ड्यूटी तो बॉर्डर पर थी | वो साल में एक बार ही छुट्टी पर आया करते थे और दादी की मौत चैत्र मास में हुई थी | बॉर्डर से पापा डाकघर में लिफाफे पत्र भेजा करते थे, एक छोटा भाई आदित्य 8 साल का है | निशा खुद अपने नन्हें हाथों से मां को भोजन खिलाने लगी |
सचमुच ऐसे दृश्य को देखकर भगवान भी सोचते होंगे कि इस धरती पर आकर हम भी ऐसे सुनहरे और मनमोहक पल का महसूस कर सके | यह तो जिंदगी के वह हसीन लम्हे है जहां पर भगवान मनुष्य को इस धरती पर जन्म देख कर खुश नसीब मानते हैं कभी-कभी तो भगवान भी आवश्यकता अनुसार मानव के रूप में धरती पर आकर जन्म लेने की प्रतीक्षा किया करते हैं | तभी तो हमें इस संसार में कुछ आदर्श और महानतम व्यक्ति बनते हैं जो वास्तव में ईश्वर का ही स्वरूप होते हैं | निशा ने माँ को आराम से बिस्तर पर लिटा दिया और रसोईघर मे दूध हल्का सा उबालने के बाद एक चम्मच शक्कर घोल दी |
जिस प्रकार से शक्कर किसी पयपदार्थ और खाद्य पदार्थों में मिलकर मिठास उत्पन्न करती है | ठीक उसी प्रकार संस्कार,सरल स्वभाव और सेवा भाव भी रिश्तो में मिठास घोल जाती है |यह मिठास जिंदगी जीवन यापन के तरीकों को बहुत ही मधुर बना जाती है जिनके साथ कभी कभी कुछ मीठी मीठी यादों का सिलसिला भी जुड़ने सा लगता है | जिन्हे हम अक्सर अपने अकेलेपन और सुनेपन से पल मे याद करके दुख भरे चेहरे पर मुस्कुराहट की झलक सी प्रतीत होने लगती है | जल्दी अलमारी को खोल कर कुछ दवाइयां निकाली और मां को खिला दी |मां ने सोते हुए कहा बेटी अब तुम भी भोजन कर लो दोपहर हो चुकी है |
कुटिया से गाय की अम्मा-अम्मा की ध्वनि से निशा ने सोचा प्यास लगी होगी इसलिए आदि बाल्टी पानी अपनी सामर्थ्य के अनुरूप हाथ में लिए कुटिया की ओर बढ़ी | गाय को प्यार से नंदनी कहा करते हैं, निशा को देखते ही चेहरे पर मुस्कुराहट एक नई चमक सी आ गई और साथ ही  शांत सी हो गई | पशु हो या पक्षी जब यह बंधन मानवता से जुड़ने लगता है तो यह बेजुबान जीव एक नए रिश्ते रूपी भाषा को जन्म दे जाते है | निशा ने अपने हाथों से चारा के साथ खली भी दी जो पशुओं का पौष्टीक आहार होता है |नंदिनी भी बड़ी हर्ष और उल्लास के साथ मुह से जुगाली करती हुई अपना भोजन कर रही थी | वहीं कुछ पल के पश्चात पास में रखी बाल्टी के पानी मे मुंह लगाकर धीरे-धीरे जीभ से कुछ विशेष स्वर में पानी को अंदर की ओर खींचने लगी | यह पशुओं का  अक्सर पानी पीने का तरीका होता है | नंदिनी कुछ महीने पहले से ही  गोधन में जाया करती थी, दिन में बहुत सारी गाय बैल भैंस  इत्यादि को एक  ग्वाला  चराया करता है,इसे ही गोधन कहा जाता है |
अक्सर परिवार में पशुओं  को इस प्रकार भ्रमण करते हुए  हरा भरा  घास चारा  इत्यादि  हेतु पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं,इसी वजह से माँ ने  नंदनी को गोधन में भेज दिया करते | जब भी नंदिनी शाम को गोधन से  वापस आया करती तो वह खिलखिलाती हुई से  दिखती थी | गोधनमें प्राय़  गाय पशुओं  इत्यादि को  अपने ही वर्ग की पशुओं को  के साथ रहने  और आपस में मस्ती करते हुए  कुछ  पल ही  अपने  दुनिया में मदमस्त हो जाते हैं | एक पशु की भी अपनी एक भाषा होती है, जिन्हे वह भली-भांति रूप से समझ लेते है |
ग्वाला भी इनका पर्याप्त देखरेख किया करता था |वह अक्सर कुत्ते और घातक जीवो से  इनकी रक्षा किया करता है,ग्वाला हाथ में एक  डंडा  लिए  हुए माथे पर पगड़ी पहने हुए है | धोती कुर्ता की वेशभूषा में  रंग बिरंगी गाय के बीच में  बड़ा ही मनमोहक सा लगा करता है | नजदीक ही नदी के किनारे  मे बहते हुए पानी से  आवश्यकतानुसार प्यास लगने पर अपने पशुओ को पहले तो कतारबद्ध होकर फिर पानी पीते है | फिर वह पेड़ की छांव में कुछ देर आराम किया करते,ग्वाला भी पेड़ पर टहनी में बैठकर पशु की देखरेख किया करता | संध्या के समय जैसे ही सूर्य अपनी लालिमा के रूप से बादलों के दूसरे सिरे पर डूबने की ताक में होता है |
ग्वाला भी गोधन के सभी पशुओं के साथ वापिस घर छोड़ने जाया करता |अभी नंदिनी मे गर्भ ठहर चुका था, तभी कुछ ही दिनों से वह घर पर ही दिन भर रहा करती जब तक कि बच्चा उत्पन्न ना हो | मां बनना ही एक खूबसूरत सा अहसास होता है, चाहे वह मानव हो या पशु हो | यह पल का अपना ही एक महत्व होता है, नंदिनी के जीवन में भी यह पल खुशियां और चहचहाते लम्हों का दामन बिखेर चुका था | ममत्व स्वभाव भी मां मे अपने आप ही आने लगता है.
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रचनाएँ
सपने
3.0
 यह किताब निशा के जीवन के संघर्ष की कहानी है, जो समाज की रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए सफलता हासिल करती है | वह बेटे की तरह ही अपनी सभी जिम्मेदारी और कर्तव्य का पालन करती है | यह कहानी कभी ना हार मानने वाली उस लड़की की है, जो समाज की हर लड़की को अपने जीवन मे सपने पूरा करने के लिए हौंसला देती है | एक नौजवान सिपाही जो अपने देश की बॉर्डर पर सुरक्षा के लिए शहीद होकर भारतमाता की गोद मे समा जाते है, वास्तव मे वो परिवार के लोग कितने बहादुर होते है, जो शहीद हुए अपने बेटे, पति या पिता के ना होने पर भी ज़िन्दगी के दुःख भरे पलों को बड़े ही गर्व के साथ जीते है | नानाजी जो अनाथ बच्चों को गोद लेकर अच्छे से पालन- पोषण और शिक्षा देकर भविष्य मे देश के काबिल नागरिक बनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है, अन्यथा सड़क पर भूख और शिक्षा के आभाव मे वही अनाथ बच्चे चोर या आतंकवादी भी बन सकते थे | पोस्टमैन जो अपने शिक्षा के संघर्ष की वजह से सबकी मदद करते है ताकि किसी को ऐसा संघर्ष ना करना पड़े | वो गांव के बच्चे यहाँ तक की बुजुर्गो को भी शिक्षा के लिए प्रेरित करते है | मेरी कहानी के ये कुछ पात्र है, यदि ऐसे ही सकारात्मक सोच वाले लोग हमारे देश मे होंगे तो भविष्य मे हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते है |
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26 अप्रैल 2022
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निशा उदास मन से पापा और छोटे भाई की तस्वीर को निहार रही थी | काश वो बुरा दिन हमारे जीवन मे कभी नहीं आता, जिसने हमसे हमारी खुशियाँ छीन ली थी |आज दोनों की कमी को महसूस कर रही थी | पापा का हाथ जब कंधे पर

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27 अप्रैल 2022
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यह केवल अपनी जिंदगी मैं उन सपनों को संजय हुए हुए हैं, जो नींद लगते ही एक नए दृश्य से हमें आत्मविभोर कराती है। यही तो बचपन के सपनों से भरे नैना है, जो हर व्यक्ति अपने बचपन में किसी ने किसी स्वरूप

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