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सच्ची मोहब्बत

संजय पाटील

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किताब के बारे मे इस कहानी के मुख्य पात्र है इम्तियाज़ और मुसर्रत ,जिनकी पहली बार मुलाक़ात स्कूल मे होती है | तब लगभग इम्तियाज़ की उम्र 16 साल थी और मुसर्रत की उम्र 15 साल थी | दोनों की स्कूल मे नज़रो से नज़रे मिलती है फिर बातचीत के दौरान गहरी दोस्ती हुई, धीरे-धीरे समय के बढ़ने के साथ दोनों मे लगाव बहुत ज्यादा होने लगता है | मुसर्रत के पापा का एक्सीडेंट होने की वजह से मौत हो गयी थी इसलिए अपनी अम्मी के साथ मामा के घर पर ही रहा करती थी | इम्तियाज़ के बैग मे जो भी नई कॉपी किताब और पेन पेंसिल होती थी वो सब मुसर्रत को दे दिया करता था क्योंकि मुसर्रत के घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी | इस उम्र मे भी मुसर्रत बहुत समझदार थी, वह अपनी परिस्थिति के अनुरूप ही अपना रहन सहन किया करती थी | इन दोनों के बीच प्यार की शुरुआत हो गयी थी, अब स्कूल मे लंच टाइम मे दोनों टिफ़िन शेयर करके खाया करते थे | इस उम्र मे ये लगाव अंतर्मन से जुड़ सा जाता है जब कोई टीचर इम्तियाज़ को छड़ी से मारा करता था तो मुसर्रत का चेहरा भी उदास हो जाया करता था शायद इस अहसास को ही मोहब्बत कहते है लोग | फिर कुछ सालो के बाद घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी ना होने की वजह से मुसर्रत ने स्कूल मे पढ़ना छोड़ दिया था | तब इम्तियाज़ दो-तीन दिन तक बेचैनी की हालत मे था कि मुसर्रत स्कूल क्यों नहीं आ रही है | जब पता चला कि मुसर्रत ने स्कूल मे पढ़ाई करना छोड़ दिया तो इम्तियाज़ ने भी स्कूल जाना छोड़ दिया था | ये बचपन की छोटी सी प्यारी सी मोहब्बत की दास्तान है जो एकसाथ कुछ पल तो बिता पाये मगर फिर दोबारा जीवन मे कभी नहीं मिल पाये | आज भी इम्तियाज़ को अपनी इस अधूरी मोहब्बत की तलाश है कि मुसर्रत से एक बार भी मुलाक़ात हो जाये तो आज भी अपने जीवन मे शामिल करना चाहूँगा क्योंकि जो बचपन मे प्यार हुआ था वो फिर किसी और से कभी कर भी नहीं पाया था | भले ही आज इम्तियाज़ की शादी हो गई हो मगर आज भी मुसर्रत का तहेदिल से इंतज़ार है, उस सच्ची मोहब्बत का,जो हमेशा से अंतर्मन मे ही अधूरेपन सी सिमटी हुई थी | 

sachchi mohabbat

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