“जो लोगो पर कठोर से कठोर सजा को लागू करता है। वो लोगो की नजर में घिनौना बनता जाता है, जबकि नरम सजा लागू करता है। वह तुच्छ बनता है। लेकिन जो योग्य सजा को लागू करता है वह सम्माननीय कहलाता है।
जिस प्रकार एक सूखे पेड़ को यदि आग लगा दी जाये तो वह पूरा जंगल जला देता है। उसी प्रकार एक पापी पुत्र पुरे परिवार बर्बाद कर देता है।
आचार्य चाणक्य