“जो समय बीत गया, उसे याद कर पछताना बेकार है अगर कोई गलती हुई भी है तो उससे सबक लेकर वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए।”
आचार्य चाणक्य
12 मई 2022
“जो समय बीत गया, उसे याद कर पछताना बेकार है अगर कोई गलती हुई भी है तो उससे सबक लेकर वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए।”
आचार्य चाणक्य
10 फ़ॉलोअर्स
साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए, यह मानवधर्म हैं। "धर्म" एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है। यह “धृ” धातु से बना है जिसका अर्थ होता है ” धारण करने वाला ” इस तरह हम कह सकते हैं कि “धार्यते इति धर्म:” अर्थात, जो धारण किया जाये वह धर्म है। हिन्दू धर्म के अनुसार लोक परलोक के सुखों की सिद्धि हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना ही धर्म है। इस दृष्टि से धर्म मनुष्य में सहिष्णुता, दया, धर्म, स्नेह, सेवा आदि सामाजिक गुणों को विकसित करता है। इसके परिणामस्वरूप समाज की व्यवस्था में शक्ति एवं क्षमता का विकास होता है। धर्म व्यक्ति के व्यवहारों को भी नियन्त्रित कर, सामाजिक नियन्त्रण में महत्वपूर्ण योगदान देता है वास्तव में धर्म का उद्देश्य सद्गति अर्थात मोक्ष प्राप्त करना है लेकिन मोक्ष प्राप्ति से पहले धर्म का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को प्रत्येक प्राणी के प्रति संबंध,दया का भाव एवं प्रत्येक के प्रति व्यवहार के बारे में ज्ञान देना है। D