परदेस में बैठे स्वदेशी से पूछो,
अपने वतन की याद आती है।
सौंधी मिट्टी की खुशबू से पूछो,
अपने वतन की याद आती है।।
उन हवाओं के झोंको से पूछो,
की लौट कर आना फिर स्वदेश।
स्वदेशी याद आते हैं वतन के,
की लौट कर आना फिर स्वदेश।।
दोस्तों के साथ यूं घूमना,
मौज मस्ती के दिन याद है।
सैर सपाटे ऐसे स्वदेश के
मौज मस्ती के दिन याद है।।
जरा संभल के याद आना,
स्वदेश की आती है खुशबू।
कहीं रूप बदलती तो नहीं,
स्वदेश की आती है खुशबू।।
बातें भी सुनने को मिलती,
है भला क्या ऐसे परदेस में।
क्या जिसमें स्वदेश की बोली,
है भला क्या ऐसे परदेस में।।
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