कवि: शिवदत्त श्रोत्रियपरिस्थितियाँ नही है मेरी माकूल इस समयतू ही बता कैसे करूँ तुझे कबूल इस समय ||इशारो मे बोलकर कुछ गुनहगार बन गये हैलब्जो से कुछ भी बोलना फ़िज़ूल इस समय ||परिवार मे भी जिसकी बनती थी नही कभीक्यो खुद को समझता है मक़बूल इस समय ||इंसान से इंसान की इंसानियत है लापतादिखता नही खुदा मुझे