इस प्रहसन में भारतेंदु ने परंपरागत नाट्य शैली में हिंसा पर व्यंग्य किया गया है। नाटक का आरम्भ नांदी के दोहा गायन के साथ होआ है - 'बहु बकरा बलि हित कटैं, जाके बिना प्रमान। ... यज्ञों में पशुओं की हिंसा करते हुए कहा गया कि 'यह हिंसा वेदोक्त है, इसलिए इसमें कोई दोष नहीं है। ' यह अर्थ किसी भी प्रकार बुद्धि−विवेक संगत नहीं है
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