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वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति : प्रहसन

27 जनवरी 2022

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नांदी

दोहा - बहु बकरा बलि हित कटैं, जाके। बिना प्रमान।

सो हरि की माया करै, सब जग को कल्यान ।।


सूत्रधार और नटी आती हैं,

सूत्रधार : अहा हा! आज की संध्या की कैसी शोभा है। सब दिशा ऐसा लाल हो रही है, मानो किसी ने बलिदान किया है और पशु के रक्त से पृथ्वी लाल हो गई है।

नटी : कहिए आज भी कोई लीला कीजिएगा?

सूत्रधार : बलिहारी! अच्छी याद दिखाई, हाँ जो लोग मांसलीला करते हैं उनकी लीला करैंगे।

ख्नेपथ्य में, अरे शैलूषाधम! तू मेरी लीला क्या करैगा। चल भाग जा, नहीं तो तुझे भी खा जायेंगे।

दोनो संभय, अरे हमारी बात गृध्रराज ने सुन ली, अब भागना चाहिए नहीं तो बड़ा अनर्थ करैगा।

दोनो जाते हैं, 

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वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति
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इस प्रहसन में भारतेंदु ने परंपरागत नाट्य शैली में हिंसा पर व्यंग्य किया गया है। नाटक का आरम्भ नांदी के दोहा गायन के साथ होआ है - 'बहु बकरा बलि हित कटैं, जाके बिना प्रमान। ... यज्ञों में पशुओं की हिंसा करते हुए कहा गया कि 'यह हिंसा वेदोक्त है, इसलिए इसमें कोई दोष नहीं है। ' यह अर्थ किसी भी प्रकार बुद्धि−विवेक संगत नहीं है

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