shabd-logo

वैलेंटाइन डे

23 मार्च 2023

108 बार देखा गया 108

मेरा कमरा पहली मंजिल पर था। कमरे के बगल ही किचन और किचन के बगल ही वॉशरूम था। सामने थोड़ी-सी छत थी। सीढ़ियाँ घर में प्रवेश करते ही बाहर से थीं, जिससे कोई भी व्यक्ति मकान मालिक से मिले बिना सीधे मेरे कमरे में आ सकता था। शशांक आके सीधे वॉशरूम या किचन में ही जाता था। वैलेंटाइन डे के दिन उसका भी कोई ठिकाना नहीं था। वैलेंटाइन डे की उस रोमांटिक बारिश में हम दोनों ही अभागे थे। अपने-अपने स्तर के अभागे। हम दोनों के जीवन में सूखा पड़ा था और युवान जी बाढ़ राहत कार्य पर गए थे। शशांक अपने इस अभागेपन को खुल के स्वीकारता था और मैं खुद को अपने आत्मसमान के बनाए मुगालते में रखता था।
"रजत भाई, आज डे कौन-सा है?" मुझे छेड़ते हुए बोला और मेरे बेड पर पसर गया। मैंने उसे पलट के एक बार देखा, फिर अलमारी में रखे अपने डिओडरंट की तरफ देखा। मेरा कमरा बाबूगंज में था जो यूनिवर्सिटी से एकदम पास, 200 मीटर की दूरी पर था और शशांक का अलीगंज- यूनिवर्सिटी से दो किलोमीटर की दूरी पर। शशांक पहले मेरे रूम पर आता, अपनी रेंजर साइकिल खड़ी करता और हम दोनों साथ कॉलेज पैदल जाते थे। आज यूनिवर्सिटी जाकर अपनी इज्जत उतरवाने का कोई मतलब भी नहीं था। शशांक रोज चलने से पहले मेरे डिओडरंट पर धावा बोलता था, इसलिए मैं उसके आते ही उसे छुपा देता था और डर्मी कूल आगे कर देता था... कि बेटा, इससे जितना कूल होना है हो लो। नहीं मतलब अगल-बगल छिड़क लो ठीक है, पर पूरे छह फीट की काया पर घुमा-घुमा के डीओ से नहाना कहाँ का इंसाफ है? ऊपर से तुम्हें कोई सूँघने वाला भी नहीं है।

मैंने चाय की चुस्की ली। कप टेबल लैंप के बगल रखा, अपनी उँगलियाँ चटकाईं और फिर उसकी तरफ देखते हुए कहा, “देखो! आज है मंडे! और कोई ‘डे’ नहीं है, समझे?  

हिंद युग्म Hind Yugm की अन्य किताबें

empty-viewकोई किताब मौजूद नहीं है
2
रचनाएँ
देहाती लड़के
5.0
यह एक ग्रामीण इलाके के लड़के रजत की कहानी है, जो गांव के स्कूल से पढ़कर अपनी उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ शहर में आता है। अधिकारी बनने की उच्च आकांक्षाएं, अपने शिष्टाचार में मामूली देसीपन, वह कॉलेज के आसपास अपने तरीके से संघर्ष करता है। शहर और कॉलेज उसका अवशोषण करना शुरू कर देते हैं और वह शहर के तरीकों को अपनाने की कोशिश करने लगता है। घटनाओं के मोड़ में एक क्लासी लड़की और दो विपरीत प्रकृति के लड़कों से उसकी मुलाकात होती है। वे अच्छे दोस्त बन जाते हैं और फिर कुछ दिलचस्प चीजें होने लगती हैं। समय बीतने के साथ, करियर के लिए दबाव और दोस्तों के साथ गलतफहमी उनके रास्ते अलग कर देती है। तब रजत को पता चलता है कि यह दुनिया इतनी निष्पक्ष नहीं है और जब तक वह अपने आपको साबित नहीं कर देता, तब तक वह हमेशा एक बाहरी व्यक्ति बनकर ही रहेगा, शहर के लिए एक देहाती लड़का। क्या गलतफहमी उनके पुनर्मिलन को रास्ता देगी?

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए