इस काव्य संग्रह में मैंने स्त्री के अंतर्मन में चलने वाली व्यथा को लिखने की कोशिश की है! जिसे चाह कर भी वह स्त्री किसी से बता नहीं सकती!
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सादर नमन 🙏वेदनाओ की कसौटी पर जब यह मन बिखरता हैनिखर के आती हूं रोज मै !सचही तो है दर्द से मन सवंरता है!है तल्ख़ियों का अपना मजा जख्म हर रोज एक नए जख्म सिलता है!जिक्र होगा जब भी महफिलों में
सादर नमन 🙏🌺लिखकर तनहाई मिट ना जाऊंकागज सब है कोरे कोरे कैसे लिख कर दर्द बताऊंलिखकर तन्हाई मिट न जाऊंजख्मों में जो कसक भरी हैकोरे कागज को कैसे दिख लाऊंलिखकर तनहाई मिट ना जाऊंभरी कलम में स्याही ज