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विचलित मन

5 सितम्बर 2022

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अनजान सी रातों का परिंदा हूं मैं,
खोए हुए जज्बातों का पुलिंदा हूं मैं, 
गुमनाम अंधेरी सड़क पर बारिश के सिवा,
 उसके एहसासों के सहारे जिंदा हूं मैं।

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रचनाएँ
क्षणभंगुर
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जीवन एक यात्रा है, इसमें बहुत सारे पड़ाव है। व्यक्ति को समस्त पड़ावों का आनंद लेते हुए अपने यात्रा को पूर्ण करना चाहिए क्योंकि यह कोई सतत यात्रा नही है, इसका एक अंतिम छोर या मंजिल भी है।

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