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यादें

अरविन्द शुक्ल

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याद आते है आपको ? वो बचपन के दिन जब हमारा व्यक्तित्व हमारे मां बाप और हम बना रहे होते हैं । हम शब्द मैने इसलिये प्रयोग किया क्योकि मिट्टी के बरतन के निर्माण मे मिट्टी का भी अपना योगदान होता है । मुझे तो आजकल रह रहकर याद आते हैं । तो चलते हैं बचपन की ओर .... मै एक गोलू मोलू सा मां बाप का पहला बच्चा छ: सात साल की उम्र से चीजो को अपने हिसाब से परखने लगा था । पिता स्नेह के साथ अपना सारा अभिभावकत्व लादे दे रहे थे जिससे कबसे उनसे दूर और मां के ज्यादा करीब होता गया पता ही नहीं चला । बचपन यूं भी अपनी मां को सर्वश्रेष्ठ समझता है मै तो ज्यादा ही सिमट गया था उसके आँचल मे । याद आता है और अब बडो का हास्य विनोद समझ मे आता है  कि जब वो अक्सर पूछा करते थे कि किससे शादी करोगे तो मै रौब झाडता की मां से सब फिस्स से हंस पडते मां भी हंसती पर गर्व और भाव विभोर होकर खुद पर थोडा इतराती भी होगी । पिता के अनुशासन के दबाव और मां के प्रेम और सीखो  ने कब अन्तरिमुखी करना शुरू कर दिया पता ही नहीं चला । शायद इसका बडा कारण मां की ये सीख आत्मसात करना था कि सच बोलो सच के साथ रहो बच्चे ने बचपने मे आत्मसात कर लिया पर बडे बडे भी सच से भागते हैं । बच्चे के सच को और सच के साथ रहने की जिद को कोई समझ नही पाता था यद्यपि वो बालसुलभ झूठ भी बोलता रहा होगा पर लोग बाग उसके सच से शायद इतना घबराने लगे थे कि छंटुआ बना दिया था कुछ अछूत सा । याद आता है बचपन का एक शैतानी वाकया  हम नये खरीदे अपने मकान मे शिफ्ट हुये थे , मै हम उम्र और अपने से थोडा बडे बच्चो का भी लीडर बन चुका था ,  क्योकि कुछ हिस्टपुष्ट था । हम कई बच्चे खेल खेल मे एक बंगले मे पहुंच गये भरी दोपहरी चारो ओर सन्नाटा और उस बंगले के फुलवारी मे पके टमाटरो से लदे खूबसूरत पौधे फूलो से ज्यादा आकर्षक लगे । सबने मिलकर चोरी की टमाटर दावत उडाई और कुछ ने घरो के लिये जेबो मे भी भरे मैने भी वाह वाही पाने के लोभ से दो चार टमाटर जेबो मे भर लिये । घर पहुंचकर मां से शाबासी की उम्मीद मे टमाटर विजय गाथा की शेखियां बघारी पर परिणाम उम्मीद के उलट दो तीन थप्पड और घसीटकर टमाटर सहित उस बंगले तक ले जाने के रूप मे सामने आया । मां ने बंगले के नौकर से मालकिन को बुलवाया और टमाटर सौंपते हुये मेरी चैर्यगाथा और अपना माफीनामा पेश किया । मै शर्म से गडा जा रहा था पर उस बंगलेवाली दम्भी...जारी 

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